Wednesday, August 29, 2012

VAMAN DEV



केरल में हर साल ओणम का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 29 अगस्त, बुधवार को है। ओणम मनाने के पीछे एक कथा भी प्रचलित है, जो इस प्रकार है-

पुरातन समय में पृथ्वी के दक्षिण क्षेत्र में बलि नामक राजा राज्य करता था। वह भगवान विष्णु के परमभक्त प्रह्लाद का पौत्र था। वह राक्षसों का राजा होने के कारण देवताओं से बैर रखता था। स्वर्ग पर अधिकार करने के उद्देश्य से एक बार बलि यज्ञ कर रहा था तब देवताओं की सहयाता करने के लिए भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी।

राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा।

बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। साथ ही भगवान ने उसे यह भी वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। राजा बलि के पृथ्वी पर आने की खुशी में ही ओणम का त्योहार मनाया जाता है।

SARVAN KUMAR TUMARI JAI HO

ये भी अपने माता पिता की ही औलाद थी जिसने अपने माता पिता के सुख के लिए अपनी पत्नी को छोड़ दिया था सिर्फ इतनी सी बात के लिए की उसकी पत्नी ने श्रवण कुमार के माता पिता को बुरा भला कहा था ध्न्ने है ऐसी औलाद जिसने अपने माता पिता के लिए अपनी पत्नी को छोड़ दिया बरना आजकल तो पत्नी के पीछे माता पिता को छोड़ दिया जाता है ,,इन्होने सिर्फ ये सोचा था की जिन माँ बाप ने अपने बेटे की परवरिश के लिए लाखों दुःख सहे ये उनका साथ कैसे छोड़ दे और इन्होने अपने माता पिता को अपने कन्धों पर उठाकर अपने माता पिता को यात्रा करवाने के लिए निकले थे इसलिए चार दिन की चांदनी के लिए अपने उस माता पिता को कभी मत छोड़ो जिनमें प्रभु के दर्शन होते हैं ,,अपने मात पिता को दुःख देकर चाहे आप चारो धाम की यात्रा करलो लेकिन आपको कभी भी पुण्य का फल नहीं लगेगा इसलिए माता पिता को अपना सहारा दो ना की उनके बुढापे का सहारा छीनो


jai jai jai vishnu devae namha

हिन्दू धर्मशास्त्रों में धार्मिक परंपराओं के जरिए उजागर जीने के सलीके मन की सारी बेचैनी, भय और चिंता को दूर कर सुकूनभरे जीवन की राह आसान बनाते हैं। सुख और शांति से ही जीना हो तो चैन से सोना भी जरूरी है। लेकिन यह तभी संभव है, जब कलह और अशांति से दूर हो। 

व्यावहारिक रूप से इसके लिए छल, कपट व बुरे बर्ताव से दूरी जरूरी है, लेकिन धार्मिक उपायों में एक आसान तरीका है - रात में सोते वक्त देव स्मरण। इसके लिए मंत्र विशेष स्मरण का बड़ा महत्व बताया है। 

खासतौर पर अधिकमास में (18 अगस्त से जारी) शांत, सौम्य और आनंद स्वरूप भगवान विष्णु का रात में विशेष मंत्र से स्मरण कर सोना दिन भर के शारीरिक और मानसिक तनावों को दूर कर मन को शांति देता है। यह उपाय चैन की नींद सोने के लिए हर रोज करना भी शुभ माना गया है। जानिए, यह विशेष विष्णु शयन मंत्र - 

अच्युतं केशवं विष्णुं हरिं सोमं जनार्दनम्।

हसं नारायणं कृष्णं जपते दु:स्वप्रशान्तये।।

Tuesday, August 28, 2012

तुम्हारा नाम लिख लिख कर मोहन
मिटाना भूल जाता हूँ ....
तुम्हें जब याद करता हूँ
भुलाना भूल जाता हूँ ....
बहुत सी ऐसी बातें हैं जो मेरे दिल में रहती है
मगर जब तुमसे मिलता हूँ
सुनाना भूल जाता हूँ ....
तुम्हारे बाद अब हर पल
बड़ी मुश्किल से कटता है
में अक्सर तुमको ख्वाबों में बताना भूल जाता हूँ ...
में हर शाम कहता हूँ
की तुमको भूल जाऊँगा
मगर जब सुबह होती हैं
भुलाना तुमको भूल जाता हूँ ...!!

!!~~**जय जय श्री राधे**~~!!

 

mere ghanshyam

घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ !
अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ !!

तेरी नजर में जुल्फों में मुस्कान में !
उलझा है दिल तो छुडाये कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

चरणों की खाकसारी में खुद ख़ाक बन गये !
अब ख़ाक पे ख़ाक रमाये कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

जिनकी नजर देखकर खुद बन गये मरीज !
ऐसे मरीज मर्ज दिखाए कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

दिन रात अश्रु बिंदु बरसते तो है मगर !
सब तन में लगी जो आग बुझाए कहाँ कहाँ !!

घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ !
अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ !!

!!~~**जय जय श्री राधे**~~!!

 

jai shree bankey bihari ji

तेरी अंखिया हैं जादू भरी, बिहारी मैं तो कब से खड़ी ।

 
सुनलो मेरे श्याम सलोना, तुमने ही मुझ पर कर दिया टोना ।

 
मेरी अंखियां तुम्ही से लड़ी, बिहारी मैं तो कब से खड़ी ॥

 
तुम सा ठाकुर और ना पाया, तुमसे ही मैंने नेहा लगाया ।

 
मैं तो तेरे ही द्वार पे पड़ी, बिहारी मैं तो कब से खड़ी ॥

 
कृपा करो हरिदास के स्वामी,बांके बिहारी अन्तर्यामी ।


मेरी टूटे ना भजन की लड़ी, बिहारी मैं तो कब से खड़ी ॥

♥♥♥.....जय श्री कृष्णा......♥♥♥

Monday, August 27, 2012

आज (27 अगस्त, सोमवार) कमला एकादशी है। धर्म ग्रंथों में इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि यह पुरुषोत्तम मास में ही आती है। इस प्रकार ये व्रत 4 साल में ही आता है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी है जो इस प्रकार है-

पुरातन समय में महिष्मती नगरी में कार्तवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उस राजा की सौ पत्नियां थीं पर उनमें से किसी को भी राज्यभार सँभालने वाला योग्य पुत्र नहीं था। तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे। यह देखकर कार्तवीर्य तपस्या करने के लिए वन में चले गए। उनकी पत्नी (हरिशचंद्र की पुत्री प्रमदा) भी उनके साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गई। वहां रहते हुए कार्तवीर्य ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। तब रानी प्रमदा ने माता अनुसूया से पुत्र प्राप्ति का मार्ग पूछा।

