एक बार की बात है जब कौरवों ने नपुसंक वेषधारी पुरुष को रथ में चढ़कर
शमीवृक्ष की तरफ जाते हुए देखा तो वे अर्जुन के आने की आशंका से मन ही मन
बहुत डरे हुए थे। तब द्रोणाचार्य ने पितामह भीष्म से कहा गंगापुत्र यह जो
स्त्रीवेष में दिखाई दे रहा है, वह अर्जुन सा जान पड़ता है। इधर अर्जुन रथ
को शमी के वृक्ष के पास ले गए और उत्तर से बोले राजकुमार मेरी आज्ञा मानकर
तुम जल्दी ही वृक्ष पर से धनुष उतारो।
ये तुम्हारे धनुष के बाहुबल को सहन नहीं कर सकेंगे। उत्तर को वहां पांच
धनुष दिखाई दिए। उत्तर पांडवों के उन धनुषों को लेकर नीचे उतारा और अर्जुन
के आगे रख दिए। जब कपड़े में लपेटे हुए उन धनुषों को खोला तो सब ओर से
दिव्य कांति निकली। तब अर्जुन ने कहा राजकुमार ये तो अर्जुन का गाण्डीव
धनुष है। राजकुमार उत्तर ने नपुसंक का वेष धरे हुए अर्जुन से कहा अगर ये
धनुष पांडवों के हैं तो पांडव कहां हैं? तब अर्जुन ने कहा मै अर्जुन हूं।
उत्तर ने पूछा कि मैंने अर्जुन के दस नाम सुने हैं? अगर तुम मुझे उन नामों
का व उन नामों के कारण बता दो तो मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास हो सकता है।
उत्तर बोला- मैंने अर्जुन के दस नाम सुने हैं? यदि तुम मुझे उन नामों का
कारण सुना दो तो मुझे तुम्हारी बात का विश्वास हो जाएगा। अर्जुन ने कहा-
मैं सारे देशों को जीतकर उनसे धन लाकर धन ही के बीच स्थित था इसलिए मेरा
नाम धनंजय हुआ। मैं संग्राम में जाता हूं तो वहां से शत्रुओं को जीते बिना
कभी नहीं लौटता हूं। इसलिए मेरा दूसरा नाम विजय है। मेरे रथ पर सुनहरे और
श्वेत अश्व मेरे रथ में जोते जाते हैं इसलिए मैं श्वेतवाहन हूं। मैंने
हिमालय पर जन्म लिया था इसलिए लोग मुझे फाल्गुन कहने लगे।
इंद्र ने मेरे सिर पर तेजस्वी किरीट पहनाया था, इसलिए मेरा नाम किरीट हुआ।
मैं युद्ध करते समय भयानक काम नहीं करता इसीलिए में देवताओं के बीच बीभत्सु
नाम से प्रसिद्ध हूं। गांडीव को खींचने में मेरे दोनों हाथ कुशल हैं इसलिए
मुझे सव्य सांची नाम से पुकारते हैं। मेरे जैसा शुद्धवर्ण दुर्लभ है और
मैं शुद्ध कर्म ही करता हूं। इसलिए लोग मुझे अर्जुन नाम से जानते हैं। मैं
दुर्जय का दमन करने वाला हूं। इसलिए मेरा नाम जिष्णु है। मेरा दसवां नाम
कृष्ण पिताजी का रखा हुआ है क्योंकि मेरा वर्ण श्याम और गौर के बीच का है।