Monday, August 27, 2012

आज (27 अगस्त, सोमवार) कमला एकादशी है। धर्म ग्रंथों में इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि यह पुरुषोत्तम मास में ही आती है। इस प्रकार ये व्रत 4 साल में ही आता है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी है जो इस प्रकार है-

पुरातन समय में महिष्मती नगरी में कार्तवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उस राजा की सौ पत्नियां थीं पर उनमें से किसी को भी राज्यभार सँभालने वाला योग्य पुत्र नहीं था। तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे। यह देखकर कार्तवीर्य तपस्या करने के लिए वन में चले गए। उनकी पत्नी (हरिशचंद्र की पुत्री प्रमदा) भी उनके साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गई। वहां रहते हुए कार्तवीर्य ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। तब रानी प्रमदा ने माता अनुसूया से पुत्र प्राप्ति का मार्ग पूछा।

तब माता अनुसूया बोली कि अधिक मास की दोनों एकादशियों को विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना जरुर पूरी होगी। इसके बाद माता अनसूया ने व्रत की विधि बतलाई। रानी ने विधि के अनुसार व्रत किया। यह देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और प्रमदा के सामने प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब प्रमदा ने कहा कि- हे भगवान। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे पति को उनका मनचाहा वरदान दीजिए। प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले- हे राजेन्द्र! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है।

यह सुनकर कार्तवीर्य ने कहा कि- हे भगवन्! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये। भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गए। उसके बाद कार्तवीर्य व प्रमदा अपने राज्य को वापस आ गये। कुछ समय बाद कार्तवीर्य के यहां एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया। वह भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय था। उसने अपने पराक्रम से रावण को भी जीत लिया था। यह सब कमला एकादशी व्रत का ही प्रभाव था।


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