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धर्म में अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास पवित्र व पुण्यदायी माना जाता है।
इसमें भगवान विष्णु व उनके ही पुरुषोत्तम रूप की भक्ति का महत्व है।
शास्त्रों में उजागर किया गया है कि पुरुषोत्तम मास में व्रत-नियम के लिए
कैसा रहन-सहन, खान-पान व बोलचाल होना चाहिए। इनका पालन करने से संकल्प
शक्ति मजबूत होती है। इससे बुद्धि, विचार, चेतना, ज्ञान और एकाग्रता बढ़ती
है। ऐसा माना जाता है कि इस मास में विधिपूर्वक उपासना से भगवान
पुरुषोत्तम, जगत पालक श्रीविष्णु और श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। साथ
ही विष्णु पत्नी महालक्ष्मी की कृपा से भी सौभाग्य व संतान सहित हर सुख
मिलते हैं।
अगर आप भी यशस्वी, सफल, धनवान व खुशकिस्मत बनने की
कामना रखते हैं तो भावना व आस्था से इस माह में जगतपालक श्री विष्णु और
श्रीकृष्ण की पूजा के शास्त्रों में बताए कुछ आसान व असरदार उपाय स्वयं
करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं।ऊँ न
मो
भगवते वासुदेवाय इस बारह अक्षरों वाले महामंत्र का हर रोज जप करें। कलश
स्थापना कर अखण्ड दीप पूरे अधिकमास में जलाएं।तुलसी के पत्तों पर ऊँ या
श्रीकृष्ण चन्दन से लिखकर भगवान शालिग्राम शिला पर अर्पित करना चाहिए।
श्रीकृष्ण, श्रीशालग्राम शिला की हर रोज पंचामृत(दूध, दही, शहद, शक्कर व
घी)से पूजा करें।
श्रीमद्भागवतपुराण, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना या सुनना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म, दातुन व स्नान कर भगवान विष्णु की
षोडशोपचार पूचा यानी सोलह पूजा उपायों व सामगियों से भगवान की पूजा करनी
चाहिएइस मास में घर, मंदिर, तीर्थ और पवित्र देवस्थानों में भगवान विष्णु
की पूजा के साथ ही व्रत-उपवास, दान, पुण्य, पूजा, कथा कीर्तन और जागरण करना
चाहिए। इस तरह पूरे पुरुषोत्तम मास में संभव हो तो हर रोज धार्मिक आचरण
करने से जीवन तनावों से दूर होता है, मन, शांत और चित्त की चंचलता नहीं
रहती। इससे जीवन को नए तरीके और सोच से जीने की राह दिखाई देती है। इसलिए
जीवन को पतन से बचाने और आत्म अनुशासन पाने के लिए धर्म का मार्ग सबसे सरल
है।
श्रीमद्भागवतपुराण, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना या सुनना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म, दातुन व स्नान कर भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूचा यानी सोलह पूजा उपायों व सामगियों से भगवान की पूजा करनी चाहिएइस मास में घर, मंदिर, तीर्थ और पवित्र देवस्थानों में भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत-उपवास, दान, पुण्य, पूजा, कथा कीर्तन और जागरण करना चाहिए। इस तरह पूरे पुरुषोत्तम मास में संभव हो तो हर रोज धार्मिक आचरण करने से जीवन तनावों से दूर होता है, मन, शांत और चित्त की चंचलता नहीं रहती। इससे जीवन को नए तरीके और सोच से जीने की राह दिखाई देती है। इसलिए जीवन को पतन से बचाने और आत्म अनुशासन पाने के लिए धर्म का मार्ग सबसे सरल है।
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