Wednesday, May 8, 2013

इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने की आपाधापी में आज की व्यस्त दिनचर्या और तेज जीवनशैली अनचाहे तनाव व दबाव की वजह बनती है। हर व्यक्ति मानसिक बेचैनी में डूबा होता है, किंतु सतही तौर पर वह सामान्य दिखाई देता है। कभी-कभी व्यग्रता इतनी बढ़ जाती है कि वह गुस्से या हिंसा के रूप में बाहर निकलती है, लेकिन बात में पछतावा देती है।

हिन्दू धर्मशास्त्र श्रीमद्भगवदगीता के श्लोक में मन के संयम से सुख-सुकून पाने के लिए ही एक छोटे से उपाय की बड़ी अहमियत बताई गई है।

श्रीमद्भगवदगीता में ऐसे ही मानसिक असंतुलन से बचने का बेहतर उपाय बताया गया है- ध्यान। सरल शब्दों में ध्यान का मतलब होता है कि मन को साधना यानी मन को चिंताओं, बेचैनी और बुरे विचारों से हटाकर सकारात्मक सोच पर केन्द्रित या एकाग्र करना। विचारों की गति पर नियंत्रण और संयम से दिल-दिमाग को सुकून पहुंचाने का अभ्यास भी ध्यान है। 

 

जिसमें लिखा गया है -

 

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता

 

इसमें व्यावहारिक जीवन के लिए संकेत यही है कि मन को काबू करने से ही सभी इन्द्रियां भी नियंत्रित हो जाती है, जिससे बुद्धि और विवेक को भी सही दिशा मिलती है। इस तरह मन पर वश होने पर दुनिया भी वश में हो सकती है। ऐसा करने के लिए ध्यान ही श्रेष्ठ उपाय है।

इस तरह अध्यात्मिक और धार्मिक नजरिए से ध्यान से आत्मिक लाभ मिलता है यानी यह सोई हुई शक्तियों को जगाता है और ईश्वरीय सत्ता को महसूस कराता है।

वहीं, व्यावहारिक जीवन के नजरिए से ध्यान मन की प्रसन्नता, एकाग्रता, मानसिक ऊर्जा और स्फूर्ति देता है। इसका फायदा यह होता है कि हम बेहतर तरीके से काम को अंजाम देते हैं। जिसके कामयाबी के रूप में सुखद नतीजे मिलते हैं। कामयाबी हर भौतिक सुख की राह आसान बनाती है।