Monday, December 24, 2012

विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय के किसी भी ग्रंथ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता। जयंती सिर्फ श्रीमद्भगवत गीता की मनाई जाती है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ है।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनि: सृता।।

गीता का जन्म कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ। मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात यह तिथि इस बार 23 दिसंबर को थी। गीता किसी देश, काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए न होकर संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है। जिस प्रकार गाय के दूध को बछड़े के बाद सभी धर्म, संप्रदाय के लोग पान करते हैं। इसे दुहने वाले गोपाल श्रीकृष्ण हैं, अर्जुन रूपी बछड़े के पीने से निकलने वाला महान् अमृतसदृश दूध ही गीतामृत है।

गीता वेदों और उपनिषदों का सार है। लोक-परलोक में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य को परम श्रेय के साधन का उपदेश देने वाला, ऊंचे ज्ञान, विमल भक्ति, उज्जवल कर्म, यम, नियम, त्रिविध तप, अहिंसा, सत्य और दया के उपदेश देने वाला ग्रंथ है। इसके छोटे-छोटे 18 अध्यायों में इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गंभीर सात्विक उपदेश हैं, जो व्यक्ति को नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान में बैठा देने की शक्ति रखते हैं। गीता का लक्ष्य मनुष्य को कर्तव्य का बोध कराना है।

दुनिया के किसी भी धर्म-दर्शन में पूर्वजन्म या पुनर्जन्म की स्पष्ट व्याख्या नहीं मिलती। सिर्फ हिंदू सनातन धर्म-दर्शन में ही पूर्व और पुनर्जन्म पर चर्चा की गई है। व्यावहारिक रूप में देखें तो सिर्फ हमारी व्यवस्था में ही हम एक ही जन्म में तीन जन्मों की चर्चा करते हैं। इसके पीछे हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित सत्कर्म की शिक्षा ही है। श्रीकृष्ण ने गीता में आत्मा के अजर-अमर होने और निष्काम फल की शिक्षा दी है।

 

फलित ज्योतिष में जातक की कुंडली के लग्न से वर्तमान जन्म, नवम् भाव से पिछले जन्म व पंचम् भाव से अगले जन्म का फलित जाना जाता है। कुंडली में ग्रहों की स्थितियां और दशाएं पिछले जन्म में संचित कर्मों के आधार पर प्रारब्ध के रूप में मिलती हैं। प्रारब्ध के आधार पर ही वर्तमान जन्म में उत्थान या पतन होता है। ईश्वर ने 84 लाख योनियों में सिर्फ  मनुष्य को ही यह विशेषाधिकार दिया है कि वह वर्तमान जन्म में सत्कर्म कर प्रारब्ध में मिले दुष्कर्मों के प्रभाव को कम करे व आने वाले जन्म को व्यवस्थित करे।

श्रीकृष्ण-अर्जुन के संवाद के 18 अध्याय अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान-कर्म-संन्यास योग, कर्म-संन्यास योग, आत्म-संयम योग, ज्ञान-विज्ञान योग, अक्षर ब्रह्म योग, विद्याराजगुह्य योग, विभूति योग, विश्व रूप-दर्शन योग, भक्ति योग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, देवासुर संपद्विभाग योग, श्रद्धात्रय विभाग योग और मोक्ष संन्यास योग में बांटे गए हैं।

 

इन अध्यायों के पढऩे या सुनने से ही पूर्वजन्मों के पापों से मुक्ति पाने के प्रसंग पद्मपुराण में वर्णित हैं। अत: मनुष्य को अंतिम समय में गीता सुनाई जाती है।

गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। इस श्लोक से ही इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। 'सुख-दु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।' भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! जो भक्ति प्रेमपूर्वक, उत्साह सहित परम रहस्य युक्त गीता को निष्काम भाव से प्रेमपूर्वक मेरे भक्तों को पढ़ाएगा या इसका प्रचार करेगा, वह निश्चित ही मुझे ही प्राप्त करेगा। न तो उससे बढ़कर मेरा अतिशय प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई है और न उससे बढ़कर मेरा अत्यंत प्यारा पृथ्वी पर दूसरा कोई होगा। हे अर्जुन! जो पुरुष इस धर्ममय गीताशास्त्र को पढ़ेगा उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा।

