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धर्म के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण के भक्तों पर स्नेह
लुटाने वाले देव स्वरूप यानी भक्त वत्सलता की महिमा बताई गई है, जो यह
साबित करती है कि भगवान श्रीकृष्ण भक्ति भाव के भूखे हैं, न कि बिना भक्ति
भाव के दिखावे के लिए चढ़ाए तरह-तरह की सुंदर और महंगी चीजों के। गीता में
श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि -
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपह्रतमश्रामि प्रयतात्मन:।।
जिसका
सरल शब्दों में मतलब है मेरे लिए निस्वार्थ और प्रेम भाव से चढ़ाए गए फूल,
फल और जल आदि को मैं बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेता हूं।
ऐसे
ही भक्तप्रेमी भगवान के स्मरण के लिए शास्त्रों में एक ऐसा मंत्र बताया
गया है, जिसका स्मरण भगवान विष्णु व कृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन कराने
वाला माना गया हैं।
इस
मंत्र के स्मरण से पहले स्नान से पवित्र होकर श्रीकृष्ण को मात्र गंध, फूल
चढ़ाकर माखन का भोग लगाएं और नीचे लिखा मंत्र जप कर धूप, दीप से आरती
करें। एकादशी पर इस मंत्र जप से कृष्ण पूजा और आरती अपार सुख-संपत्ति,
ऐश्वर्य और वैभव देने वाली होती है। जानिए यह मंत्र -
ऊँ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।
शास्त्रों
के मुताबिक इस मंत्र के पहले पद क्लीं से पृथ्वी, दूसरे पद कृष्णाय से जल,
तीसरे पद गोविन्दाय से अग्रि, चौथे पद गोपीजनवल्लभाय से वायु और पांचवे पद
स्वाहा से आकाश की रचना हुई। इस तरह यह श्रीकृष्ण के विराटस्वरूप का मंत्र
रूप में स्मरण है।