तब माता अनुसूया बोली कि अधिक मास की दोनों एकादशियों को विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना जरुर पूरी होगी। इसके बाद माता अनसूया ने व्रत की विधि बतलाई। रानी ने विधि के अनुसार व्रत किया। यह देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और प्रमदा के सामने प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब प्रमदा ने कहा कि- हे भगवान। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे पति को उनका मनचाहा वरदान दीजिए। प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले- हे राजेन्द्र! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है।

यह सुनकर कार्तवीर्य ने कहा कि- हे भगवन्! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये। भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गए। उसके बाद कार्तवीर्य व प्रमदा अपने राज्य को वापस आ गये। कुछ समय बाद कार्तवीर्य के यहां एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया। वह भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय था। उसने अपने पराक्रम से रावण को भी जीत लिया था। यह सब कमला एकादशी व्रत का ही प्रभाव था।


radhey krishna hai ek naam

राधा और कृष्ण, ये वो दो नाम हैं जो दो हो कर भी एक हैं..और एक साथ ही पुकारे जाते हैं...ये वो हैं जिन्होंने दुनिया को सच्चे प्रेम का अर्थ समझाया... 

अपनी अलौकिक प्रेम कहानी से इन्होने ना सिर्फ प्रेम के निःस्वार्थ रूप को सार्थक किया बल्कि सारे जग को बता दिया कि प्यार कितना सरल, कितना निश्छल है..कितना पवित्र है...प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि आत्माओं का मिलन है.. 

भगवान् श्री कृष्ण और राधा का नाम हमेशा एक साथ पुकारा जाता है.. और इन सबका कारण है उनके बीच का अटूट प्रेम जो आज भी सच्चे प्यार का सबसे बड़ा उदाहरण है..वैसे तो इनकी प्रेम कहानी के अनेक रूप हैं जो अलग अलग लोगों द्वारा अलग अलग प्रकार से बताये जाते हैं.. मगर इन सबके बीच में एक चीज़ कभी नहीं बदलती और वो है इनका पवित्र प्रेम जो अतुलनीय और अमर है..कहीं इनके विवाह का ज़िक्र है तो कहीं बताया गया है कि इनका विवाह नहीं हुआ था...कुछ का मानना है कि राधा ने मुरली बन कर खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया...कहीं राधा को कृष्ण से उम्र में बड़ी कहा गया है, तो कहीं हमउम्र...मगर राधा और कृष्ण का प्रेम तो इन सब से परे था..इन सबसे ऊपर...इनका प्रेम किसी रिश्ते का मोहताज नहीं था..उनका समर्पण ही उनके प्यार की ताकत थी..

आज हमें अपने आस पास तमाम प्रेमी मिलेंगे..जो एक दूसरे से प्यार तो करते हैं, मगर किसी न किसी कारण से...उनके प्रेम के पीछे कोई न कोई स्वार्थ ज़रूर होता है. प्यार की वो निश्छलता और सादगी कहीं खो सी गयी है..बाजारीकरण के इस दौर में प्यार भी एक वस्तु मात्र बन कर रह गया है..लोग प्यार को लेकर एक दूसरे को धमकियाँ देते हैं.. मार-पीट करते हैं..एक दूसरे की जान लेते हैं.. मुक़दमे लड़ते हैं...प्यार के नाम पर लोग बदनाम हो रहे हैं..या यूं कहें कि "प्यार" बदनाम हो रहा है..

ऐसे में हम कैसे भूल सकते हैं उस प्यार को जो हमें अपने संस्कृति में अपने देवताओं ने सिखाया हो? राधा और कृष्ण का वो प्रेम का बंधन जिसमे ना कोई स्वार्थ था, न छल, न उम्मीदें, ना दिखावा, अगर कुछ था, तो सिर्फ और सिर्फ "समर्पण"...वो समर्पण जिसने प्यार को एक नयी परिभाषा दे दी..एक ऐसी परिभाषा जिसने प्यार को महज एक भावना तक सीमित न रख कर उसे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बना दिया..प्यार के बिना जीवन अधूरा है.. प्यार हमें जीना सिखाता है..हमारी खुशियों और कामयाबी की वजह बनता है..

आधुनिकीकरण की इस दौड़ में शामिल लोगों को यह याद रखना चाहिए की चाहे हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाये या भारतीय संस्कृति , हम हिन्दू धर्म को मानें या इस्लाम को, प्यार इन सबसे ऊपर है..प्यार की भावना हर किसी के लिए एक जैसी होनी चाहिए.. हम चाहे भारत में रहकर प्यार करें या अमेरिका जा कर लव करें, भावना वही है..शब्दों से, देश से, भाषा से प्यार को बांटा नहीं जा सकता.. 

राधा और कृष्ण का अमर और अलौकिक प्रेम हम सब के लिए एक प्रेरणा है.

Tumhari yaad mai ye dil tadpa jata hai,

Tumse milne ko ye dil machala jata hai,

Tumhara man nahi hai milne ka to na milo SHYAM,

Hume to tumhari yaad me rone me bhi maja aata hai....

 

Sunday, August 26, 2012

शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु को 'हरि' तो महादेव को 'हर' कहकर पुकारा जाता है। इन शब्दों में एक भाव समान रूप से जुड़ा है, जो भगवान विष्णु की जगतपालक व शिव की संहारक शक्ति उजागर करता है। साथ ही इस बात को बल देता है कि भगवान शिव व विष्णु में कोई भेद नहीं है। यह भाव है - 'हरना' यानी छिनना, ले लेना या दूर करना।

इसका मतलब यही है कि भगवान शिव व विष्णु की भक्ति सारे दु:ख, कलह व संताप को दूर कर सुख, सौभाग्य, शांति व समृद्धि देती है। कल अधिकमास (18 अगस्त से शुरू) में सोमवार को ऐसा ही शुभ संयोग बना है। सोमवार के साथ अधिकमास की एकादशी तिथि का अचूक योग बना है।

यहां बताया जा रहा है इस शुभ योग में भगवान विष्णु व शिव की पूजा का ऐसा उपाय जो आसान भी है और जल्द सौभाग्य देने वाला भी। यह उपाय है - भगवान शिव व विष्णु की विशेष मंत्र के साथ पंचामृत पूजा। पंचामृत पूजा में भगवान शिव व विष्णु को दूध, दही, शहद, घी व शक्कर चढ़ाना सेहत, संतान, आयु, श्री व वैभव के साथ सारी परेशानियों को दूर करने वाली मानी गई है। जानिए यह सरल उपाय -

