Friday, August 17, 2012

JAI VISHNU DEVAE NAMHA

ज़िंदगी में कई मौकों पर शरीर, बुद्धि, ज्ञान रूपी ताकत के गलत उपयोग के पीछे मन, बोल और व्यवहार में आया कोई न कोई दोष होता है। इससे थोड़े वक्त के लिए स्वार्थ सिद्ध या फायदा तो होता है, पर यही दोष आखिरकार बड़े कलह, अशांति, दु:ख, हानि और बुरे नतीजों की वजह भी बनता है। इससे तमाम सुख-सुविधाओं के बीच भी मन अशांत और अस्थिर रहता है।


धर्मशास्त्रों में मन और घर में प्रेम और शांति बनाए रखने के लिये ही जगतपालक भगवान विष्णु की भक्ति, सेवा और उपासना का महत्व बताया गया है। विष्णु पूजा मनचाहे सुख व संपन्नता भी देने वाली होती है। खासतौर पर इसके लिये अधिकमास (18 अगस्त से) में विष्णु भक्ति में कुछ मर्यादाओं और नियम-संयम का पालन भी जरूरी बताया गया है। इनसे अनजाने होने वाले धर्म व देव दोष से बचा जा सकता है।सबसे पहले विष्णु पूजा में तन की पवित्रता और स्वच्छता को अपनाएं। शौच के बाद बिना नहाए विष्णु आराधना न करें। बिना दांतों की सफाई किए बिना पूजा-उपासना न करें। गंदे और मैले वस्त्र पहनकर विष्णु पूजा न करें। काले या लाल वस्त्र पहनने के स्थान पर पीले वस्त्र पहन पूजा करें। पूजा के समय उदर या पेट की वायु न छोडें। मासिक धर्म से गुजर रही स्त्री के स्पर्श हो जाने पर स्नान करने के बाद ही विष्णु पूजा करें। शवयात्रा में शामिल होने या शव को छूने के बाद बिना स्नान कर ही विष्णु दर्शन या पूजा न करें।

JAI SHREE KRISHNA

हिन्दू धर्म में अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास पवित्र व पुण्यदायी माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु व उनके ही पुरुषोत्तम रूप की भक्ति का महत्व है। शास्त्रों में उजागर किया गया है कि पुरुषोत्तम मास में व्रत-नियम के लिए कैसा रहन-सहन, खान-पान व बोलचाल होना चाहिए। इनका पालन करने से संकल्प शक्ति मजबूत होती है। इससे बुद्धि, विचार, चेतना, ज्ञान और एकाग्रता बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि इस मास में विधिपूर्वक उपासना से भगवान पुरुषोत्तम, जगत पालक श्रीविष्णु और श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। साथ ही विष्णु पत्नी महालक्ष्मी की कृपा से भी सौभाग्य व संतान सहित हर सुख मिलते हैं।

अगर आप भी यशस्वी, सफल, धनवान व खुशकिस्मत बनने की कामना रखते हैं तो भावना व आस्था से इस माह में जगतपालक श्री विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा के शास्त्रों में बताए कुछ आसान व असरदार उपाय स्वयं करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं।ऊँ न
मो भगवते वासुदेवाय इस बारह अक्षरों वाले महामंत्र का हर रोज जप करें। कलश स्थापना कर अखण्ड दीप पूरे अधिकमास में जलाएं।तुलसी के पत्तों पर ऊँ या श्रीकृष्ण चन्दन से लिखकर भगवान शालिग्राम शिला पर अर्पित करना चाहिए। श्रीकृष्ण, श्रीशालग्राम शिला की हर रोज पंचामृत(दूध, दही, शहद, शक्कर व घी)से पूजा करें।
श्रीमद्भागवतपुराण, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना या सुनना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म, दातुन व स्नान कर भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूचा यानी सोलह पूजा उपायों व सामगियों से भगवान की पूजा करनी चाहिएइस मास में घर, मंदिर, तीर्थ और पवित्र देवस्थानों में भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत-उपवास, दान, पुण्य, पूजा, कथा कीर्तन और जागरण करना चाहिए। इस तरह पूरे पुरुषोत्तम मास में संभव हो तो हर रोज धार्मिक आचरण करने से जीवन तनावों से दूर होता है, मन, शांत और चित्त की चंचलता नहीं रहती। इससे जीवन को नए तरीके और सोच से जीने की राह दिखाई देती है। इसलिए जीवन को पतन से बचाने और आत्म अनुशासन पाने के लिए धर्म का मार्ग सबसे सरल है।

jai gaU MATA

कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के 'गोरक्षा-सम्मेलन' मेँ भाषण देते हुए नामधारी सिख-सम्प्रदायके सद्गुरु महाराज श्रीजगजीतसिँहजी ने गोमाता के द्वारा प्रत्यक्ष प्रकट होकर एक मुसलमान सज्जनकी प्राण रक्षा की अद्भुत घटना सुनायी थी । जब महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध वारकरी-संप्रदाय के सत्य पूज्य श्रीकृष्णगोपाल वानखड़े गुरुजी महाराज कृपापूर्वक मेरे यहाँ पिलखुवा पधारे तो मैँने वह घटना उनको सुनायी । वे इसे सुनकर बड़े प्रभावित हुए और स्वयं भैनी साहब जाकर महाराज श्रीजगजीतसिँहजी से मिले और पूरी घटना उनसे सुनकर मुझे लिखकर भिजवायी । वही यहाँ प्रकाशित है-



