हिन्दू वर्ष के बारह महीनों में हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष
में एक-एक एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को
समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत सभी दोषों और विकारों से
छुटकारा देने वाला माना गया है। इस तरह यह इंसान के लिए आत्मरक्षक ही है।
यह खासतौर पर वैष्णव व्रत है, किंतु विष्णु उपासक हर धर्मावलंबी इस व्रत को
करता है।
दरअसल, एकादशी व्रत मात्र धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक
तौर पर भी मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी अहम है। किंतु यह भी देखा
जाता है कि कई शिक्षित युवा भी इस संबंध में ज्ञान के अभाव में भारतीय
सनातन धर्म से जुडी व्रत परंपराओं की उपेक्षा करते हैं।
सच यह है कि प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों से लेकर देश की आजादी के
महानायक महात्मा गांधी भी व्रत-उपवास के महत्व को सिद्ध कर चुके हैं । नई
पीढी के लिए यह समझना जरूरी है कि अगर कोई इस व्रत को धर्म या ईश भक्ति की
नजरिए से न करें, किंतु निरोग रहने में भी यह व्रत महत्वपूर्ण है। यह मन को
संयम रखने के भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
इस व्रत से जुड़े वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो चूंकि चन्द्रमा की
कलाओं के घटने और बढ़ने का प्रभाव सभी प्राणियों और वनस्पतियों पर पड़ता
है। हिन्दू धर्म पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। हर तिथि पर चन्द्रमा की
स्थिति सदा एक सी रहती है। इसलिए उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पडता है।
इसलिए सेहत के नजरिए से ऐसा माना जाता है कि चतुर्थी तिथि से एकादशी के बीच
पैदा रोग गंभीर नहीं हो पाते। इस काल में पहले के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
हर मास में दो एकादशी होती है । इस तरह महीने में आने वाली 2 एकादशी
तिथियों के दो दिन आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को मजबूत
बनाकर शरीर को सेहतमंद व मन को प्रसन्न रखता है।
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