ज़िंदगी में कई मौकों पर शरीर, बुद्धि, ज्ञान रूपी ताकत के गलत उपयोग के पीछे मन, बोल और व्यवहार में आया कोई न कोई दोष होता है। इससे थोड़े वक्त के लिए स्वार्थ सिद्ध या फायदा तो होता है, पर यही दोष आखिरकार बड़े कलह, अशांति, दु:ख, हानि और बुरे नतीजों की वजह भी बनता है। इससे तमाम सुख-सुविधाओं के बीच भी मन अशांत और अस्थिर रहता है।
धर्मशास्त्रों में मन और घर में प्रेम और शांति बनाए रखने के लिये ही जगतपालक भगवान विष्णु की भक्ति, सेवा और उपासना का महत्व बताया गया है। विष्णु पूजा मनचाहे सुख व संपन्नता भी देने वाली होती है। खासतौर पर इसके लिये अधिकमास (18 अगस्त से) में विष्णु भक्ति में कुछ मर्यादाओं और नियम-संयम का पालन भी जरूरी बताया गया है। इनसे अनजाने होने वाले धर्म व देव दोष से बचा जा सकता है।सबसे पहले विष्णु पूजा में तन की पवित्रता और स्वच्छता को अपनाएं। शौच के बाद बिना नहाए विष्णु आराधना न करें। बिना दांतों की सफाई किए बिना पूजा-उपासना न करें। गंदे और मैले वस्त्र पहनकर विष्णु पूजा न करें। काले या लाल वस्त्र पहनने के स्थान पर पीले वस्त्र पहन पूजा करें। पूजा के समय उदर या पेट की वायु न छोडें। मासिक धर्म से गुजर रही स्त्री के स्पर्श हो जाने पर स्नान करने के बाद ही विष्णु पूजा करें। शवयात्रा में शामिल होने या शव को छूने के बाद बिना स्नान कर ही विष्णु दर्शन या पूजा न करें।
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