तपामंडी तहसील वरनाला जिला संगरुर मेँ एक मुसलमान सज्जन रहते थे, जो गोमाता के बड़े भक्त थे । उन्हीँके जीवन की यह सत्य घटना है । सन् 1947 मेँ हिँदुस्तान-पाकिस्तान के बँटवारे के समय जब समस्त देश मेँ भयंकर मार-काट मच रही थी तो उस समय घोर भयंकर विपत्तिके समय मेँ उन मुसलमान सज्जन के प्राणोँकी रक्षा गोमाता ने स्वयं प्रकट होकर कैसे अद्भुत ढ़ंगसे की, इसके संबंधमेँ स्वयं उन मुसलमान सज्जन ने सद्गुरु महाराज श्रीजगजीतसिँहजी को सुनाते हुए बताया-



सन् 1947 से कुछ दिनोँ पूर्व की बात है कि कुछ मुसलमान कसाई बूचड़ोँ को मैँने एक बहुत दुबली-पतली गाय ले जाते देखा । वे उसे काटने के लिए ले जा रहे थे । मुझे उस गाय को देखकर बड़ी दया आयी और मैँने उनसे वह गाय मोल देने के लिए कहा । उन कसाइयोँ ने मुझसे उस गाय के दाम बीस रुपये माँगे । मेरे पास उस समय बीस रुपये थे नहीँ । मैँ बड़ा गरीब आदमी था; फिर भी मैने गाय के प्राण बचाने की सोची और मैँने अपने घरपर जाकर अपनी भौजाई से एक सोने की चीज ली । उसे गिरवी रखकर बीस रुपये प्राप्त किये और वह गाय उनसे खरीद ली । मैँने कसाइयोँ के हाथोँ से बचायी गयी उस गाय को अपने घर पर नहीँ रखा; क्योँकि मैँने यह काम घरवालोँ से बिना पूछे चोरी से किया था । जब वह गाय ब्यायी तो अपने घरपर लानेपर दूध के लालच से किसीने भी इनकार नहीँ किया । कुछ सालतक उस गाय को अपने पास रखकर फिर उसे मैँने ऐसी जगहपर बेच दिया कि जहाँ फिर उसको किसी प्रकार का कष्ट न हो और उसके जीवन को किसी प्रकार का भी खतरा न हो ।



सन् 1947 मेँ हिँदुस्तान-पाकिस्तानका बँटवारा हुआ तो सभी को यह मालूम है कि उस समय एक बहुत बड़ा कत्लेआम हुआ था और उस समय हिँदू-मुसलमान एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गये थे । मुसलमानोँने हिँदुओँको और हिँदुओँने मुसलमानोँको मारा-काटा था । हम मुसलमान वहाँ पर थोड़ी संख्यामेँ थे तो जब हमपर हमला हुआ तो हम हिन्दुओँके उस हमले से डरकर एक मकान के अंदर घुस गये और अंदर से उस मकान की साँकल लगा दी । लोगोँने मकानको घेरकर उसमेँ आग लगा दी । मकान मेँ आग लगी देखकर सब लोग एकदमसे बाहर निकल गये । सिर्फ मैँ ही अकेला उस मकानके अंदर रह गया, मकान धुएँ से भर गया । मकान के चारोँ ओर आग लगी थी । अब तो मैँ बड़ा घबराया कि अब मेरे प्राणोँ की रक्षा इस समय कैसे होगी ? अकस्मात मैँ उस समय क्या देखता हूँ कि जिस गाय को मैँने कुछ दिनोँ पूर्व मुसलमान कसाइयोँ के हाथोँ से बचाया था, ठीक उसी प्रकार की और ठीक उसी रंग की गाय की पूँछ मेरे सामने घूमने लगी और अपनी पूँछ से उस धूएँ से और उस आग से मेरी बराबर रक्षा करती रही । फिर जब आतंक समाप्त हुआ तो मैँ उस गाय की कृपा से अग्नि के बीच से जीवित निकल आया ।



यह है हमारी पूजनीया गोमाता की भक्ति का महान आश्चर्यजनक अद्भुत चमत्कार ।


HTML Free Code