हम बड़े भाग्यवान हैं कि इस संसार के घोर अंधकार से भरे घने मार्ग में गीता के रूप में प्रकाश दिखाने वाला यह धर्मदीप प्राप्त हुआ है। अत: हमारा भी यह धर्म-कर्तव्य है कि हम इसके लाभ को मनुष्य मात्र तक पहुंचाने का सतत् प्रयास करें।

इसी वजह से गीता जयंती का महापर्व मनाया जाता है। गीता जयंती पर जनता-जनार्दन में गीता प्रचार के साथ ही श्रीगीता के अध्ययन, गीता की शिक्षा को जीवन में उतारने की स्थाई योजना बनानी चाहिए।

इसके लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए-

1. श्रीमद्भगवत गीता का पूजन।

2. गीता वक्ता भगवान् श्रीकृष्ण, उसके श्रोता नरस्वरूप भक्त प्रवर अर्जुन तथा उसे महाभारत में ग्रंथित करने वाले भगवान् वेदव्यास का पूजन।

3. गीता का यथा साध्य व्यक्तिगत और सामूहिक परायण।

4.  गीता तत्व को समझाने तथा उसके प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं, प्रवचन और गोष्ठियों का आयोजन।

5. विद्यालयों और महाविद्यालयों में गीता पाठ, उस पर व्याख्यान का आयोजन।

6.  गीता ज्ञान संबंधी परीक्षा का आयोजन और उसमें उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को पुरस्कार वितरण।

7.  मंदिर, देवस्थान आदि में श्रीमद्गीता कथा का आयोजन।

8.  गीताजी की शोभायात्रा निकालना आदि।


Sunday, December 23, 2012

भगवान विष्णु के अवतारों खासतौर पर श्रीकृष्ण और श्रीराम के कर्म और मर्यादा के सूत्र हर काल में सुखी जीवन के बेहतर उपाय माने गए हैं।

23 को एकादशी के शुभ योग में मन, वचन, व्यवहार को साधने के लिए यहां भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु के ध्यान का सरल मंत्र बताया जा रहा है, जिसका आप अकेले या परिवार, इष्टमित्रों के साथ बैठकर भी ध्यान करें तो मनचाहे काम जल्द बनने के साथ तनाव, दबाव व परेशानी से मुक्त जीवन का सुख भी उठा पाएंगे।

 एकादशी के दौरान यथासंभव हर दिन भगवान विष्णु की गंध, चंदन, पीले फूल, नैवेद्य अर्पित कर सुगंधित धूप व दीप जलाकर इस आसान मंत्र का जप करें -

अच्युतं केशवम् रामनारायणम्
कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरिम्
श्रीधरं माधवं गोपिका वल्लभम्
जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे

- मंत्र जप या भजन के बाद विष्णु आरती कर प्रसाद जरूर ग्रहण करें।

हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 23 दिसंबर, रविवार को है। महाभारत के अनुसार जब कौरवों व पांडवों में युद्ध प्रारंभ होने वाला था। तब अर्जुन ने कौरवों के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि श्रेष्ठ महानुभावों को देखकर तथा उनके प्रति स्नेह होने पर युद्ध करने से इंकार कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिसे सुन अर्जुन ने न सिर्फ महाभारत युद्ध में भाग लिया अपितु उसे निर्णायक स्थिति तक पहुंचाया।
गीता को आज भी हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गीता के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। कुछ लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं जबकि गीता के उपदेश में जिस वैराग्य का वर्णन किया गया है वह एक कर्मयोगी का है। कर्म भी ऐसा हो जिसमें फल की इच्छा न हो अर्थात निष्काम कर्म।
गीता में यह कहा गया है कि निष्काम काम से अपने धर्म का पालन करना ही निष्कामयोग है। इसका सीधा का अर्थ है कि आप जो भी कार्य करें, पूरी तरह मन लगाकर तन्मयता से करें। फल की इच्छा न करें। अगर फल की अभिलाषा से कोई कार्य करेंगे तो वह सकाम कर्म कहलाएगा। गीता का उपदेश कर्मविहिन वैराग्य या निराशा से युक्त भक्ति में डूबना नहीं सीखाता वह तो सदैव निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है।

Saturday, December 22, 2012

श्रीकृष्ण चरित्र कर्म से सफलता की प्रेरणा देता है। यही नहीं श्रीमद्भगदगीता  के मुताबिक स्वाभाविक कर्तव्यों व कामों को पूरा करते चले जाना भी भगवान की पूजा  की तरह है। कई क्षेत्रों में ऐसे कामकाजी लोग हैं जो इन कर्तव्यों के चलते ही विशेष त्योहार व उत्सवों पर घर से दूर होते हैं या इष्ट की पूजा का बेहद कम वक्त निकाल पाते हैं।

