Sunday, November 17, 2013

धर्मग्रंथों में कार्तिक पूर्णिमा को बड़ा ही परम पुण्यदायी तिथि बताया है। इस बार यह तिथि 17 नवंबर, रविवार को है। पुराणों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। इसकी कथा इस प्रकार है-
कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं लेकिन उस मछली ने बोला-आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी।

तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो  राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है।

भगवान ने सत्यव्रत से कहा-सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सुक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना।

उस समय प्रश्न पुछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है।

भगवान श्रीकृष्ण की हर लीला किसी इंसान को उसकी गुण और शक्तियों को पहचान उनके जरिए सफलता पाने की प्रेरणा व संदेश देती हैं। शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति आनंद, सुख और सौभाग्य देने वाली ही मानी गई है। श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया कर्मयोग भी कलह और दु:खों से बचने का सबसे बेहतर और बेजोड़ सूत्र है। 

भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण या उनके अवतारों की भक्ति से ही हर कलह दूर करने और सरस, सहज, सौभाग्यशाली और सफल जीवन के लिए पूर्णिमा तिथि का भी खास महत्व है।

 सुबह भगवान श्रीकृष्ण को गंगाजल और पंचामृत स्नान कराएं।

- स्नान के बाद गंध, सुगंधित फूल, अक्षत, पीले वस्त्र चढ़ाएं।

- श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

सुगंधित धूप और दीप प्रज्जवलित कर नीचे लिखे कृष्ण मंत्रों का आस्था से  सौभाग्य व कलहनाश की कामना से स्मरण या जप करें -

ॐ नमो भगवते गोविन्दाय

ॐ  नमो भगवते नन्दपुत्राय

ॐ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम:

- मंत्र ध्यान के बाद भगवान कृष्ण या विष्णु की आरती करें। प्रसाद बांटे और ग्रहण करें। पूजा, आरती में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करें।