10 मार्च, रविवार को महाशिवरात्रि का पर्व है। इस दिन भगवान महादेव की विशेष पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है जो आज भी अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार है द्रोणाचार्य के पुत्र महाक्रोधी अश्वत्थामा का।
महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक अश्वत्थामा थे। ये कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शुरवीर, प्रचंडक्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। महाभारत संग्राम में अश्वत्थामा ने कौरवों की सहायता की थी।
- हनुमानजी आदि आठ अमर लोगों में अश्वत्थामा का नाम भी आता है। इस विषय में एक श्लोक प्रचलित है-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय ये आठों अमर हैं।
शिवमहापुराण(शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।
आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया कि वे उनके पुत्र के रूप मे अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी के एकमात्र पुत्र अश्वत्थामा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा इसलिए कहलाए क्योंकि जन्म के समय अश्वत्थामा उच्चै:श्रवा घोड़े के समान इतनी जोर से चिल्लाए थे कि तीनों लोक कांप गए थे। अत: आकाशवाणी ने इसका नाम अश्वत्थामा रखा। शास्त्रों में इसका उल्लेख है-
अलभद् गौतमी पुत्रमश्वत्थामानमेव च।
स जातमात्रौ व्यनदद् यथैवोच्चै:श्रवाहय:॥
- महाभारत आदिपर्व 129/47
अर्थ- गौतमी कृपी (शरद्वान की पुत्री) ने द्रोण से अश्वत्थामा नामक पुत्र प्राप्त किया। उस बालक ने जन्म लेते ही उच्चै:श्रवा घोड़े के समान शब्द किया।
- महाभारत के युद्ध समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने ही पांडवों के पुत्रों का छल से वध किया था। पुत्रशोक में जब पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा किया तो वे भाग गए। फिर भी जब अर्जुन ने उनका पीछा न छोड़ा तब अश्वत्थामा ने अर्जुन के ऊपर ब्रह्मास्त्र फेंका। उत्तर में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस लौटा लिया लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था तब उसने अपने अस्त्र की दिशा बदल कर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी। क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणी निकाल ली और कलयुग के अंत तक उसे पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया।
भगवान शंकर का यह अवतार हमें संदेश देता है कि हमें सदैव अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि क्रोध ही सभी दु:खों का कारण है। यह गुण अश्वत्थामा में नहीं था। साथ ही एक और बात जो हमें अश्वत्थामा से सीखनी चाहिए वह यह कि जो भी ज्ञान प्राप्त करें उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करें, अधूरा ज्ञान सदैव हानिकारक रहता है। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानते थे लेकिन उसका उपसंहार करना नहीं। फिर भी उन्होंने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जिसके कारण संपूर्ण सृष्टि के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस तथ्य से हमें यह शिक्षा मिलती है कि क्रोध तथा अपूर्ण ज्ञान से कभी सफलता नहीं मिलती।