Saturday, August 25, 2012

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता है। वैसे भगवान विष्णु का स्वरूप सात्विक यानी शांत, कोमल और आनंदमयी बताया गया है। वहीं उनके स्वरूप का दूसरा पहलू यह भी प्रकट होता है कि भगवान विष्णु भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप की महिमा में शास्त्रों में लिखा गया है -

शान्ताकारं भुजगशयनं

यानी शांत स्वरूप और भुजंग यानी शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।

भगवान विष्णु के इस निराले स्वरूप पर गौर करें तो यह सवाल या तर्क भी मन में उठता है कि आखिर काल के साये में रहकर भी क्या कोई बिना किसी बेचैनी के शयन कर सकता हैं? किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन व व्यवहार से जुड़े कुछ रहस्य व छुपे संदेश हैं -

असल में, जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक परेशानियों का सिलसिला भी चलता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है। इनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है।

भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा।

इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चित मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानी जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।

jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक मान...

jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक मान...: हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक धर्म की रक्षा के लिए सतयुग से ...


हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक धर्म की रक्षा के लिए सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए, जिनमें से दस प्रमुख अवतार 'दशावतार' के रूप में प्रसिद्ध हैं।

18 अगस्त से शुरू भगवान विष्णु की ही भक्ति के विशेष काल अधिकमास में इन विष्णु अवतारों का स्मरण भी सारे सांसारिक दुःख व कलह को दूर करने वाला माना गया है

वराह अवतार - वराह यानी सुअर का रूप लेकर भगवान ने समुद्र में जाकर हिरण्याक्ष राक्षस को मार पृथ्वी की रक्षा की।

 नरसिंह अवतार - भगवान विष्णु ने आधे शेर और आधे इंसान के रूप में धर्म विरोधी बने हिरण्यकशिपु को मार भक्त प्रहलाद को बचाया।

वामन अवतार - बौने ब्राह्मण के रूप में भगवान विष्णु ने दानव राज व दानवीर राजा बलि से देवताओं की रक्षा के लिए दान में तीन पग में भूमि़, आकाश व स्वयं राजा बलि को भी समर्पित होने को विवश कर दिया।

परशुराम अवतार - ब्राह्मण योद्धा के रूप में भगवान विष्णु ने अहंकारी व अत्याचारी हुए क्षत्रियों का नाश कर धर्म की रक्षा की।

श्रीराम अवतार - मानवीय रूप में भगवान राम ने मर्यादा को स्थापित करते हुए अधर्मी रावण का अंत कर दिया। इसी वजह से वे मर्यादा पुरुषोत्तम पुकारे गए।

श्रीकृष्ण अवतार - भगवान विष्णु का यह अवतार 16 कलाओं से पूर्ण माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अधर्मी कंस का वध करने के साथ कर्मयोग का महान सूत्र जगत को सिखाया।

बुद्ध अवतार - क्षमा, शील और शांति स्वरूप इस अवतार के जरिए भगवान विष्णु ने धर्म व समाज को नुकसान पहुंचा रही बुराईयों का अंत किया।

कल्कि अवतार ( यह अवतार कलयुग के अंत में होना माना गया है)। माना जाता है कि इस अवतार के जरिए धर्मभ्रष्ट हुए हर जन का संहार होगा व सृष्टि की नई शुरुआत होगी

मत्स्य अवतारः सतयुग में भगवान विष्णु ने मछली का रूप लेकर धर्म व वेद की रक्षा करते हुए मनु महाराज की नाव को प्रलय से बचाया व सृष्टि को आगे बढ़ाने का ज्ञान व प्रेरणा दी।

कूर्म अवतार - भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान कछुए के रूप में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर मथनी की तरह रखा व वासुकी नाग को रस्सी की तरह उपयोग कर देव-दानवों ने सागर को मथा, जिससे जगत कल्याण करने वाली मां लक्ष्मी व अमृत कलश सहित 14 अनमोल रत्न मिले।


ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
यहां सर दे के होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है

प्रेम वालों ने कब वक्त पूछा
उनकी पूजा में, सुन ले ऐ उद्धव
यहां दम दम में होती है पूजा
सर झुकाने की फुर्सत नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
जो असल में हैं मस्ती में डूबे
उन्हें क्या परवाह ज़िंदगी की
जो उतरती है, चढ़ती है मस्ती
वो हकीकत में मस्ती नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
जिसकी नज़रों में हैं श्याम प्यारे
वो तो रहते हैं जग से न्यारे
जिसकी नज़रों में मोहन समाये
वो नज़र फिर तरसती नहीं है
ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है
यहां सर दे के होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है —

श्री राधा को जिसने भुलाय़ा , उसने

अपना जनम गंवाय़ा !!
धन्य हुई वो वाणी जिसने ,
राधाश्य़ाम है गाया !!
उनका सुमिरन करे बिना , कब
मिलता है विश्राम !!
बोलो राधे-राधे राधे-जय श्री राधे श्याम !!

वो काला एक बासुँरी वाला, वो काला इक बासुँरी वाला
सुध बिसरा गया मोरि रे,
माखनचोर जो नंदकिशोर वो, कर गयों ओ रे मन की चोरी रे
कर गयों ओ रे मन की चोरी रे सुध बिसरा गया मोरि ....
कर गयों ओ रे मन की चोरी रे सुध बिसरा गया मोरि ....
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे.
पनघट पे मोरि बइयाँ मरोडी ....३
मैं बोली तो मेरी मटकी फोडी.
पइयाँ परु करु विनती मैं पर ..२
माने न इक वो मोरि
सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला, वो काला इक बासुँरी वाला...
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे....
छुप गयो फिर इक तान सुना के ...३
कहा गयो एक बाण चला के,
गोकुल ढूंढ़ा, मैनें मथुरा ढूंढ़ी ..२
कोइ नगरियाँ ना छोडी रे, सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
सुध बिसरा गया मोरि रे.... , वो काला इक बासुँरी वाला,
वो काला इक बासुँरी वाला सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे.... ,
वो काला इक बासुँरी वाला ,
वो काला इक बासुँरी वाला... माख्ननचोर जो,
नंदकिशोर वो, कर गयों औरे मन की चोरी रे