- सोमवार व एकादशी संयोग में यथासंभव सुबह-शाम स्नान के बाद भगवान शिव व विष्णु को प्रिय विशेष सामग्रियों से पूजा करें। इनमें भगवान विष्णु को केसरिया चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल व पीले पकवान तो भगवान शिव को सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, सफेद फूल, बिल्वपत्र के साथ सफेद मिठाई चढ़ाएं।

- इन सामग्रियों को चढ़ाने से पहले दोनों देवताओं का दूध, दही, शक्कर, शहद व घी मिलाकर बने पंचामृत से नीचे लिखा वेद मंत्र बोल स्नान कराएं-

ॐ पंचनद्यः सरस्वतीमपियन्तिसस्त्रोतसः ।

सरस्वतीतुपंचधासोदेशेभवत्सरित् ।

- पूजा व पंचामृत स्नान के बाद भगवान शिव व विष्णु से घर-परिवार की खुशहाली की कामना के साथ आरती व क्षमाप्रार्थना करें।

jai vishnu devae namha

सांसारिक जीवन के लिए त्रिदेवों की उपासना रचना या सृजन, पालन और बुराइयों व बुरे भावों के संहार की ही प्रेरणा से जुड़ी है। इनमें भगवान विष्णु जगतपालक के रूप में पूजनीय है। शास्त्रों के मुताबिक खासतौर पर एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की उपासना सुख, शांति, सद्भाव और खुशहाली लाने वाली मानी गई है।

इसी कड़ी में तीन साल में आने वाली अधिकमास की कमला एकादशी पर भगवान विष्णु की भक्ति मंगलकारी मानी जाती है। इस तिथि व बाकी अधिकमास में भी भगवान विष्णु की उपासना में विशेष और आसान विष्णु मंत्रों का स्मरण कुटुंब की सुख-समृद्धि व शांति के लिए बहुत ही शुभ माने गये है।

खासतौर पर वक्त की कमी या किसी मजबूरी में शास्त्रोक्त तरीकों से न कर पाने की स्थिति में यहां भगवान विष्णु की तस्वीरों के दर्शन कर साथ बताए पूजा व 3 विष्णु मंत्रों के जप के उपाय कर मुरादें पूरी की जा सकती है -

- सुबह और शाम दोनों ही वक्त स्नान के बाद देव मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को केसर या चंदन मिले जल से स्नानस्नान कराएं।

- चंदन, पीले फूल, पीला वस्त्र, पीले फल चढ़ाएं।


ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।। इस मंत्र से धन कामना पूरी हो जाती है।


नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात।। यह विष्णु गायत्री मंत्र सारे कलह दूर कर सुख-सफलता की कामना पूरी करता है।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाड्गंम् लक्ष्मीकातं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यंम्र्। वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम्।। यह मंत्र शांति, धैर्य, विवेक व समृद्धि देता है।

हिंदू धर्म मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव की उपासना सांसारिक जीवन की सभी इच्छाओं को पूरा करती है। इसी सिलसिले में अक्सर कई लोग दायित्वों के पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्याद धन बटोर सफल जीवन जीने की चाहत रखते हैं।

धर्म के नजरिए से धनवान बनने के लिए जरूरी होता है कि कर्म और दायित्वों के बीच सही तालमेल बैठाया जाए। वरना अर्थ या धन के बिना जीवन के अन्य पुरुषार्थों को पाना मुश्किल हो सकता है।

शिव जगदगुरु हैं। इसलिए माना जाता है कि सोमवार को शिव भक्ति के खास उपाय अपनाने के शुभ प्रभावों से बना ज्ञान व कर्म का बेहतर गठजोड़ धन व तरक्की देने वाला साबित होता है। ये आसान उपाय हर रोज अपनाना भी शुभ होते हैं।

सुबह या शाम स्नान कर भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग को पवित्र जल यथासंभव गंगाजल में दूध मिलाकर स्नान कराएं।

स्नान कराने के बाद शिव को गंध, अक्षत, सफेद वस्त्र चढ़ाने के अलावा धन कामना पूरी करने के लिए यहां बताए जा रहे विशेष फूल-पत्रों या किसी 1 को शिव को जरूर चढ़ाएं। ये हैं - कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प। शास्त्रों के मुताबिक शिव को मात्र ये 4 फूल-पत्र चढ़ाने से अपार लक्ष्मी प्राप्ति होने के साथ सारे पाप भी धुल जाते हैं। शिव की इन विशेष पत्र-फूलों से पूजा के बाद शिव मंत्र, स्त्रोत या स्तुति कर कर्पूर और घी के दीप से आरती कर जीवन से दरिद्रता के नाश की कामना और लक्ष्मी की प्रसन्नता की कामना करें।

Saturday, August 25, 2012

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता है। वैसे भगवान विष्णु का स्वरूप सात्विक यानी शांत, कोमल और आनंदमयी बताया गया है। वहीं उनके स्वरूप का दूसरा पहलू यह भी प्रकट होता है कि भगवान विष्णु भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप की महिमा में शास्त्रों में लिखा गया है -

शान्ताकारं भुजगशयनं

यानी शांत स्वरूप और भुजंग यानी शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।

भगवान विष्णु के इस निराले स्वरूप पर गौर करें तो यह सवाल या तर्क भी मन में उठता है कि आखिर काल के साये में रहकर भी क्या कोई बिना किसी बेचैनी के शयन कर सकता हैं? किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन व व्यवहार से जुड़े कुछ रहस्य व छुपे संदेश हैं -

असल में, जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक परेशानियों का सिलसिला भी चलता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है। इनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है।

भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा।

इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चित मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानी जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।

jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक मान...

jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक मान...: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक धर्म की रक्षा के लिए सतयुग से ...


हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक धर्म की रक्षा के लिए सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए, जिनमें से दस प्रमुख अवतार 'दशावतार' के रूप में प्रसिद्ध हैं।

18 अगस्त से शुरू भगवान विष्णु की ही भक्ति के विशेष काल अधिकमास में इन विष्णु अवतारों का स्मरण भी सारे सांसारिक दुःख व कलह को दूर करने वाला माना गया है

वराह अवतार - वराह यानी सुअर का रूप लेकर भगवान ने समुद्र में जाकर हिरण्याक्ष राक्षस को मार पृथ्वी की रक्षा की।

 नरसिंह अवतार - भगवान विष्णु ने आधे शेर और आधे इंसान के रूप में धर्म विरोधी बने हिरण्यकशिपु को मार भक्त प्रहलाद को बचाया।

वामन अवतार - बौने ब्राह्मण के रूप में भगवान विष्णु ने दानव राज व दानवीर राजा बलि से देवताओं की रक्षा के लिए दान में तीन पग में भूमि़, आकाश व स्वयं राजा बलि को भी समर्पित होने को विवश कर दिया।

परशुराम अवतार - ब्राह्मण योद्धा के रूप में भगवान विष्णु ने अहंकारी व अत्याचारी हुए क्षत्रियों का नाश कर धर्म की रक्षा की।

श्रीराम अवतार - मानवीय रूप में भगवान राम ने मर्यादा को स्थापित करते हुए अधर्मी रावण का अंत कर दिया। इसी वजह से वे मर्यादा पुरुषोत्तम पुकारे गए।

श्रीकृष्ण अवतार - भगवान विष्णु का यह अवतार 16 कलाओं से पूर्ण माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अधर्मी कंस का वध करने के साथ कर्मयोग का महान सूत्र जगत को सिखाया।

बुद्ध अवतार - क्षमा, शील और शांति स्वरूप इस अवतार के जरिए भगवान विष्णु ने धर्म व समाज को नुकसान पहुंचा रही बुराईयों का अंत किया।

कल्कि अवतार ( यह अवतार कलयुग के अंत में होना माना गया है)। माना जाता है कि इस अवतार के जरिए धर्मभ्रष्ट हुए हर जन का संहार होगा व सृष्टि की नई शुरुआत होगी

मत्स्य अवतारः सतयुग में भगवान विष्णु ने मछली का रूप लेकर धर्म व वेद की रक्षा करते हुए मनु महाराज की नाव को प्रलय से बचाया व सृष्टि को आगे बढ़ाने का ज्ञान व प्रेरणा दी।

कूर्म अवतार - भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान कछुए के रूप में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर मथनी की तरह रखा व वासुकी नाग को रस्सी की तरह उपयोग कर देव-दानवों ने सागर को मथा, जिससे जगत कल्याण करने वाली मां लक्ष्मी व अमृत कलश सहित 14 अनमोल रत्न मिले।


ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
यहां सर दे के होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है

प्रेम वालों ने कब वक्त पूछा
उनकी पूजा में, सुन ले ऐ उद्धव
यहां दम दम में होती है पूजा
सर झुकाने की फुर्सत नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
जो असल में हैं मस्ती में डूबे
उन्हें क्या परवाह ज़िंदगी की
जो उतरती है, चढ़ती है मस्ती
वो हकीकत में मस्ती नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
जिसकी नज़रों में हैं श्याम प्यारे
वो तो रहते हैं जग से न्यारे
जिसकी नज़रों में मोहन समाये
वो नज़र फिर तरसती नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
यहां सर दे के होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है —

श्री राधा को जिसने भुलाय़ा , उसने

अपना जनम गंवाय़ा !!
धन्य हुई वो वाणी जिसने ,
राधाश्य़ाम है गाया !!
उनका सुमिरन करे बिना , कब
मिलता है विश्राम !!
बोलो राधे-राधे राधे-जय श्री राधे श्याम !!

वो काला एक बासुँरी वाला, वो काला इक बासुँरी वाला
सुध बिसरा गया मोरि रे,
माखनचोर जो नंदकिशोर वो, कर गयों ओ रे मन की चोरी रे
कर गयों ओ रे मन की चोरी रे सुध बिसरा गया मोरि ....
कर गयों ओ रे मन की चोरी रे सुध बिसरा गया मोरि ....
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे.
पनघट पे मोरि बइयाँ मरोडी ....३
मैं बोली तो मेरी मटकी फोडी.
पइयाँ परु करु विनती मैं पर ..२
माने न इक वो मोरि
सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला, वो काला इक बासुँरी वाला...
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे....
छुप गयो फिर इक तान सुना के ...३
कहा गयो एक बाण चला के,
गोकुल ढूंढ़ा, मैनें मथुरा ढूंढ़ी ..२
कोइ नगरियाँ ना छोडी रे, सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
सुध बिसरा गया मोरि रे.... , वो काला इक बासुँरी वाला,
वो काला इक बासुँरी वाला सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला ,
वो काला इक बासुँरी वाला... माख्ननचोर जो,
नंदकिशोर वो, कर गयों औरे मन की चोरी रे

Thursday, August 23, 2012


शास्त्रों में लिखा है कि जहां भगवान विष्णु कृपा होती है, वहां मां लक्ष्मी भी वास करने लगती है। इसलिए खासतौर पर भगवान विष्णु स्वरूप श्रीशालिग्राम पूजा सुख-समृद्धि, शांति व लक्ष्मी कृपा देने वाली होती है। इस धार्मिक दर्शन व उपाय में एक जीवन सूत्र यह भी मिलता है कि घर में शांति कायम रखने और कलह न करने से भरपूर सुख-वैभव मिलता है।

घर-परिवार में ऐसी ही खुशहाली के लिए वर्तमान में जारी अधिकमास (18 अगस्त से शुरू) के शुक्रवार के दिन खासतौर पर धन कामना पूरी करने के लिए शाम के वक्त भगवान विष्णु का रूप शालिग्राम शिला की पूजा का विशेष उपाय अपनाएं व विष्णु मंत्र का ध्यान करेंशाम को स्नान कर विष्णु रूप शालिग्राम शिला को पहले पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, घी और शक्कर के मिश्रण से स्नान कराकर विशेष रूप से केसर मिले चन्दन जल से स्नान कराएं। स्नान के बाद भगवान शालिग्राम की गंध, सफेद तिल, फूल, वस्त्र, तुलसी के पत्ते, दूर्वा, इत्र आदि लगाकर पूजा करें। अगली तस्वीर के साथ बताया भगवान विष्णु का मंत्र बोलें। बाद भगवान शालिग्राम की आरती धूप और घी के दीप जलाकर करें। अंत में शालिग्राम को स्नान कराएं चरणामृत का सेवन जरूर करें। इससे न केवल तीर्थजल के समान पुण्य मिलता है बल्कि सुख-समृद्धि भी आती है। अगली तस्वीर पर क्लिक कर जानिए शालग्राम स्मरण का विशेष मंत्र- प्रणवेन च लक्ष्यो वै गायत्री च गदाधर:। शालग्रामनिवासी च शालग्रामस्तथैव च।। जलशायी योगशायी शेषशायी कुशेशय:। महीभर्ता च कार्यं च कारणं पृथिवीधर:।।

