Monday, March 4, 2013

कुछ ऐसे छूया है तेरे प्यार ने
कि संभाले न संभालती हूँ
गली-गली, शहर-शहर
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तलाश नहीं किसी जश्न की
बारिश कि ताल पर थिरकती हूँ
हर मौसम में हर मिजाज़ में
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
न पूछ मेरी दीवानगी का सबब
तू वो खुदा है जिसपर मरती हूँ
सोते-जागते, उठते-बैठते
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तो क्या गर पायी न तुझे
तेरी याद में रोज़ संवरती हूँ
हँसती -खेलती, नाचती-गाती
तेरी मीरा बनी फिरती हूँ
तेरा साथ न मिल पाया तो क्या
तेरे हिज्र से गुज़र करती हूं
तेरे ख्यालों की चादर पहनकर
तेरी मीरा बनी फिरती हूं
फर्क मिट गए हैं मुझमें और तुझमें
ज़माने से अब न डरती हूं
गुजारिशों-तलब को पीछे छोड़
तेरी मीरा बनी फिरती ह
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