Thursday, August 16, 2012

SHYAM PREM

अमूल्य श्याम प्रेम का मूल्य केवल अविरल अश्रुधारा ही है. और कोई साधन नहीं है जो प्रिय-प्रियतम को प्रसन्न कर सके. अपने आपको साधनहीन स्वीकार करते हुये करुण क्रन्दन बस यही जन्माष्टमी पर उनको प्रसन्न करने का एक मात्र उपाय है और यही उनकी प्राप्ति का सर्वसुगम सर्वश्रेष्ठ साधन है.

सब अवतार मधुर गोविन्द राधे,
कृष्ण लीला मधुरातिमाधुर बता दे.

भगवान का जब सगुण साकार अवतार होता है तो अपने नाम, रूप, लीला, गुण, धाम यह वह छोड़ जाते है जिसका अवलंब लेकर अनन्तानन्त जीव भगवान के प्रेमानंद को प्राप्त होते है उदारहर्नाथ अगर श्री कृष्ण का अवतार न होता तो शुकदेव श्री कृष्ण के लिये व्याकुल न होते. भागवत को सुना और परीक्षित को सुनाया. बिना सगुण साकार अवतार लिये भगवान के सगुण नाम, रूप, लीला, धाम का विस्तार हमको न मिलता. और बिना इसके प्राप्त हुये घोर मायाबध जीव किस प्रकार भगवत्प्राप्ति करते इसलिये जीव कल्याण के लिये ही भगवान का अवतार होता है.

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य
शर्वरीनामसंवत्सरेसूर्येदक्षिणायनेवर्षतरैभाद्रपदमासेकृष्णपक्षेश्रीकृष्णजन्माष्टम्यांतिथौभौमवासरेअमुकनामाहं(अमुक
की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा
श्रीकृष्णदेवप्रीतयेजन्माष्टमीव्रताङ्गत्वेनश्रीकृष्णदेवस्ययथामिलितोपचारै:पूजनंकरिष्ये।

RADHEY RADHEY

JAI TULSI MAA

शालग्राम शिला भगवान विष्णु का साक्षात स्वरूप मानी जाती है। इसलिए जहां शालग्राम शिला होती है, वह स्थान तीर्थ के समान पुण्यदायी माना गया है। यही नहीं शालग्राम शिला और भगवती स्वरूपा तुलसी का योग तो सारे अभाव, कलह और संताप का अंत करने वाला माना गया है।

यही वजह है कि हिन्दू पंचांग की हर एकादशी पर शालग्राम-तुलसी उपासना ज्ञान, धन, स्वास्थ्य, विद्या, प्रतिष्ठा, यश सहित किसी भी अभाव का अंत करने वाली मानी गई है।

जीवन में ऐसे ही मंगल के लिए शास्त्रों में ऐसे भी छोटे-छोटे उपाय बताए गए हैं, जिनसे शालग्राम व तुलसी उपासना एक ही साथ हो जाती है। इनमें ही एक उपाय है शालग्राम शिला को स्नान कराकर तुलसी दल विशेष मंत्र से अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना। जानिए यह विशेष मंत्र-

- शालग्राम शिला को पवित्र स्थान या पात्र में रखकर पवित्र जल से स्नान या अभिषेक कराकर साफ वस्त्र से पोंछकर नियत स्थान पर विराजित करें। केसरिया चंदन, सुगंधित फूल चढ़ाकर पूजा करें, मिठाई का भोग लगाकर नीचे लिखे तुलसी मंत्र से तुलसी दल शालग्राम को अर्पित करें -

तुलसी हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम्।

भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम्।।

- तुलसी दल चढ़ाने के बाद शालग्राम या विष्णु भगवान की धूप, दीप व कर्पूर आरती कर खुशहाल जीवन की कामना करें।

♥♥♥ जय जय श्री कृष्ण ♥♥♥

मोहन से दिल क्यूँ लगाया है, यह मैं जानू या वो जाने ।
छलिया से दिल क्यूँ लगाया है, यह मैं जानू या वो जाने ॥