हिन्दू धर्मग्रंथ भगवान विष्णु की बेजोड़ शक्तियों व स्वरूपों की महिमा उजागर करते हैं। जहां विष्णु का विराट स्वरूप कर्म व धर्म की राह बताता है तो उनके सारे चमत्कारी अवतार नैतिक मूल्यों और बेहतर आचरण के सबक के जरिए सही तरीके से जीना सिखाते हैं।

यही वजह है कि विष्णु उपासना की विशेष तिथियों व घड़ियों में भगवान विष्णु का स्मरण मात्र ही मनोरथ सिद्धि करने वाला माना गया है। 18 अगस्त से 16 सितंबर तक चलने वाला अधिकमास भी ऐसा ही पुण्यकाल है। इसमें खासतौर पर शास्त्रों में बताई एक विष्णु मंत्र स्तुति के शक्तिशाली मंत्रों को हर सुबह बोलना किसी भी तरह की परेशानी या संकट से बचने में बहुत ही चमत्कारी माना गया है। यही नहीं ये मंत्र केवल धूप, दीप लगाकर बोलने मात्र से ही मनचाही मुरादें पूरी कर देते है। यह मंत्र स्तुति विष्णु पञ्जर स्तोत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है।

धर्म मान्यता है कि इसके प्रभाव से ही जगतजन
नी मां कात्त्यायनी ने भी रक्तबीज, महिषासुर जैसे राक्षसों को मार गिराया।

प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम्। नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्।। प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। गदां कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ नमोस्तु ते।। याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम।। प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्।। उत्तरस्यां जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:। खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे।। नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:। पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम्।। प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर। चन्द्रसूर्य समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा।। नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन्। वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्।। वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोस्तुते। वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन।। मां रक्षस्वाजित सद नमस्तेस्त्वपराजित। विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं रसातले।। अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते। करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम्।। कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम। एतदुक्तं शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्।। पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या वृषध्वज। नाशयामास सा येन चामरं महिषासुरम्।। दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान्। एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा।।

Wednesday, August 22, 2012

धर्म के नजरिए से पुरुषार्थ या कर्म या मेहनत ही वह राह है, जिस पर आगे चलकर जीवन के सारे सुख और आनंद पाना संभव हो पाता है। वहीं कर्म के लिए ऐसा संकल्प भाव जगाना ज्ञान के बूते ही संभव हो पाता है। पौराणिक मान्यताओं में जगतपालक भगवान विष्णु व उसने सारे अवतार जिनमें खासतौर पर भगवान कृष्ण ने कर्म और ज्ञान के ऐसे सबक सिखाए जो ज़िंदगी की हर मुश्किलों को आसान बना देते हैं।


18 से शुरू हुआ अधिकमास खासतौर पर इन दोनों देवताओं की भक्ति की शुभ घड़ी है। किंतु अधिकमास में गुरुवार को ही जगतगुरु साईं बाबा की उपासना का दुर्लभ संयोग बना है। साईं बाबा ने भी ज्ञान, कर्म व भक्ति रूपी संकल्प को जीवन के हर पहलू से जोड़कर सुख-सफलता के ऐसे ही अहम सूत्र सिखाए, जिनमें सभी की भलाई का भाव छिपा है।


धर्म आस्था से साईं बाबा भगवान दत्तात्रेय के अवतार माने जाते हैं और भगवान दत्तात्रेय त्रिगुण शक्तियों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप। इसलिए खासतौर पर धर्म परंपराओं में अधिकमास में भगवान विष्णु और साईं बाबा के जगतपालक स्वरूप का ध्यान एक ही विशेष मंत्रों से करने का महत्व बताय गया है। इनके शुभ प्रभाव से शांति-सुख की इच्छा पूरी होती है और हर परेशानी दूर हो जाती है। जानिए अधिकमास-गुरुवार के दुर्लभ संयोग में भगवान विष्णु और साईं बाबा को याद करने के मंत्र विशेष व तरीका -


- गुरुवार को भगवान विष्णु और साईं बाबा के चरणों में दूध-जल, पीला या केसरिया चंदन, पीले फूल चढ़ाएं। यथाशक्ति प्रसाद चढ़ाकर अगली मनमोहक तस्वीर के साथ बताए साईं मंत्रों को भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए बोलें।ॐ श्री साईं जगत: पित्रे नम: (जगत पालन करने वाले साईं बाबा को नमन) ॐ श्री साईं योगक्षेमवहाय नम: (हर सुख देने के साथ उसकी रक्षा भी करने वाले साईंबाबा) ॐ श्री साईं प्रीतिवर्द्धनाय नम: (प्रेम भाव बढाने वाले साईंबाबा को नमन) ॐ श्री साईं भक्ताभय प्रदाय नम: (अभय दान देने वाले हैं साईं बाबा को नमन)

Tuesday, August 21, 2012

किसी भी काम में संकल्प के बिना कामयाबी मुश्किल हो जाती है। संकल्प के साथ ही योग्यता और कुशलता भी जरूरी है। मजबूत, दक्ष और समर्पित व्यक्ति ही संकल्प को पूरा कर सकता है और सफलता का अधिकारी होता है।

धार्मिक नजरिए से व्रत भी संकल्प का पर्याय है। व्रत पूरा करने और मनचाहे नतीजे पाने के लिए भी संकल्प, समर्पण और योग्यता जरूरी है। हर धर्म का व्यक्ति व्रतों का पालन करता है। इनके द्वारा वह इच्छाओं को पूरा करना व परेशानियों से निजात पाना चाहता है। हालांकि वक्त बदलने के साथ धार्मिक व्रतों में समय और सुविधाओं के मुताबिक बदलाव देखा गया है। किंतु हिन्दू धर्म शास्त्रों में धार्मिक व्रतों को किसे रखना चाहिए, इस संबंध में भी साफ तौर पर बताया गया है। ऐसे लोग भगवान की भक्ति से मनचाहा सुख-सौभाग्य पाते हैं।

व्रत-उपवास के यही शास्त्रोक्त बातें वर्तमान में जारी अधिकमास के लिए भी लागू होते हैं। जानिए इस विशेष घड़ी में व्रत-उपवास से किन-किन लोगों के लिए भाग्यशाली साबित होते हैं -

- वह व्यक्ति जो अपने वर्णाश्रम के आचार-विचार में रहते हों। यानी व्यक्ति का आचरण वर्णाश्रम के मुताबिक नियत उम्र, धर्म और संस्कारों के अनुरुप हो। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आदि अवस्थाओं के लिए नियत पवित्र आचरणों का पालन करने वाला। इस अवधि का वर्तमान संदर्भ में विचार करें।

