Sunday, September 23, 2012

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीराधाजन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसी दिन श्रीकृष्णप्रिया श्रीराधिकाजी का जन्म वृषभानुपुरी नामक नगर में हुआ था। धर्म शास्त्रों के अनुसार वृषभानुपुरी के राजा वृषभानु शास्त्रों के ज्ञाता तथा श्रीकृष्ण के आराधक थे। उनकी पत्नी श्रीकीर्तिदा के गर्भ से भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मध्याह्न काल में श्रीराधिकाजी का जन्म हुआ था। इस बार यह पर्व 23 सितंबर, रविवार को है।

व्रत विधान

श्रीराधाजन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर उनकी पूजा करें। श्रीराधाकृष्ण के मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, तोरण आदि अर्पित करें तथा श्रीराधाकृष्ण की प्रतिमा को सुगंधित पुष्प, धूप, गंध आदि से सुसज्जित करें। मंदिर के बीच में पांच रंगों से मंडप बनाकर उसके अंदर सोलह दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं। उस कमलयंत्र के बीच में श्रीराधाकृष्ण की युगल मूर्ति पश्चिम दिशा में मुख कर स्थापित करें तत्पश्चात अपनी शक्ति के अनुसार पूजा की सामग्री से उनकी पूजा अर्चना कर नैवेद्य चढ़ाएं। दिन में इस प्रकार पूजा करने के पश्चात रात में जागरण करें। जागरण के दौरान भक्तिपूर्वक श्रीकृष्ण व राधा के भजनों को सुनें।

शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य इस प्रकार श्रीराधाष्टमी का व्रत करता है उसके घर सदा लक्ष्मी निवास करती है। यह व्रत सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है। जो भक्त इस व्रत को करते हैं उसे विष्णुलोक में स्थान मिलता है।

राधा न होती तो कुंज गली भी
ऐसी निराली न होती
राधा के नैना न रोते तो
जमुना ऐसी काली न होती
सावन तो होता जुले न होते

राधा के संग नटवर जुले ना होते
सारा जीवन लूटन के वोह भीखारन
धनिकों की राजधानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की…

भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कृष्ण प्रिया राधाजी का जन्म हुआ था,अत: यह दिन राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है।

बरसाना मथुरा से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा जी की जन्म स्थली है। यह पर्वत के ढ़लाऊ हिस्से में बसा हुआ है। इस पर्वत को ब्रह्मा पर्वत के नाम से जाना जाता है।

बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का सालों भर तांता लगा रहता है। श्रद्धालु इस दिन बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं तथा लाडली जी राधारानी के मंदिर में दर्शन कर खुशी मनाते हैं।

दिन के अलावा पूरी रात बरसाना में गहमागहमी रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं।
ब्रज भूमि पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपना यौवन बिताया।

जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो ! मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!

तन्हाई की कब्रों में अब,दफ़्न हुए सारे अरमां !
दम निकले उसकी चरणों में,घर में जिसके राधा पूजा हो !

जीवन के धुंधले दर्पण में ,पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!

पंकज पथिक प्रेम का मारा,अथाह नीर में कुम्हलाया !
नैवेद्य- पात्र में उसे सजा लो,जब भी कोई राधा पूजा हो !

जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!

अस्तित्व हीन पंकज पूजा बिन,पंकज बिन सूनी पूजा !
खो जाओ एक दूजे में तुम,जहाँ भी पावन राधा पूजा हो !

जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!

कीचड़ का मै रहने वाला,तूं है प्रमाणशासनेश्वरी !
एक राह के दोनों राही,तुम ही तो मेरी पूजा हो !

जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!

प्रेम राग हर दिशि में गूंजे,हो जाये जग मतवाला !
“राह” की बस अर्ज़ यही है,घर-घर प्रेम की पूजा हो !

जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो_______