पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस
बार यह एकादशी 8 जनवरी, मंगलवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की
विधि इस प्रकार है-
सफला एकादशी (8 जनवरी, मंगलवार) के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहन कर माथे पर चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें। भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। शाम को दीप दान के बाद फलाहार कर सकते हैं।
सफला एकादशी के दिन दीप-दान करने की परंपरा भी है। इस रात्रि को वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागते हैं। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है। द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।
इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सफला एकादशी (8 जनवरी, मंगलवार) के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहन कर माथे पर चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें। भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। शाम को दीप दान के बाद फलाहार कर सकते हैं।
सफला एकादशी के दिन दीप-दान करने की परंपरा भी है। इस रात्रि को वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागते हैं। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है। द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।
इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।