- जो व्यक्ति झूठ-कपट या छल से दूर रहता हो।

- जो व्यक्ति लालच न रखता हो।

- ऐसा व्यक्ति जो मन, बोल और काम में सत्य को अपनाता हो।

- जो व्यक्ति पूरे जगत के लिए परोपकार और हित की भावना रखता हो।

- वेदों को मानने और सम्मान करने वाला।

- बुद्धिमान और संकल्पवान व्यक्ति जो पूरी तरह से विधि-विधान से धर्म-कर्म को करने वाला हो।

इस तरह के गुण रखने वाले कोई भी स्त्री या पुरुष, चाहे वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र ही क्यों न हों, व्रत के अधिकारी हैं।

इनके अलावा शास्त्रों में विवाहित स्त्रियों के व्रत रखने के संबंध में बहुत अच्छी बात बताई गई है, जिसके मुताबिक सौभाग्यवती स्त्री के लिए पतिव्रत ही सर्वश्रेष्ठ और कल्याण करने वाला कहा गया है। पति की सेवा ही किसी भी यज्ञ, व्रत और उपासना से श्रेष्ठ है। इससे वह स्त्री स्वर्ग और देवलोक को पा सकती है। फिर भी अगर कोई महिला व्रत करने की इच्छुक हो तो वह पति की आज्ञा से व्रत पालन कर सकती है।

आधुनिक संदर्भों में भी यहीं बातें बहुत प्रासंगिक सिद्ध होती है। इनको धार्मिक और व्यावहारिक जीवन में अपनाकर चरित्र और जीवन में आए दोष और बुराइयों को दूर कर सकते हैं। धर्म विरोधी विचारों वाले लोग इन बातों का दोष दर्शन और छिद्रान्वेषण द्वारा उपहास कर सकते हैं। लेकिन धर्म पालन करने वाले व्यक्तियों के लिए इन बातों का पालन उतना ही आसान है।

OM GOVINDAE VIDHMAE

OM GOVINDAE VIDHMAE

Gopi Vallabhaya Dheemahe Thanno Krishna Prachodayath.

Monday, August 20, 2012

KRISHNA GYATRI MANTAR

JAI SHREE KRISHNA

Om Dhamodharaya Vidhmahe Rukmani Vallabhay Dheemahe Thanno Krishna Prachodayath.

RADHEY RADHEY

[This year, in honor of Sri Radhastami, Srila Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja gave two discourses on the glories of Srimati Radhika; one on the eve of Radhastami and one on the following morning. Srila Maharaja spoke in his mother tongue, Hindi, and his words were simultaneously translated by Akhilesh dasa Adhikari into the headphones of the English speaking devotees in the audience. Today you will receive his discourse of Radhastami eve, and in a couple of days, the Radhastami morning discourse.]
Sri Krsna was present at Vamsivata, the place of the rasa dance, but He was not happy. He wanted to perform loving pastimes but He was all alone. Srimati Radharani then appeared from His left side, and Sankara (Siva), Sri Gopisvara, appeared from His right side as guru-tattva. Radha ran to Krsna with great pleasure. Ra is for anuragi, meaning ‘deep spiritual loving attachment,’ and dha is for dhavati, which means ‘to run very fast, with great eagerness.’ Krsna worshiped that very Radha, and therefore Her name became Radhika.
When Krsna first appeared in Gokula, Narada came for His darsana and thought, “Krsna never appears alone; His hladini-sakti must also have been born.”
In the meantime, Vrsabhanu Maharaja was staying in Raval, where he daily took bath in the river Yamuna. One day, fifteen days after the birth of Lord Krsna, just after taking his bath, Vrsabhanu Maharaja saw a thousand-petaled lotus flower in the Jamuna. In the middle of that lotus flower was a beautiful baby girl sucking Her thumb and moving Her hands and legs. Seeing Her, he immediately picked Her up, took Her in his arms, brought Her to his wife Kirtika, and placed Her on Kirtika’s lap. Not many people know Radhika as the daughter of Kirtika-devi; they mostly know Her as the dear daughter of Vrsabhanu Maharaja.
Just after the appearance of that baby girl, Narada went to Vrsabhanu Maharaja’s home and inquired from him, “Has there been any child born of you?”
Vrsabhanu Maharaja replied, “Yes, a son called Sridama.”
Narada then blessed Sridama and asked, “Has there been any child born more recently?”
Vrsabhanu Maharaja replied, “Yes, a few days ago a daughter was born; I was blessed with a daughter.”
Narada asked Vrsabhanu Maharaja, “May I see your daughter? I want to do Her chart and bless Her. I will describe Her future qualities. Please gather candana, Yamuna water, and other paraphernalia so that I can perform a ceremony to bless Her.”
Vrsabhanu Maharaja then went inside the house and Narada entered a trance of meditation. While he was meditating, that baby girl manifested an exquisite youthful form. Lalita and Visakha were also present, and Lalita told him, “Why are you continuing to meditate; stand up and offer your obeisances.”
Narada then received a one-moment darsana of Radhika, but because his thirst to see Her was not quenched, he went to Narada-kunda and performed austerities for thousands of years, without eating, and continually chanting Radha mantra-japa. At that time Radharani appeared to Him, gave him Her service, and he became Naradiya gopi. We know these details from sastra.
Srimad-Bhagavatam states, “Ete camsa-kalah pumsah krsnas tu bhagavan svayam – Krsna is the original Supreme Personality of Godhead.” Although Sri Krsna is the supreme worshipful Lord of all, He Himself worships Sri Radha. The aim of the author, Srila Vyasadeva, in manifesting Srimad-Bhagavatam was to describe Sri Krsna’s pastimes with Srimati Radhika and to establish Her glories. Srila Sanatana Gosvami and Srila Visvanatha Cakravarti Thakura say that rasa-lila, the most exalted pastime in Srimad-Bhagavatam, was performed for the sake of Srimati Radhika. Krsna personally told Her, “It is for You that I reside in Vraja.”
sata-koti gopi madhava-man
rakhite narilo kori jatan (verse 11 of Varaja-vipine)
[“Millions of cowherd damsels are unable to please the mind of Madhava although endeavoring to do so.”
“The flute song calls the name of Radhika – ‘Come here, come here, Radhe!’ Syama calls out in the night. (verse 12)
“When the sri-rasa-mandala comes to a halt in search of Beloved Radha He then goes. (verse 13)
“Please appear, O Radhe! Kindly save My life!” calling out while weeping Kan in the forest. (verse 14)
“In a secluded grove embracing Radhika regaining His life and soul, Hari is relieved. (verse 15)
“Saying, ‘Without You, where is the rasa dance? Only because of You do I live in Vraja.” (verse 16)
“At the lotus feet of such a Radhika this Bhaktivinoda says weeping, (verse 17)
“’Among Your personal associates please count me also; making me Your maidservant keep me as Your own.’” (verse 18)]
Even though millions of gopis were also present in the arena of rasa, they could not attract Krsna’s mind when Radhika disappeared from rasa-lila. Radharani first disappeared from the rasa-lila, in maan; Krsna did not disappear from there alone. He left the rasa dance to search for Her. Very worried and crying, “Radhe Radhe,” He finally found Her.
The other gopis, who had left the rasa dance to search for Krsna, now saw two sets of footprints. One set was Krsna’s footprints, and the other, smaller and more delicate set belonged to a lady.
Lalita and Visakha and the other gopis of Sri Radha’s party, who had been searching both Radha and Krsna, knew that this second set of footprints belonged to Srimati Radhika. Very pleased, they thought, “Oh, Krsna is not alone; He has taken our prana-priya (dearmost) sakhi with Him. At the same time, however, they were sad, thinking, “We can’t serve Her now, because we are not with Her.”
The other gopis, those who are not in Radha’s party, uttered this verse:
anayaradhito nunam
bhagavan harir isvarah
yan no vihaya govindah
prito yam anayad rahah
[“Certainly this particular gopi has perfectly worshiped the all-powerful Personality of Godhead, Govinda, since He was so pleased with Her that He abandoned the rest of us and brought Her to a secluded place.” (Srimad-Bhagavatam, 10.30.28)]
“Oh, this girl who is with Krsna is so fortunate. Krsna has taken Her and has thus broken our pride (saubhagya-mada).” They understood that this girl was superior to them: “She had surely served Narayana and pleased Him, and due to Narayana’s blessing upon Her, Krsna took Her alone.” Thus, Radhika is the topmost of all of Krsna’s beloveds, and rasa-lila was performed in order to establish Her superiority. It was performed for Her pleasure.
After all the gopis sang their song of separation, Krsna appeared to them and uttered this verse:
na paraye 'ham niravadya-samyujam
sva-sadhu-krtyam vibudhayusapi vah
ya mabhajan durjara-geha-srnkhalah
samvrscya tad vaù pratiyatu sadhuna
[“I am not able to repay My debt for your spotless service, even within a lifetime of Brahma. Your connection with Me is beyond reproach. You have worshiped Me, cutting off all domestic ties, which are difficult to break. Therefore, please let your own glorious deeds be your compensation. (Srimad-Bhagavatam, 10.32.22)]
“Oh gopis, for My sake you left your shyness, the instructions of your superiors, and your lives as householders, which were meant to keep you bound. By your saintly nature, may you free Me from My debt.”
One of the ways in which Radhika pleases Krsna is by entering into the loving stage called maan, Her sulky mood of affectionate jealous anger towards Him. Sometimes Her maan has no external cause, and sometimes it has a cause. The vipaksa (rival) gopis headed by Candravali criticize Radharani by saying, “She doesn’t feel ashamed or shy to do maan? I don’t want to see Her face.” On the other hand, Radhika criticizes Candravali, “Candravali knows nothing about pleasing a beloved. She doesn’t know how to do maan.” Candravali’s affection for Krsna is grta-sneha, very smooth. Radhika’s affection is madhu-sneha, like madhu, honey, which is smooth and also sweet. Candravali’s affection is compared with ghee, which needs sugar to become sweet, but madhu is sweet on its own.
happy_krsna_bw
The stages of Radhika’s love are adiruddha, mohan and madan mahabhava. These stages of love are so elevated that Krsna Himself cannot experience them. Therefore, in order relish them, Krsna appears in Sri Navadvipa dhama, along with His associates, in the form of Sri Caitanya Mahaprabhu. For this same purpose, Mahaprabhu went to see Sri Raya Ramananda at Godavari and asked him many questions.
In Sri Krsna’s pastimes, Raya Ramananda is Visakha-devi, Radharani’s gopi friend, who understands all of Radharani’s moods. This very same Visakha, in the form of Raya Ramananda, trained Mahaprabhu in realizing these moods. After their meeting, Mahaprabhu told him, “I am so pleased; this is why I came. My desires are now fulfilled. Please come to Jagannatha Puri and help Me there.”
Tomorrow morning we will sing the glories of Radha and perform abhiseka (Her bathing ceremony). We will also offer puspanjali (the flowers of our hearts) by describing Her glories in detail. Then we will go out with nagara sankirtana to householder devotees’ homes to collect gifts for Srimati Radhika, as we do every year. Then we will return to the Matha, with kirtana, and bring all the presents to the altar. Then we will all sit together and participate in kirtana in the Matha.

RADHA GYATRI MANTAR

Aum Vrashbhanujaye Vidmahe
Krishnapriyaye Dhi-Mahi
Tanno Radha Prachodayat

VISHNU MANTAR

SHAANTAAKAARAM
BHUJAGASHAYANAM

PADMANAABHAM SURESHAM


VISHWAADHAARAM
GAGANASADRASHAM

MEGHAVARNAM SHUBHAANGAM

LAKSHMIKAANTAM
KAMALANAYANAM

YOGIBHIRDHYAANAGAMYAM

VANDE VISHNUM

BHAVABHAYAHARAM

SARVALOKAIKANAATHAM

jai shree bankey bihari jiiiii

बांके बिहारी मंदिर - भगवान श्रीकृष्ण का यह मंदिर वृंदावन के साथ ही पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इसका मंदिर निर्माण सन् 1864 में पूर्ण हुआ। श्रीबांकेबिहारी को कृष्ण भक्त स्वामी हरिदास द्वारा प्रतिष्ठित किया गया। स्वामी हरिदास अपने भक्तिमय भजन के साथ ही इतिहास प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के गुरु के रूप में भी जाने जाते हैं।

Sunday, August 19, 2012

Add caption
बलिहारी बलिहारी सब संतन की..

