विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती
नहीं मनाई जाती। हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा
पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या
संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ
है-
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।
श्रीगीताजी का जन्म धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में
शुक्लपक्ष की एकादशी (इस बार 23 दिसंबर, रविवार) को हुआ था। यह तिथि
मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी
काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के
लिए हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस
ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच
का प्रयोग किया गया है।
इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश भरे हैं
जो मनुष्यमात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने
की शक्ति रखते हैं।