हर बात निराली है उसकी, कर बात में है इक टेडापन ।
टेड़े पर दिल क्यूँ आया है, यह मैं जानू या वो जाने ॥

जितना दिल ने तुझे याद किया, उतना जग ने बदनाम किया ।
बदनामी का फल क्या पाया हैं, यह मैं जानू या वो जाने ॥

तेरे दिल ने दिल दीवाना किया, मुझे इस जग से बेगाना किया ।
मैंने क्या खोया क्या पाया हैं, यह मैं जानू या वो जाने ॥

मिलता भी है वो मिलता भी नहीं, नजरो से मेरी हटता भी नहीं ।
यह कैसा जादू चलाया है, यह मैं जानू या वो जाने ॥

MAKHAN CHOR

भगवान की माखनचोरी का रहस्य :
जब भगवान श्रीकृष्ण छोटे थे, तो सभी गोपियों का हृदय उन्हे लाड लडाने के लिये आतुर रहता था. उनका मन करता कि गोपाल को माखन खिलायें. एक दो बार तो वो नन्दभवन मे जा के कन्हैया को माखन खिला आयीं, पर रोज - रोज जाना शायद नन्दरानी को अच्छा न लगे. उनके यहाँ तो लाखों गायें हैं, और दधि और माखन तो उनके घर मे भरा ही रहता है. तो नन्दरानी यह भी कह सकती हैं, कि बहन माखन तो हमारे यहाँ पहल
े से ही है, तुम क्यों रोज - रोज कष्ट करती हो? ऐसा सोच कर, मन मसोस कर सब की सब अपने घरों मे ही रहीं. कन्हैया को अपने घर का माखन न खिला पाने से उनके आकुल हृदय मे बड़ी वेदना होने लगी.
भक्तवत्सल भगवान का प्रण है कि जो भी मुझे प्रेम से, चाहे फल, फूल, पत्ती या फिर जल ही अर्पित करे, तो मैं बडे प्रेम से उसे ग्रहण करता हूँ. वो जान गये कि गोप- मातायें मुझे लाड लडाने के लिये और माखन खिलाने के लिये अधीर हैं. उन्होने सोचा कि मैं कौन सा ऐसा कार्य करूँ, जिस से इन वात्सल्यमयी गोपियों को अपूर्व आनन्द मिले?
तो भगवान चोरी से उनके यहाँ जा के माखन खाने लगे.
चोरी से ही क्यों? जा के मांग के भी तो खा सकते थे?
तो उत्तर ये है, कि अपने घर मे कोई चीज अगर बहुतायत मे हो, और किसी और के घर जा के वही चीज मांगें, तो इस का अर्थ है कि दूसरे के यहाँ की चीज अपनी चीज से उत्तम है. और अगर अपने यहाँ कोई चीज बहुतायत मे होते हुए भी, अगर दूसरे के घर मे उसी चीज के लिये चोरी करें, तो इसका मतलब है कि दूसरे के यहाँ की चीज हमारी चीज से उत्तम ही नहीं, बल्कि हमारे लिये अनमोल है, हमें उस चीज की अत्यधिक चाह है, हम उस के बिना रह नहीं सकते, हमारे लिये वो चीज अमूल्य है, तभी तो हम उसे चुरा रहे हैं.
इसी लिये उन वात्सल्यप्रेममयी गोपियों के घर मे हमारे नन्दनन्दन चोरी कर के माखन खाते थे. और बिना कहे ही कहते थे, कि मैया तेरा माखन खाये बिना मुझे चैन नहीं पडता.

पुरुषोत्तम व मल मास

हिंदू पंचांग के अनुसार विक्रम संवत् 2069 में (सन् 2012) भाद्रपद नामक अधिकमास है। यह अधिक मास 18 अगस्त, शनिवार को प्रारंभ होगा जो 16  सितंबर, रविवार तक रहेगा। धर्म ग्रंथों में इसे पुरुषोत्तम व मल मास भी कहा गया है। इस महीने में भगवान विष्णु का पूजन करने का विशेष महत्व है।

ज्योतिषियों के अनुसार इस बार सूर्य की सिंह संक्रांति में ही भाद्रपद की दो अमावस्याएं व्यतीत हो जाएंगी। पहली अमावस्या के बाद दूसरी अमावस्या तक का मास श्रीपुरुषोत्तम मास होगा। इस प्रकार 2012 में दो भाद्रपद मास होंगे।

क्यों आता है अधिक मास?

32 महीने, 16 दिन, 1 घंटा 36 मिनट के अंतराल से हर तीसरे साल अधिक मास आता है। ज्योतिष में चंद्रमास 354 दिन व सौरमास 365 दिन का होता है। इस कारण हर साल 11 दिन का अंतर आता है जो 3 साल में एक माह से कुछ ज्यादा होता है। चंद्र और सौर मास के अंतर को पूरा करने के लिए धर्मशास्त्रों में अधिक मास की व्यवस्था की है।

क्या रहेगा प्रभाव?

ज्योतिषियों के अनुसार जिस वर्ष भाद्रपद का अधिक मास होता है उस वर्ष धान की उत्पत्ति बहुत अधिक होती है। फसल अच्छी होने से अर्थ व्यवस्था पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे देश के आर्थिक हालात में सुधार होता है तथा व्यापार-व्यवसाय में भी तेजी रहती है।

हिन्दू धर्म का यह महीना पुरुषोत्तम मास या अधिमास के रूप में प्रसिद्ध है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक यह मास 32 माह 16 दिन और चार घड़ी में फिर से आता है। यानी लगभग 3 साल में एक बार। धार्मिक दृष्टि से यह मास भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को समर्पित पुण्यदायी मास है। भगवान श्रीकृष्ण का ही एक नाम पुरुषोत्तम होने से इस मास का नाम पुरुषोत्तम मास कहलाया। करीब 3 साल में आने वाला यह विशेष काल अधिकमास भी कहलाता हैयोतिष विज्ञान के मुताबिक जिस चन्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति नही होती है वह मास अधिमास कहलाता है। सरल शब्दों में अगर चन्द्रमास के दोनों ही पक्षों में सूर्य किसी भी राशि में प्रवेश नहीं करता यानी संक्रमण नहीं करता है, तब वह संक्रमणरहित मास साल के माहों की गिनती में अधिक हो जाता है। इसलिए इसे अधिकमास भी पुकारा जाता है। इस बार इस बार पुरुषोत्तम मास का संयोग भाद्रपद मास से हो रहा है। अधिकमास होने पर एक ही माह को पहला और दूसरा कहकर दो बार गणना की जाती है। यह शुभ संयोग शनिवार (18 अगस्त) से शुरू हो रहा है। शास्त्रों में उल्लेख है कि भाद्रपद और अधिकमास के संयोग के पूरे साठ दिनों में से अधिमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ कर अधिमास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक अधिमास के भगवान विष्णु व श्रीकृष्ण की भक्ति, सेवा, व्रत-उपवास व दान-पुण्य करने से अक्षय फल व सौभाग्य प्राप्त होते हैं।

♥♥ चलो देख आएं नन्द घर लाला हुआ।
यह तो नन्द जी के कुल का उजाला हुआ॥

देखो सब ग्वाल बाल, चले होके खुशिहाल,
संग बईया गल डाल, नाचे दे दे के ताल।
सब मिलझुल कहें गोप ग्वाला हुआ,
चलो देख आएं नन्द घर लाला हुआ॥

बाजे शंख घड़ेयाल, जनम लीनो गोपाल,
सखी ब्रिज में सब ग्वाल, कहें जय जय गोपाल।
झूले अंगना में पलना है डाला हुआ,
चलो देख आएं नन्द घर लाला हुआ॥

प्रगटे बृज में बृजराज, करने भक्तों के काज,
आया सारा समाज, दर्शन करने को आज।
सुख नैनो को पहुचाने वाला हुआ,
चलो देख आएं नन्द घर लाला हुआ॥

देखो गोकुल की और, कैसे नाच रहे मोर,
छाए बादल घनघोर, बोले पची करे छोर।
बर्षा आनंद की बरसाने वाला हुआ,
चलो देख आएं नन्द घर लाला हुआ॥ ♥♥