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समझ कर नदी में फेंक दिया लेकिन हरिदास जी
के मुंह से यही शब्द निकले.. 'प्रभु इनके ऊपर दया करो, ये अज्ञानी हैं..'
संत उसमान के ऊपर राख का टोकरा फेंक दिया. वह ख़ुशी से नाचने लगे, कहने
लगे.. 'अरे मैं तो अंगारे फेंकने लायक हूँ, यदि हर क्षण मेरे द्वारा प्रभु
का स्मरण नहीं होता तो इस शरीर को ही जलाकर राख कर देना चाहिए...' ऐसे होते
हैं संत, बेचारे कृपा के अतिरिक्त कुछ कर ही नहीं सकते. गालियाँ दो तो भी
प्यार और प्यार के बदले तो प्यार देते ही हैं...||
के मुंह से यही शब्द निकले.. 'प्रभु इनके ऊपर दया करो, ये अज्ञानी हैं..'
संत उसमान के ऊपर राख का टोकरा फेंक दिया. वह ख़ुशी से नाचने लगे, कहने
लगे.. 'अरे मैं तो अंगारे फेंकने लायक हूँ, यदि हर क्षण मेरे द्वारा प्रभु
का स्मरण नहीं होता तो इस शरीर को ही जलाकर राख कर देना चाहिए...' ऐसे होते
हैं संत, बेचारे कृपा के अतिरिक्त कुछ कर ही नहीं सकते. गालियाँ दो तो भी
प्यार और प्यार के बदले तो प्यार देते ही हैं...||
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