Saturday, December 7, 2013

धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (इस बार 7 दिसंबर, शनिवार) को भगवान श्रीराम का विवाह सीता से हुआ ये तो लगभग सभी जानते हैं लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस संपूर्ण की थी। श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम के जीवन का अद्भुत और सुंदर वर्णन मिलता है।

1- श्रीरामचरितमानस का लेखन गोस्वामी तुलसीदास ने किया था। इनका जन्म संवत् 1554 में हुआ था। जन्मते समय बालक तुलसीदास रोए नहीं बल्कि उनके मुख से राम का शब्द निकला। जन्म से ही उनके मुख में बत्तीस दांत थे। बाल्यवास्था में इनका नाम रामबोला था। काशी में शेषसनातनजी के पास रहकर तुलसीदासजी ने साल तक वेद-वेदांगों का अध्ययन किया।

2- संवत् 1583 में तुलसीदासजी का विवाह हुआ। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। एक बार जब उनकी पत्नी अपने मायके गईं तो पीछे-पीछे ये भी वहां पहुंच गए। पत्नी ने जब यह देखा तो उन्होंने तुलसीदासजी से कहा कि जितनी तुम्हारी मुझमें आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा कल्याण हो जाता। पत्नी की यह बात तुलसीदासजी को चुभ गई और उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग दिया व साधुवेश धारण कर लिया।
3- एक रात जब तुलसीदासजी सो रहे थे तो उन्हें सपना आया। सपने में भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुरंत ही तुलसीदासजी की नींद टूट गई और वे उठ कर बैठ गए। तभी वहां भगवान शिव और पार्वती प्रकट हुए और उन्होंने कहा- तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी। भगवान शिव की आज्ञा मानकर तुलसीदासजी अयोध्या आ गए।
4- संवत् 1631 को रामनवमी के दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में रामजन्म के समय था। उस दिन प्रात:काल तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। दो वर्ष, सात महीने व छब्बीस दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन इस ग्रंथ के सातों कांड पूर्ण हुए और भारतीय संस्कृति को श्रीरामचरितमानस के रूप में अमूल्य निधि प्राप्त हुई।


5- यह ग्रंथ लेकर तुलसीदासजी काशी गए। रात को तुलसीदासजी ने यह पुस्तक भगवान विश्वनाथ के मंदिर में रख दी। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो उस पर लिखा था- सत्यं शिवं सुंदरम्। और नीचे भगवान शंकर के हस्ताक्षर थे। उस समय उपस्थित लोगों ने सत्यं शिवं सुंदरम् की आवाज भी अपने कानों से सुनी।

6- अन्य पंडितों ने जब यह बात सुनी तो उनके मन में तुलसीदासजी के प्रति ईष्र्या होने लगी। उन्होंने दो चोर श्रीरामचरितमानस को चुराने के लिए भेजे। चोर जब तुलसीदासीजी की कुटिया के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दो वीर धनुष बाण लिए पहरा दे रहे हैं। वे बड़े ही सुंदर और गौर वर्ण के थे। उनके दर्शन से चोरों की बुद्धि शुद्ध हो गई और वे भगवान भजन में लग गए।
- एक बार पंडितों ने ईष्र्यावश श्रीरामचरितमानस की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने भगवान काशीविश्वनाथ के मंदिर में सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबसे नीचे श्रीरामचरितमानस ग्रंथ रख दिया। मंदिर बंद कर दिया गया। सुबह जब मंदिर खोला गया तो सभी ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। यह देखकर पंडित लोग बहुत लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा मांगी और श्रीरामचरितमानस के सर्वप्रमुख ग्रंथ माना।



8- इस ग्रंथ में रामलला के जीवन का जितना सुंदर वर्णन किया गया है उतना अन्य किसी ग्रंथ में पढऩे को नहीं मिलता। यही कारण है कि श्रीरामचरितमानस को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। रामचरित मानस में कई ऐसी चौपाई भी तुलसीदास ने लिखी है जो विभिन्न परेशानियों के समय मनुष्य को सही रास्ता दिखाती है तथा उनका उचित निराकरण भी करती हैं।