Sunday, August 19, 2012

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बलिहारी बलिहारी सब संतन की..

||...संत का स्वभाव ही है परोपकार.
सर्वस्व लुट जाए, नाम, प्रतिष्ठा सब समाप्त हो जाए लेकिन जीव कल्याण का
व्रत उनका स्वभाव ही है.. भक्त हरिदास को गुंडों ने इतना मारा कि मारा हुआ
समझ कर नदी में फेंक दिया लेकिन हरिदास जी
के मुंह से यही शब्द निकले.. 'प्रभु इनके ऊपर दया करो, ये अज्ञानी हैं..'
संत उसमान के ऊपर राख का टोकरा फेंक दिया. वह ख़ुशी से नाचने लगे, कहने
लगे.. 'अरे मैं तो अंगारे फेंकने लायक हूँ, यदि हर क्षण मेरे द्वारा प्रभु
का स्मरण नहीं होता तो इस शरीर को ही जलाकर राख कर देना चाहिए...' ऐसे होते
हैं संत, बेचारे कृपा के अतिरिक्त कुछ कर ही नहीं सकते. गालियाँ दो तो भी
प्यार और प्यार के बदले तो प्यार देते ही हैं...||

TRIPUTI BALA JI MANDIR

भगवान विष्णु को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कहीं श्रीराम के रूप में तो कहीं श्रीकृष्ण के रूप में। तिरूपति बालाजी भी भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। भगवान तिरूपति बालाजी का मंदिर दक्षिण भारत में स्थित है। इस मंदिर को देश का सबसे अमीर मंदिर होने का भी दर्जा प्राप्त है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां सबसे अधिक चढ़ावा आता है।

भगवान तिरूपति बालाजी भक्तों की मन्नतें पूरी करते हैं और भक्त भेंट स्वरूप अपने बाल और धन भगवान को अर्पित करते हैं। भगवान तिरूपति के मंदिर में पूरे वर्ष समान भीड़ रहती है।- भारत का सबसे धनी और संसार के सबसे धनी मंदिरों में आंध्रप्रदेश में तिरूपति नामक स्थान पर भगवान विष्णु (वैंकटेश) का मंदिर है। - वैंकटेश भगवान को कलियुग में बालाजी नाम से भी जाना गया है।
तमिल भाषा में तिरू अथवा थिरू शब्द का वही अर्थ है जो संस्कृत में श्री है। श्री शब्द, धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी के लिये प्रयुक्त होता है। - तिरूपति देवस्थान बोर्ड में लगभग पच्चीस हजार कर्मचारी नियुक्त हैं।
इस मंदिर में सर्वाधिक चढ़ावा आना अपने आपमें व्यक्त करता है कि यहां जनसाधारण की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्ट दूर होते हैं। - भारत के सभी मंदिरों की अपेक्षा सबसे अधिक चढ़ावा तिरूपति मंदिर में आता है इसलिए इसे देश का सबसे अमीर मंदिर भी कहा जाता है।

JAI SHREE GOVARDHAN DHARI KI

भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने तथा इंद्र की पूजा न करने का कहकर इंद्र का घमण्ड तोड़ा था। चूंकि ग्रामवासियों द्वारा पूजित होने पर ही इंद्र वहां वर्षा करते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमण्ड तोड़कर उसे यह बताया कि वर्षा करना आपका मौलिक कर्तव्य है। इसके लिए कोई आपकी पूजा करे यह आवश्यक नहीं है।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने इंद्र को फल रहित कर्म करने का कर्तव्य बोध कराया था। इस संदर्भ का सार है कि सभी को अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक प्रकार से बिना किसी अतिरिक्त फल की अभिलाषा से करना चाहिए। चूंकि कर्तव्य का निर्वहन करना आपकी मौलिक जिम्मेदारी है।

जब श्रीकृष्ण ने अगुंली पर उठाया गोवर्धन

अच्छी वर्षा के लिए गोकुलवासी इंद्र को प्रसन्न करने के लिए उसकी पूजा करते थे। लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत का महत्व इंद्र से अधिक बताने पर जब ग्रामवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की तो इंद्र बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने गोकुलवासियों को सबक सीखाने के लिए भंयकर वर्षा की जिससे सारा गांव डूबने लगा।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को आश्रय प्रदान किया था तथा इंद्र का घमण्ड भी तोड़ा था। श्रीकृष्ण के वास्तविक स्वरूप को जानकर इंद्र ने उनकी स्तुति की तथा क्षमायाचना की। तब श्रीकृष्ण ने इंद्र को समझाया था कि सभी स्थानों पर समान रूप से वर्षा करना आपका कर्तव्य है इसके लिए मन में पूजा की अभिलाषा रखना सर्वथा अनुचित है

bhagwan kehte hai

भगवान कहते हैं :-
किसी को दुख देकर मुझसे अपने सुख की इच्छा मत
करना,
लेकिन
अगर किसी को इक पल का भी सुख देते हो
तो अपने दुख की चिंता मत करना ।

chan thukda hai mera shyam

इतना खुबसूरत चेहरा है तुम्हारा ,
हर भक्त दीवाना है , तुम्हारा ,
लोग कहते है की चाँद का टुकड़ा हो तुम ,
लेकिन हम कहते हैं की चाँद टुकड़ा है तुम्हारा....

DILDAR KANHAIYA MERA

dil ki dil me ye samayi hui,,,,,,,,,,
tasveer hai ye dildar teri,,,,,,,,
in prano ke andar gunji nahi,,,,,,,,,
murli dhwani ki jhankar koi,,,,,,,,,
ham karte karte haar gaye,,,,,,,
manmohan yeh manuhaar teri,,,,,,,
par sundar shyam tu reejha nahi,,,,,,,
balihare teri balihari teri,,,,,,,,,,, ,,
aaja nandlal taras rahe naina,,,,,,,,,, ,,,,

jai tulsi maa

हिन्दू धर्म परंपराओं के मुताबिक हाल में शुरू हुआ अधिकमास भगवान विष्णु की भक्ति व उपासना से खुशहाल जीवन की कामना पूरी करने का काल है। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी मानी गई हैं। हिन्दू धर्म के मुताबिक घर तुलसी का पौधा भी ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप है। इसलिए यह बड़ा ही पवित्र माना जाता है। यह भी मान्यता है घर के आंगन में तुलसी का पौधा  कलह और दरिद्रता दूर करता है। धर्मग्रंथों में तुलसी को विष्णुप्रिया कहा गया है। पुराणों में भी भगवान विष्णु और वृंदा यानी तुलसी के विवाह का वर्णन मिलता है।

वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं


वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। तुलसी के पत्ते खाने का सही तरीका यही बताया गया है कि जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारे की धातु के अंश होते हैं, जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे दांत और मुंह के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह अधिकमास में यह भी ध्यान रहे कि विष्णुप्रिया की आराधना कर धर्म लाभ तो पाएं लेकिन उसका सेवन सावधानी से कर स्वास्थ्य लाभ भी पाएं।