Monday, March 4, 2013

गुलाब मुहब्बत का पैगाम नहीं होता
चाँद चांदनी का प्यार सरे आम नहीं होता
प्यार होता है मन कि निर्मल भावनाओं से
वर्ना यूँ ही राधा-कृष्ण का नाम नहीं होता
 


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मुझे रास आ गया है तेरे दर पे सर
झुकाना
तेरी संवरी सी सूरत मेरे मन में बस
गई है...........
ऐ संवरे सलोने अब और न सताना....मुझे
रास आ गया है तेरे दर पे सर झुकाना..
बे जर.. बे दर ...बे घर ...हूँ तेरे दर पे आ
पड़ी हूँ ....
तेरे दर ही बन गया है अब
मेरा आशियाना.......मुझे रास आ
गया है तेरे दर पे सर झुकाना..
मुझे कौन जानता था तेरी बंदगी से
पहले....मुझे कौन
जानता था तेरी बंदगी से पहले....
तेरी याद ने
बना दी मेरी जिंदगी फसाना..........मुझे
रास आ गया है तेरे दर पे सर झुकाना..
मुझे इसका गम नही है कि बदल
गया जमाना.......मुझे इसका गम
नही है कि बदल गया जमाना.......
मेरी जिंदगी के मालिक कंही तुम बदल
न जाना..मुझे रास आ गया है तेरे दर पे
सर झुकाना..
ये सर वो सर नही है जिसे रखु फिर
उठा लू....ये सर वो सर नही है जिसे
रखु फिर उठा लू....
जब चढ़ गया चरण
में ..आता नही उठाना..... मुझे रास आ
गया है तेरे दर पे सर झुकाना..
मेरी आरजू यही दम निकले तेरे दर
पे......मेरी आरजू यही दम निकले तेरे
दर पे......
अभी साँस चल रही है कंही तुम चले न
जाना ....... मुझे रास आ गया है तेरे
दर पे सर झुकाना..
मुझे रास आ गया है तेरे दर पे सर
झुकाना
तुझे मिल गई पुजारिन............... मुझे
मिल गया ठिकाना
मुझे रास आ गया है तेरे दर पे सर
झुकाना
 —

कुछ ऐसे छूया है तेरे प्यार ने
कि संभाले न संभालती हूँ
गली-गली, शहर-शहर
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तलाश नहीं किसी जश्न की
बारिश कि ताल पर थिरकती हूँ
हर मौसम में हर मिजाज़ में
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
न पूछ मेरी दीवानगी का सबब
तू वो खुदा है जिसपर मरती हूँ
सोते-जागते, उठते-बैठते
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तो क्या गर पायी न तुझे
तेरी याद में रोज़ संवरती हूँ
हँसती -खेलती, नाचती-गाती
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तेरा साथ न मिल पाया तो क्या
तेरे हिज्र से गुज़र करती हूं
तेरे ख्यालों की चादर पहनकर
तेरी मीरा बनी फिरती हूं
फर्क मिट गए हैं मुझमें और तुझमें
ज़माने से अब न डरती हूं
गुजारिशों-तलब को पीछे छोड़
तेरी मीरा बनी फिरती ह
 —

कृपा सरोवर, कमल मनोहर,
कृष्ण चरण गहिए, श्री कृष्ण शरण गहिए

लीला पुरुषोतम राधावर,
राधा माधव भाव भाधा हर।
शरणागत रहिए, श्री कृष्ण शरण गहिए

आकर्षण के केंद्र कृष्ण है,
सुन्दर तम रसिकेन्द्र कृष्ण हैं।
कृष्ण कृष्ण कहिए,श्री कृष्ण शरण गहिए

सदा सर्वमय, हैं सर्वोत्तम,
क्यों ना ध्याये उनको सदा हम
सकल लाभ लहिए, श्री कृष्ण शरण गहिए...

यदि गोरे होते तो क्या करते मनमोहन,
तेरी काली सूरत पर दुनिंया मर जाती है।
हे श्याम तेरी मुरली पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मीठी घायल कर जाती है। ♥

तुम सीधे होते तो न जाने क्या होता,
तेरी टेड़ी चालों पर दुनिया मर जाती है।
हे श्याम तेरी मुरली पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मीठी घायल कर जाती है।


देख छवि तेरी लुट गयी मैं बनवारी

तेरे रूप ने ऐसा मुझको मोहा

मोहन ही मोहन मैं गाने लगी

मोहन से लग गयी मेरी यारी

मोहन से ही हो बात हमारी

यही अर्ज हर दम मोहन से चाहने लगी

मैं मोहन संग जब भी करू कोई बात

मोहन भी मुझे देता हैं जवाब

मगर मोहन तुम क्यों सामने आते नही

आत्मा की आवाज बन

अन्तर मन में समाए जाते हो

मगर इन आँखों का पर्दा काहे न हटाते हो

क्यों श्याम दरस न दिखाते हो
 —