jai gaU MATA
कुछ
वर्ष पूर्व दिल्ली के 'गोरक्षा-सम्मेलन' मेँ भाषण देते हुए नामधारी
सिख-सम्प्रदायके सद्गुरु महाराज श्रीजगजीतसिँहजी ने गोमाता के द्वारा
प्रत्यक्ष प्रकट होकर एक मुसलमान सज्जनकी प्राण रक्षा की अद्भुत घटना
सुनायी थी । जब महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध वारकरी-संप्रदाय के सत्य पूज्य
श्रीकृष्णगोपाल वानखड़े गुरुजी महाराज कृपापूर्वक मेरे यहाँ पिलखुवा पधारे
तो मैँने वह घटना उनको सुनायी । वे इसे सुनकर बड़े प्रभावित हुए और स्वयं
भैनी साहब जाकर महाराज श्रीजगजीतसिँहजी से मिले और पूरी घटना उनसे सुनकर
मुझे लिखकर भिजवायी । वही यहाँ प्रकाशित है-
तपामंडी
तहसील वरनाला जिला संगरुर मेँ एक मुसलमान सज्जन रहते थे, जो गोमाता के बड़े
भक्त थे । उन्हीँके जीवन की यह सत्य घटना है । सन् 1947 मेँ
हिँदुस्तान-पाकिस्तान के बँटवारे के समय जब समस्त देश मेँ भयंकर मार-काट मच
रही थी तो उस समय घोर भयंकर विपत्तिके समय मेँ उन मुसलमान सज्जन के
प्राणोँकी रक्षा गोमाता ने स्वयं प्रकट होकर कैसे अद्भुत ढ़ंगसे की, इसके
संबंधमेँ स्वयं उन मुसलमान सज्जन ने सद्गुरु महाराज श्रीजगजीतसिँहजी को
सुनाते हुए बताया-
सन् 1947 से कुछ दिनोँ पूर्व की बात
है कि कुछ मुसलमान कसाई बूचड़ोँ को मैँने एक बहुत दुबली-पतली गाय ले जाते
देखा । वे उसे काटने के लिए ले जा रहे थे । मुझे उस गाय को देखकर बड़ी दया
आयी और मैँने उनसे वह गाय मोल देने के लिए कहा । उन कसाइयोँ ने मुझसे उस
गाय के दाम बीस रुपये माँगे । मेरे पास उस समय बीस रुपये थे नहीँ । मैँ
बड़ा गरीब आदमी था; फिर भी मैने गाय के प्राण बचाने की सोची और मैँने अपने
घरपर जाकर अपनी भौजाई से एक सोने की चीज ली । उसे गिरवी रखकर बीस रुपये
प्राप्त किये और वह गाय उनसे खरीद ली । मैँने कसाइयोँ के हाथोँ से बचायी
गयी उस गाय को अपने घर पर नहीँ रखा; क्योँकि मैँने यह काम घरवालोँ से बिना
पूछे चोरी से किया था । जब वह गाय ब्यायी तो अपने घरपर लानेपर दूध के लालच
से किसीने भी इनकार नहीँ किया । कुछ सालतक उस गाय को अपने पास रखकर फिर उसे
मैँने ऐसी जगहपर बेच दिया कि जहाँ फिर उसको किसी प्रकार का कष्ट न हो और
उसके जीवन को किसी प्रकार का भी खतरा न हो ।
सन् 1947
मेँ हिँदुस्तान-पाकिस्तानका बँटवारा हुआ तो सभी को यह मालूम है कि उस समय
एक बहुत बड़ा कत्लेआम हुआ था और उस समय हिँदू-मुसलमान एक-दूसरे के खून के
प्यासे बन गये थे । मुसलमानोँने हिँदुओँको और हिँदुओँने मुसलमानोँको
मारा-काटा था । हम मुसलमान वहाँ पर थोड़ी संख्यामेँ थे तो जब हमपर हमला हुआ
तो हम हिन्दुओँके उस हमले से डरकर एक मकान के अंदर घुस गये और अंदर से उस
मकान की साँकल लगा दी । लोगोँने मकानको घेरकर उसमेँ आग लगा दी । मकान मेँ
आग लगी देखकर सब लोग एकदमसे बाहर निकल गये । सिर्फ मैँ ही अकेला उस मकानके
अंदर रह गया, मकान धुएँ से भर गया । मकान के चारोँ ओर आग लगी थी । अब तो
मैँ बड़ा घबराया कि अब मेरे प्राणोँ की रक्षा इस समय कैसे होगी ? अकस्मात
मैँ उस समय क्या देखता हूँ कि जिस गाय को मैँने कुछ दिनोँ पूर्व मुसलमान
कसाइयोँ के हाथोँ से बचाया था, ठीक उसी प्रकार की और ठीक उसी रंग की गाय की
पूँछ मेरे सामने घूमने लगी और अपनी पूँछ से उस धूएँ से और उस आग से मेरी
बराबर रक्षा करती रही । फिर जब आतंक समाप्त हुआ तो मैँ उस गाय की कृपा से
अग्नि के बीच से जीवित निकल आया ।
यह है हमारी पूजनीया गोमाता की भक्ति का महान आश्चर्यजनक अद्भुत चमत्कार ।
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