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jai dawarkadish ji
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एक बार ऋषि द्वारका आए। आवेश में आकर बिना किसी कारण के ऋषि ने रुक्मणी को भगवान कृष्ण से अलगाव का शाप दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण ने दु:खी रुक्मणी को आश्वस्त किया कि वे वियोग के समय उनकी मूर्ति की पूजा कर सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर में वही रणछोड़राय की मूर्ति स्थापित है।
द्वारका का दूसरा भाग बेट द्वारका, गोमती द्वारका से लगभग 30 किमी दूर कच्छ की खाड़ी में स्थित है। बेट द्वारका श्रीकृष्ण द्वारा बनाई गई द्वारका का शेष भाग माना जाता है। बेट द्वारका में श्रीकृष्ण एवं उनकी रानियों के महल स्थित है। यहां के अन्य दर्शनीय स्थानों में शंखोद्धार, गोपी तालाब, नागनाथ और पिंडारा प्रमुख है।
द्वारका के प्रभास क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण का महाप्रयाण हुआ। यहां भगवान कृष्ण का समाधि स्थल है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण गुप्त रूप से रात्रि में ही अपने परिजनों एवं यादव वंश को मथुरा से द्वारका ले आए थे। इसलिए द्वारका यात्रा को गुप्त रूप से करने की भी परंपरा है। इस क्षेत्र में महर्षि दुर्वासा का आश्रम है। ऐसा मान्यता है कि पांडव भी युद्ध के बाद अपने मृत परिजनों का श्राद्ध करने यहां आए थे। धार्मिक दृष्टि से द्वारका के दर्शन से सदगति प्राप्त होती है।
द्वारका भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान कìष्ण ने इसे बसाया था। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुयरेधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे।
चालुक्य कला शैली से जुड़े इस मंदिर का इतिहास लगभग 2,500 हजार साल पुराना है। जैसा कि इस मंदिर के नाम से ही ज्ञात है कि इसमें किसी और भगवान की नहीं बल्कि श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित है। श्रीकृष्ण का निजी महल ‘हरि गृह’ जिस स्थान पर था आज वहीं पर प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है।
गोपी तालाब
जमीन के रास्ते जाते हुए तेरह मील आगे गोपी-तालाब पड़ता है। यहां की आस-पास की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से भी रंग की ही मिट्टी निकलती है। इस मिट्टी को वे गोपीचन्दन कहते है। यहां मोर बहुत होते है। गोपी तालाब से तीन-मील आगे नागेश्वर नाम का शिवजी और पार्वती का छोटा सा मन्दिर है। श्रद्धालु इसके दर्शन भी जरूर करते हैं।
गोपी तालाब
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण इस बेट-द्वारका नाम के टापू पर अपने घरवालों के साथ सैर करने आया करते थे। यह कुल सात मील लम्बा है। यह पथरीला है। यहां कई अच्छे और बड़े मन्दिर है। कितने ही तालाब है। कितने ही भंडारे है। धर्मशालाएं है और सदावर्त्त लगते है। मन्दिरों के सिवा समुद्र के किनारे घूमना बड़ा अच्छा लगता है।
बेट-द्वारका
बेट-द्वारका ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट-द्वारका के टापू का पूरब की तरफ का जो कोना है, उस पर हनुमानजी का बहुत बड़ा मन्दिर है। इसीलिए इस ऊंचे टीले को हनुमानजी का टीला कहते है। आगे बढ़ने पर गोमती-द्वारका की तरह ही एक बहुत बड़ी चहारदीवारी यहां भी है। इस घेरे के भीतर पांच बड़े-बड़े महल है। ये दुमंजिले और तिमंजले है। पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल है। इसके दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल है। उत्तर में रूक्मिणी और राधा के महल है। इल पांचों महलो की सजावट ऐसी है कि आंखें चकाचोंध हो जाती है। इन मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े है। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी है। मूर्तियों का सिंगार बड़ा ही कीमती है। हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए है। सच्ची जरी के कपड़ो से उनको सजाया गया है।
रणछोड़ जी मन्दिर
रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें देखने योग्य है। यहां भगवान की सेज है। झूलने के लिए झूला है। खेलने के लिए चौपड़ है। दीवारों में बड़े-बड़े शीशे लगे है। इन पांचों मन्दिरों के अपने-अलग भण्डारे है। मन्दिरों के दरवाजे सुबह ही खुलते है। बारह बजे बन्द हो जाते है। फिर चार बजे खुल जाते है। और रात के नौ बजे तक खुले रहते है। इन पांच विशेष मन्दिरों के सिवा और भी बहुत-से मन्दिर इस चहारदीवारी के अन्दर है। ये प्रद्युम्नजी, टीकमजी, पुरूषोत्तमजी, देवकी माता, माधवजी अम्बाजी और गरूड़ के मन्दिर है। इनके सिवाय साक्षी-गोपाल, लक्ष्मीनारायण और गोवर्धननाथजी के मन्दिर है। ये सब मन्दिर भी खूब सजे-सजाये है। इनमें भी सोने-चांदी का काम बहुत है।
बेट-द्वारका में कई तालाब है-रणछोड़ तालाब, रत्न-तालाब, कचौरी-तालाब और शंख-तालाब । इनमें रणछोड तालाब सबसे बड़ा है। इसकी सीढ़िया पत्थर की है। जगह-जगह नहाने के लिए घाट बने है। इन तालाबों के आस-पास बहुत से मन्दिर है। इनमें मुरली मनोहर, नीलकण्ठ महादेव, रामचन्द्रजी और शंख-नारायण के मन्दिर खास है। लोगा इन तालाबों में नहाते है और मन्दिर में फूल चढ़ाते है।
नागेश्वर मंदिर
द्वारका के बाहरी क्षेत्र में स्थित नागेश्वर मंदिर या नागनाथ मंदिर बारह ज्योतिलिर्ंगों में से एक है। इस मंदिर को पृथ्वी से आसुरी ताकतों से बचाने वाला माना जाता है। मंदिर से संबंधित कई लोककथाएं भी प्रचलित हैं।
रुक्मिणी मंदिर
हालांकि यह छोटा सा मंदिर है लेकिन इसे यहां का महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी के नाम पर है। यहां की कलाकृति और वास्तु कला देखते ही बनती है।
शंख-तालाब
रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब आता है। इस जगह भगवान कृष्ण ने शंख नामक राक्षस को मारा था। इसके किनारे पर शंख नारायण का मन्दिर है। शंख-तालाब में नहाकर शंख नारायण के दर्शन करने से बड़ा पुण्य होता है।
बेट-द्वारका से समुद्र के रास्ते जाकर बिरावल बन्दरगाह पर उतरना पड़ता है। ढाई-तीन मील दक्षिण-पूरब की तरफ चलने पर एक कस्बा मिलता है इसी का नाम सोमनाथ पट्टल है। यहां एक बड़ी धर्मशाला है और बहुत से मन्दिर है। कस्बे से करीब पौने तीन मील पर हिरण्य, सरस्वती और कपिला इन तीन नदियों का संगम है। इस संगम के पास ही भगवान कृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था।
बाण-तीर्थ
कस्बे से करीब एक मील पश्चिम मे चलने पर एक और तीर्थ आता है। यहां जरा नाम के भील ने कृष्ण भगवान के पैर में तीर मारा था। इसी तीर से घायल होकर वह परमधाम गये थे। इस जगह को बाण-तीर्थ कहते है। यहां बैशाख मे बड़ा भारी मेला भरता है।बाण-तीर्थ से डेढ़ मील उत्तर में एक और बस्ती है। इसका नाम भालपुर है। वहां एक पद्मकुण्ड नाम का तालाब है।
हिरण्य नदी के दाहिने तट पर एक पतला-सा बड़ का पेड़ है। पहले इस सथान पर बहुत बड़ा पेड़ था। बलरामजी ने इस पेड़ के नीचे ही समाधि लगाई थी। यहीं उन्होनें शरीर छोड़ा थासोमनाथ पट्टन बस्ती से थोड़ी दूर पर हिरण्य नदी के किनारे एक स्थान है, जिसे यादवस्थान कहते हैं। यहां पर एक तरह की लंबी घास मिलती है, जिसके चौड़े-चौड़ पत्ते होते है। यही वही घास है, जिसको तोड़-तोडकर यादव आपस में लड़े थे और यही वह जगह है, जहां वे खत्म हुए थे।
पुराणों और धर्मग्रंथों में वर्णित प्राचीन द्वारका नगरी और उसके समुद्र में समा जाने से जुड़े रहस्यों का पता लगाने का काम पिछले कई वर्ष से रुका पड़ा है, हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ऐसी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अगले दो साल में ‘अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग’ को सुदृढ़ बनाने का निर्णय किया है।
सोमनाथ
इस सोमनाथ पट्टन कस्बे में ही सोमनाथ भगवान का प्रसिद्ध मन्दिर है। इस मन्दिर को महमूद गजनवी ने तोड़ा था। यह समुद्र के किनारे बना है इसमें काला पत्थर लगा है। इतने हीरे और रत्न इसमें कभी जुडे थे कि देखकर बड़े-बड़े राजाओं के खजाने भी शरमाजायं। शिवलिंग के अन्दर इतने जवाहरात थे कि महमूद गजनवी को ऊंटों पर लादकर उन्हें ले जाना पड़ा। महमूद गजनवी के जाने के बाद यह दुबारा न बन सका। लगभग सात सौ साल बाद इन्दौर की रानी अहिल्याबाई ने एक नया सोमनाथ का मन्दिर कस्बे के अन्दर बनबाया था। यह अब भी खड़ा है
सलाह :
द्वारका धाम भी समुद्र तट पर स्थित है। गर्मी के मौसम में विशेष तौर पर कच्छ क्षेत्र की यात्रा में जल का समुचित प्रबंध रखें। बारिश के मौसम के अंतिम महीनों एवं ठंड की शुरुआत के समय यात्रा सुखद रहती है।