Friday, December 13, 2013

महाभारत के धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य के इस युद्ध में कौरव और पाडंवों की सेना जब आमने-सामने थी। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य आगे ला खड़ा कर दिया, जहां अर्जुन ने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अपने भाइयों, रिश्तेदारों को विरोधी खेमे खड़ा पाया।

अर्जुन की हिम्मत जवाब दे गई, तब उन्होंने कृष्ण से कहा कि अपने स्वजनों और बेगुनाह सैनिकों के अंत से हासिल मुकुट धारण कर मुझे कोई सुख हासिल नहीं होगा। अर्जुन पूरी तरह अवसादग्रस्त हो चुके थे। अपने अस्त्र-शस्त्र कृष्ण के सम्मुख भूमि पर रख उन्होंने सही मार्गदर्शन चाहा। और तब 'गीता' का जन्म हुआ। लगभग 40 मिनट तक श्रीकृष्ण और अर्जुन में जो संवाद हुआ, उसे महर्षि व्यास ने सलीके से लिपीबद्ध किया वही 'भगवद्गीता' है।
Gita Jayanti

अपने कहे को और स्पष्ट कर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाइश दी की उसके शत्रु तो महज मानव शरीर हैं। अर्जुन तो सिर्फ उन शरीरों का अंत करेगा, आत्माओं का नहीं। हताहत होने के बाद सभी आत्माएं उस अनंत आत्मा में लीन हो जाएंगी। शरीर नाशवान हैं लेकिन आत्मा अमर है।

आत्मा को किसी भी तरह से काटा या नष्ट नहीं किया जा सकता। तब श्रीकृष्ण ने परमतत्व की उस प्रकृति का दर्शन जिसमें अनंत ब्रह्मांड निहित है यानी 'विराट रूप' को अर्जुन के समक्ष प्रकट किया ताकि अर्जुन समझ सकें कि वह जो भी कर रहा है वह विधि निर्धारित है।

यह भाग्य ही 'प्रकृति' है जिसकी रचना 'पुरुष' ने की है और सर्वव्यापी ही उसका इस्तेमाल करेगा। तब 'कर्मयोग' के इस सार को समझ अर्जुन युद्ध को तैयार हुए। जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया वह 'गीता जयंती' या 'मोक्षदा एकादशी' के रूप में मनाया जाता है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके बारे में गया है कि शुद्धा, विद्धा और नियम आदि का निर्णय यथापूर्व करने के अनन्तर मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ और मूँग की रोटी दाल का एक बार भोजन करके द्वादशी को प्रातः स्नानादि करके उपवास रखें।

भगवान का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एक बार भोजन करके पारण करें। यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।

भगवद्‍ गीता के पठन-पाठन श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है।

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गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी।

मंगलमय जीवन का ग्रंथ है गीता। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है।

दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा।

गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता मरना सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।