||...संत का स्वभाव ही है परोपकार.
सर्वस्व लुट जाए, नाम, प्रतिष्ठा सब समाप्त हो जाए लेकिन जीव कल्याण का
व्रत उनका स्वभाव ही है.. भक्त हरिदास को गुंडों ने इतना मारा कि मारा हुआ
समझ कर नदी में फेंक दिया लेकिन हरिदास जी
के मुंह से यही शब्द निकले.. 'प्रभु इनके ऊपर दया करो, ये अज्ञानी हैं..'
संत उसमान के ऊपर राख का टोकरा फेंक दिया. वह ख़ुशी से नाचने लगे, कहने
लगे.. 'अरे मैं तो अंगारे फेंकने लायक हूँ, यदि हर क्षण मेरे द्वारा प्रभु
का स्मरण नहीं होता तो इस शरीर को ही जलाकर राख कर देना चाहिए...' ऐसे होते
हैं संत, बेचारे कृपा के अतिरिक्त कुछ कर ही नहीं सकते. गालियाँ दो तो भी
प्यार और प्यार के बदले तो प्यार देते ही हैं...||

TRIPUTI BALA JI MANDIR

भगवान विष्णु को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कहीं श्रीराम के रूप में तो कहीं श्रीकृष्ण के रूप में। तिरूपति बालाजी भी भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। भगवान तिरूपति बालाजी का मंदिर दक्षिण भारत में स्थित है। इस मंदिर को देश का सबसे अमीर मंदिर होने का भी दर्जा प्राप्त है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां सबसे अधिक चढ़ावा आता है।

भगवान तिरूपति बालाजी भक्तों की मन्नतें पूरी करते हैं और भक्त भेंट स्वरूप अपने बाल और धन भगवान को अर्पित करते हैं। भगवान तिरूपति के मंदिर में पूरे वर्ष समान भीड़ रहती है।- भारत का सबसे धनी और संसार के सबसे धनी मंदिरों में आंध्रप्रदेश में तिरूपति नामक स्थान पर भगवान विष्णु (वैंकटेश) का मंदिर है। - वैंकटेश भगवान को कलियुग में बालाजी नाम से भी जाना गया है।
तमिल भाषा में तिरू अथवा थिरू शब्द का वही अर्थ है जो संस्कृत में श्री है। श्री शब्द, धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी के लिये प्रयुक्त होता है। - तिरूपति देवस्थान बोर्ड में लगभग पच्चीस हजार कर्मचारी नियुक्त हैं।
इस मंदिर में सर्वाधिक चढ़ावा आना अपने आपमें व्यक्त करता है कि यहां जनसाधारण की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्ट दूर होते हैं। - भारत के सभी मंदिरों की अपेक्षा सबसे अधिक चढ़ावा तिरूपति मंदिर में आता है इसलिए इसे देश का सबसे अमीर मंदिर भी कहा जाता है।

JAI SHREE GOVARDHAN DHARI KI

भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने तथा इंद्र की पूजा न करने का कहकर इंद्र का घमण्ड तोड़ा था। चूंकि ग्रामवासियों द्वारा पूजित होने पर ही इंद्र वहां वर्षा करते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमण्ड तोड़कर उसे यह बताया कि वर्षा करना आपका मौलिक कर्तव्य है। इसके लिए कोई आपकी पूजा करे यह आवश्यक नहीं है।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने इंद्र को फल रहित कर्म करने का कर्तव्य बोध कराया था। इस संदर्भ का सार है कि सभी को अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक प्रकार से बिना किसी अतिरिक्त फल की अभिलाषा से करना चाहिए। चूंकि कर्तव्य का निर्वहन करना आपकी मौलिक जिम्मेदारी है।

जब श्रीकृष्ण ने अगुंली पर उठाया गोवर्धन

अच्छी वर्षा के लिए गोकुलवासी इंद्र को प्रसन्न करने के लिए उसकी पूजा करते थे। लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत का महत्व इंद्र से अधिक बताने पर जब ग्रामवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की तो इंद्र बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने गोकुलवासियों को सबक सीखाने के लिए भंयकर वर्षा की जिससे सारा गांव डूबने लगा।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को आश्रय प्रदान किया था तथा इंद्र का घमण्ड भी तोड़ा था। श्रीकृष्ण के वास्तविक स्वरूप को जानकर इंद्र ने उनकी स्तुति की तथा क्षमायाचना की। तब श्रीकृष्ण ने इंद्र को समझाया था कि सभी स्थानों पर समान रूप से वर्षा करना आपका कर्तव्य है इसके लिए मन में पूजा की अभिलाषा रखना सर्वथा अनुचित है

bhagwan kehte hai

भगवान कहते हैं :-
किसी को दुख देकर मुझसे अपने सुख की इच्छा मत
करना,
लेकिन
अगर किसी को इक पल का भी सुख देते हो
तो अपने दुख की चिंता मत करना ।

chan thukda hai mera shyam

इतना खुबसूरत चेहरा है तुम्हारा ,
हर भक्त दीवाना है , तुम्हारा ,
लोग कहते है की चाँद का टुकड़ा हो तुम ,
लेकिन हम कहते हैं की चाँद टुकड़ा है तुम्हारा....

DILDAR KANHAIYA MERA

dil ki dil me ye samayi hui,,,,,,,,,,
tasveer hai ye dildar teri,,,,,,,,
in prano ke andar gunji nahi,,,,,,,,,
murli dhwani ki jhankar koi,,,,,,,,,
ham karte karte haar gaye,,,,,,,
manmohan yeh manuhaar teri,,,,,,,
par sundar shyam tu reejha nahi,,,,,,,
balihare teri balihari teri,,,,,,,,,,, ,,
aaja nandlal taras rahe naina,,,,,,,,,, ,,,,

jai tulsi maa

हिन्दू धर्म परंपराओं के मुताबिक हाल में शुरू हुआ अधिकमास भगवान विष्णु की भक्ति व उपासना से खुशहाल जीवन की कामना पूरी करने का काल है। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी मानी गई हैं। हिन्दू धर्म के मुताबिक घर तुलसी का पौधा भी ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप है। इसलिए यह बड़ा ही पवित्र माना जाता है। यह भी मान्यता है घर के आंगन में तुलसी का पौधा  कलह और दरिद्रता दूर करता है। धर्मग्रंथों में तुलसी को विष्णुप्रिया कहा गया है। पुराणों में भी भगवान विष्णु और वृंदा यानी तुलसी के विवाह का वर्णन मिलता है।

वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं


वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। तुलसी के पत्ते खाने का सही तरीका यही बताया गया है कि जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारे की धातु के अंश होते हैं, जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे दांत और मुंह के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह अधिकमास में यह भी ध्यान रहे कि विष्णुप्रिया की आराधना कर धर्म लाभ तो पाएं लेकिन उसका सेवन सावधानी से कर स्वास्थ्य लाभ भी पाएं।