Thursday, February 21, 2013



शास्त्रों की सीख है कि अच्छे काम और सोच जीवन के रहते सुख-सुकून व मृत्यु के बाद दुर्गति से बचने के लिए बहुत जरूरी हैं। व्यावहारिक रूप से भी किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए सही विचार होने और उसके मुताबिक काम को अंजाम देने पर ही मनचाहे नतीजे संभव है। अन्यथा सोच और चेष्टा में तालमेल का अभाव या दोष बुरे नतीजों के रूप में सामने आते हैं।
मृत्यु के संदर्भ में यही बात सामने रख शास्त्रों की बात पर गौर करें तो बताया गया है कि कर्म ही नहीं विचारों में गुण-दोष के मुताबिक भी मृत्यु के बाद आत्मा अलग-अलग योनि प्राप्त करती है। जिनमें भूत-प्रेत योनि भी एक है। हालांकि विज्ञान भूत-प्रेत से जुड़े विषयों को वहम या अंधविश्वास मानता है। लेकिन यहां बताई जा रही मृत्य के बाद भूत-प्रेत बनने से जुड़ी बातें मनोविज्ञान व व्यावहारिक पैमाने पर प्रामाणिक होने के साथ ही सुखी व शांति से भरे जीवन के एक अहम सूत्र भी उजागर करती हैं। जानिए, किस कारण मृत्यु के बाद मिलती है भूत-प्रेत योनि और क्या है इनमें छिपा जीवन सूत्र? 
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता में लिखी ये बातें मृत्यु के बाद भूत-प्रेत बनने का कारण उजागर करती है -
भूतानि यान्ति भूतेज्या:
यानी भूत-प्रेतो की पूजा करने वाले भूत-प्रेत योनि को ही प्राप्त करते हैं। इस बात को एक और श्लोक अधिक स्पष्ट करता है-
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:।।
यानी मृत्यु के वक्त प्राणी मन में जिस भाव, विचार या विषय का स्मरण करता हुआ शरीर छोड़ता है, वही उसी भाव या विषय के अनुसार योनि को प्राप्त हो जाता है। 
भूत-प्रेत होने के अंधविश्वासों से परे इन बातों में छिपे संदेश पर गौर करें तो संकेत यही है कि अगर व्यक्ति ताउम्र बुरे काम व उसका चिंतन करता रहे, तो वह बुराई के रूप में मन में स्थान बना लेते हैं और अन्तकाल में भी वही बातें मन-मस्तिष्क में घूमती हैं। ऐसे बुरे भावों के मुताबिक वह व्यक्ति भूत-प्रेत की नीच योनि को ही प्राप्त हो जाता है।
दरअसल, भूत-प्रेत भी मलीनता या बुराई के प्रतीक भी हैं। इसलिए यहां भूत-प्रेत उपासना का मतलब बुराई का संग भी है। इसलिए सीख यही है कि जीवन में बुरे कर्मों से दूरी बनाए रखे, ताकि जीवन रहते भी व जीवन के अंतिम समय में मन के अच्छे भावों के कारण मृत्यु के बाद भी दुर्गति से बचें।