Thursday, August 23, 2012
हिन्दू धर्मग्रंथ भगवान विष्णु की बेजोड़ शक्तियों व स्वरूपों की महिमा उजागर करते हैं। जहां विष्णु का विराट स्वरूप कर्म व धर्म की राह बताता है तो उनके सारे चमत्कारी अवतार नैतिक मूल्यों और बेहतर आचरण के सबक के जरिए सही तरीके से जीना सिखाते हैं।
यही वजह है कि विष्णु उपासना की विशेष तिथियों व घड़ियों में भगवान विष्णु का स्मरण मात्र ही मनोरथ सिद्धि करने वाला माना गया है। 18 अगस्त से 16 सितंबर तक चलने वाला अधिकमास भी ऐसा ही पुण्यकाल है। इसमें खासतौर पर शास्त्रों में बताई एक विष्णु मंत्र स्तुति के शक्तिशाली मंत्रों को हर सुबह बोलना किसी भी तरह की परेशानी या संकट से बचने में बहुत ही चमत्कारी माना गया है। यही नहीं ये मंत्र केवल धूप, दीप लगाकर बोलने मात्र से ही मनचाही मुरादें पूरी कर देते है। यह मंत्र स्तुति विष्णु पञ्जर स्तोत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है।
धर्म मान्यता है कि इसके प्रभाव से ही जगतजन
नी मां कात्त्यायनी ने भी रक्तबीज, महिषासुर जैसे राक्षसों को मार गिराया।
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम्। नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं
गृह्य सुदर्शनम्।। प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। गदां
कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ नमोस्तु ते।। याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं
शरणं गत:। हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम।। प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो
त्वामहं शरणं गत:। मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्।। उत्तरस्यां
जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:। खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे।।
नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:। पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च
पङ्कजम्।। प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर। चन्द्रसूर्य
समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा।। नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते
नृकेसरिन्। वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्।। वायव्यां रक्ष मां
देव हयग्रीव नमोस्तुते। वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन।। मां
रक्षस्वाजित सद नमस्तेस्त्वपराजित। विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं
रसातले।। अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते। करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य
त्वं बाहुपञ्जरम्।। कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम। एतदुक्तं
शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्।। पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या
वृषध्वज। नाशयामास सा येन चामरं महिषासुरम्।। दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च
सुरकण्टकान्। एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा।।
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