Friday, April 5, 2013

धर्मग्रंथ भी ईश्वर के साक्षात् ज्ञान स्वरूप व शक्ति के रूप में पूजनीय होते हैं। यही वजह है कि हिन्दू धर्म परंपराओं में नियत मर्यादा का पालन करते हुए धर्मग्रंथों का अध्ययन या उनसे जुड़े प्रवचन शुरू करना शुभ माना गया है। किंतु कई लोग धर्मग्रंथों को केवल साधारण किताब की तरह उपयोग करते हुए देखे जाते हैं, इसके चलते वह धर्मग्रंथों के लिए नियत मर्यादा का ध्यान न रख कहीं भी, किसी भी स्थान पर रख उसको पढ़ते हैं, इसके पीछे कहीं न कहीं धर्म से जुड़ी समझ व विचारों में पावनता का अभाव होता है। हालांकि माना जाता है कि भक्ति किसी भी रूप में ईश्वर को प्रसन्न करती है, किंतु उसके लिए आस्था व विचारों की पवित्रता भी जरूरी है।

 

इसी कड़ी में हिन्दू धर्म परंपराओं में पवित्र धर्मग्रंथों, जिनमें पुराण, गीता या श्रीमद्भागवत महापुराण शामिल है, पढ़ना सांसारिक जीवन के सारे कलह और परेशानियों से छुटकारा देने वाले माने गए हैं। इन पावन धर्मग्रंथों को पढ़ने से पहले एक मंत्र विशेष बोलने का महत्व बताया गया है, जिसमें ईश्वर के ही एक रूप श्री हरि के विराट स्वरूप का स्मरण कर शिव के साथ अलग-अलग देवों की भी वंदना है। यह मंत्र भगवान शिव व हरि के रूप में अलग-अलग शक्तियों के रूप में ईश्वर के एक ही होने की ओर संकेत भी करता है।

अजमजरमनन्तं ज्ञानरूपं महान्तं शिवमममनादिं भूतदेहादिहीनम्।

सकलकरणहीनं सर्वभूतस्थितं तं हरिममलममायं सर्वगं वन्द एकम्।

नमस्यामि हरिं रुद्रं ब्राह्मणं च गणाधिपम्।

देवीं सरस्वतीं चैव मनोवाक्कर्मभि: सदा।।

 

इसका सरल शब्दों में मतलब है - अजन्मे, अजर, अनादि, अनन्त, पावन, जिनका शरीर पंचभूतों से नहीं बना है, इन्द्रियों से रहित, हर जीव में बसे, माया से दूर, हर जगह मौजूद, मंगलकारी भगवान श्री हरि की मैं वंदना करता हूं। साथ ही मन, बोल और कर्म से विष्णु, ब्रह्मा, शिव, गणेश और माता सरस्वती को नमस्कार करता हूं।



हिन्दू वर्ष के बारह महीनों में हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एक-एक एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत सभी दोषों और विकारों से छुटकारा देने वाला माना गया है। इस तरह यह इंसान के लिए आत्मरक्षक ही है। यह खासतौर पर वैष्णव व्रत है, किंतु विष्णु उपासक हर धर्मावलंबी इस व्रत को करता है। 

 

दरअसल, एकादशी व्रत मात्र धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी अहम है। किंतु यह भी देखा जाता है कि कई शिक्षित युवा भी इस संबंध में ज्ञान के अभाव में भारतीय सनातन धर्म से जुडी व्रत परंपराओं की उपेक्षा करते हैं। 

 

सच यह है कि प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों से लेकर देश की आजादी के महानायक महात्मा गांधी भी व्रत-उपवास के महत्व को सिद्ध कर चुके हैं । नई पीढी के लिए यह समझना जरूरी है कि अगर कोई इस व्रत को धर्म या ईश भक्ति की नजरिए से न करें, किंतु निरोग रहने में भी यह व्रत महत्वपूर्ण है। यह मन को संयम रखने के भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।  

 

इस व्रत से जुड़े वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो चूंकि चन्द्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने का प्रभाव सभी प्राणियों और वनस्पतियों पर पड़ता है। हिन्दू धर्म पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। हर तिथि पर चन्द्रमा की स्थिति सदा एक सी रहती है। इसलिए उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पडता है। इसलिए सेहत के नजरिए से ऐसा माना जाता है कि चतुर्थी तिथि से एकादशी के बीच पैदा रोग गंभीर नहीं हो पाते। इस काल में पहले के रोग भी ठीक हो जाते हैं। हर मास में दो एकादशी होती है । इस तरह महीने में आने वाली 2 एकादशी तिथियों के दो दिन आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को मजबूत बनाकर शरीर को सेहतमंद व मन को प्रसन्न रखता है। 

हिन्दू धर्म पंचांग की एकादशी तिथि से जुड़ी भगवान विष्णु उपासना की धर्म परंपराओं के पीछे मूल भावना, सोच और आचरण की पवित्रता को अपनाने की है ताकि इंसान मन और विचार से मजबूत और एकाग्र रहकर हर परेशानियों से पार पा सके।
इसी सिलसिले में संयम और शांति पाने का बेहतर उपाय संतुलित आहार से भी जुड़ा है। खासतौर पर व्रत-उपवास या इनके बिना भी खास चीजों को खाना जहां शरीर को सेहतमंद बनाने वाला बताया गया है, वहीं दूसरी ओर कुछ खास चीजों को खाना सेहत के लिए परेशानी की वजह भी माना गया है।
6 को चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी है

 शहद, चावल का मांड, उड़द, राई, मसूर-दाल, बकरी, भैंस और भेड़ का दूध, मांस, मादक पदार्थ और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- इसी तरह मूली, प्याज, कुम्हड़ा, लहसुन, गाजर, बैंगन भोजन में नहीं लेना चाहिए। तिल का तेल, बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
- तांबे के बर्तन में दूध रखना, चमड़े के बर्तन में पानी और खुद के लिए बनाया भोजन अशुद्ध माना जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।

धर्मशास्त्रों में सांसारिक जीवन के नजरिए से जगतपालक भगवान विष्णु की भक्ति, सेवा और उपासना मन और घर में प्रेम और शांति बनाए रखने के लिये शुभ मानी गई है। विष्णु पूजा दोषमुक्ति और मनचाही सुख-संपन्नता भी देने वाली होती है।

 

खासतौर पर एकादशी तिथि (6 मार्च) के स्वामी भगवान विष्णु ही माने गए हैं। इसलिए इस दिन मनचाही सिद्धियों के लिए भगवान विष्णु का स्मरण फलदायी माना गया है। लेकिन इसके लिए एकादशी पर विष्णु भक्ति में कुछ मर्यादाओं और नियम-संयम का पालन भी जरूरी बताया गया है। इनको भंग करना देवदोष का भागी बनाता है।

 एकादशी के दिन अन्न नहीं खाया जाता और जल ग्रहण नहीं किया जाता यानी यथासंभव बिना खाए एवं बिना जल पिए इस व्रत को करें।

- व्रती को इस दिन कांसे के बर्तन, उडद, मसूर, चना,  शाक, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन और स्त्री प्रसंग इन दस बातों को त्याग दे। वहीं व्यावहारिक जिंदगी में भी इन 11 कामों से व्रती को दूर रहना चाहिए -

- जुआ खेलना,

- सोना,

- पान खाना,

- दातून करना,

- परनिन्दा,

- चुगली,

- चोरी,

- हिंसा,

- रति या सहवास,

- क्रोध,

- झूठ बोलना।