Thursday, October 25, 2012

यमुना किनारे श्याम आया ना करो...
मीठी मीठी बाँसुरी बजाया ना करो ...
तेरी बंशी की तान सुन गौवे दौडी आती है..
घास पानी छोड़ वे तेरे दर्शन पाती है ...
गौवे को इतना सताया ना करो ..
मीठी मीठी बाँसुरी बजाया ना करो ..
जय जय श्री राधेकृष्ण...

तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरधारी ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुंडल की छवि न्यारी रे।
भरी सभा में द्रौपदी ठाढ़ी, राखो लाज हमारी रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल बलिहारी रे।

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी के दिन मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु कीपूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 25 अक्टूबर, गुरुवार को है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल प्राप्त करते है, वही फल इस एकादशी के दिन शेषनाग पर शयन करने वाले श्री विष्णु को नमस्कार करने से ही मिल जाते हैं और मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पड़ते हैं। यह एकादशी उपवासक के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक लेकर जाती है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-

प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन पाप कर्मों में बीता। जब उसका अंत समय आया तो वह मृत्यु-भय से कांपता हुआ महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचकर याचना करने लगा- हे ऋषिवर,  मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया।