भगवान की माखनचोरी का रहस्य :
जब भगवान श्रीकृष्ण छोटे थे, तो सभी गोपियों का हृदय उन्हे लाड लडाने के
लिये आतुर रहता था. उनका मन करता कि गोपाल को माखन खिलायें. एक दो बार तो
वो नन्दभवन मे जा के कन्हैया को माखन खिला आयीं, पर रोज - रोज जाना शायद
नन्दरानी को अच्छा न लगे. उनके यहाँ तो लाखों गायें हैं, और दधि और माखन तो
उनके घर मे भरा ही रहता है. तो नन्दरानी यह भी कह सकती हैं, कि बहन माखन
तो हमारे यहाँ पहल
े से ही है, तुम क्यों रोज - रोज कष्ट करती हो? ऐसा
सोच कर, मन मसोस कर सब की सब अपने घरों मे ही रहीं. कन्हैया को अपने घर का
माखन न खिला पाने से उनके आकुल हृदय मे बड़ी वेदना होने लगी.
भक्तवत्सल
भगवान का प्रण है कि जो भी मुझे प्रेम से, चाहे फल, फूल, पत्ती या फिर जल
ही अर्पित करे, तो मैं बडे प्रेम से उसे ग्रहण करता हूँ. वो जान गये कि
गोप- मातायें मुझे लाड लडाने के लिये और माखन खिलाने के लिये अधीर हैं.
उन्होने सोचा कि मैं कौन सा ऐसा कार्य करूँ, जिस से इन वात्सल्यमयी गोपियों
को अपूर्व आनन्द मिले?
तो भगवान चोरी से उनके यहाँ जा के माखन खाने लगे.
चोरी से ही क्यों? जा के मांग के भी तो खा सकते थे?
तो उत्तर ये है, कि अपने घर मे कोई चीज अगर बहुतायत मे हो, और किसी और के
घर जा के वही चीज मांगें, तो इस का अर्थ है कि दूसरे के यहाँ की चीज अपनी
चीज से उत्तम है. और अगर अपने यहाँ कोई चीज बहुतायत मे होते हुए भी, अगर
दूसरे के घर मे उसी चीज के लिये चोरी करें, तो इसका मतलब है कि दूसरे के
यहाँ की चीज हमारी चीज से उत्तम ही नहीं, बल्कि हमारे लिये अनमोल है, हमें
उस चीज की अत्यधिक चाह है, हम उस के बिना रह नहीं सकते, हमारे लिये वो चीज
अमूल्य है, तभी तो हम उसे चुरा रहे हैं.
इसी लिये उन वात्सल्यप्रेममयी
गोपियों के घर मे हमारे नन्दनन्दन चोरी कर के माखन खाते थे. और बिना कहे ही
कहते थे, कि मैया तेरा माखन खाये बिना मुझे चैन नहीं पडता.
तो उत्तर ये है, कि अपने घर मे कोई चीज अगर बहुतायत मे हो, और किसी और के घर जा के वही चीज मांगें, तो इस का अर्थ है कि दूसरे के यहाँ की चीज अपनी चीज से उत्तम है. और अगर अपने यहाँ कोई चीज बहुतायत मे होते हुए भी, अगर दूसरे के घर मे उसी चीज के लिये चोरी करें, तो इसका मतलब है कि दूसरे के यहाँ की चीज हमारी चीज से उत्तम ही नहीं, बल्कि हमारे लिये अनमोल है, हमें उस चीज की अत्यधिक चाह है, हम उस के बिना रह नहीं सकते, हमारे लिये वो चीज अमूल्य है, तभी तो हम उसे चुरा रहे हैं.
इसी लिये उन वात्सल्यप्रेममयी गोपियों के घर मे हमारे नन्दनन्दन चोरी कर के माखन खाते थे. और बिना कहे ही कहते थे, कि मैया तेरा माखन खाये बिना मुझे चैन नहीं पडता.
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