श्रीकृष्ण को इष्ट मानने वाले कामकाजी लोगों के लिए ही यहां बताए जा रहे हैं श्रीकृष्ण पूजा के 5 सरल उपाय खासतौर पर एकादशी तिथि पर भक्ति और आस्था से अपनाएं तो हर परेशानी से छुटकारा मिलता है।
- बालकृष्ण की मृर्ति या तस्वीर पर केसर या पीला चंदन, फूल या हार चढ़ाएं। यथासंभव पूजा के पहले स्नान करें।
- तुलसी के पत्ते चढ़ाएं।
- फल चढ़ाएं। मिठाई (शक्कर भी) नैवेद्य के रूप में चढ़ाएं।
- अगरबत्ती व दीपक लगाकर आरती करें।
- इस बेहद सरल कृष्ण मंत्र को बोल कर्मयोगी भगवान कृष्ण से पूजा हर काम में सफलता की कामना करें -
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हिन्दू धर्म परंपराओं में एकादशी तिथि भगवान विष्णु व उनके अवतारों की उपासना का शुभ दिन माना जाता है। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण को 'भगवान' पुकारा गया है। पुराणों के मुताबिक श्री और ऐश्वर्य भी भगवान की छ: शक्तियों में शामिल है।

यही वजह है कि खासतौर पर धन कामना पूरी करने के लिए एकादशी की घड़ी में कुछ खास व असरदार कृष्ण मंत्र बोलना धनलाभ देने वाले माने गए हैं।

- ॐ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा

- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्रीं

- लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा


Friday, December 21, 2012


मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी का व्रत किया जाता है। इस बार 23 दिसंबर, रविवार को यह व्रत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था, जो मोक्ष प्रदान करता है। इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इसकी विधि इस प्रकार है-

मोक्षदा एकादशी (23 दिसंबर, रविवार) के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। इसके पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात में सोए नहीं। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए।

जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। सुबह पुन: भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें व योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा संभव दान देने के पश्चात ही स्वयं भोजन करें। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।

धर्म ग्रंथों में मिले वर्णन करने के भगवान श्रीकृष्ण की 16108  रानियां थी। उनमें से प्रमुख आठ पटारानियां थी। जिनके नाम इस प्रकार है रुक्मिणी,सत्यभामा,जाम्बवंती,सत्या,कालिंदी,लक्ष्मणा, मित्रविन्दा। इन आठों पटरानियों से श्रीकृष्ण के दस-दस पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार हैं......

 

रुक्मिणी: प्रधुम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।

 

 

जाम्बवंती: साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु।

 

सत्या: वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुन्ति।

कालिंदी: श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक।

मित्रविन्दा: वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि।

 

लक्ष्मणा: प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित।

 

भद्रा: संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।

सत्यभामा: भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।


ईश्वरीय सत्ता को मानने वाले हर धर्मावलंबी के लिए ईश्वर से जुडऩे के लिए ज्ञान और कर्म के अलावा एक ओर आसान उपाय बताया गया है। यह तरीका है - भक्ति। भक्ति का मार्ग न केवल ज्ञान और कर्म की तुलना में आसान माना गया है, बल्कि भक्ति के जो रूप बताए गए हैं, वह व्यावहारिक जीवन में अपनाना हर उस इंसान के लिए संभव है, जो देव कृपा से जीवन में सुख और शांति की कामना रखता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगदगीता में लिखी बात भक्ति के 9 रूप उजागर करती है -
श्रवणं कीर्तनं विष्णों: स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्य्रमात्मनिवेदनम्।।
इसमें भगवान की भक्ति के 9 रूप श्रवण यानी सुनकर, कीर्तन, स्मरण, चरणसेवा, पूजन-अर्चन, वन्दना, दास भाव, सखा भाव और समर्पण भाव को बहुत ही शुभ बताया गया है।
यही नहीं भक्ति के इन 9 रास्तों से जिन भक्तों ने भगवान की कृपा पाई, उनके नाम भी धर्मग्रंथों में मिलते हैं। जानिए  उन 9 विलक्षण और महान भक्तों के नाम उनके द्वारा अपनाए भक्ति के 9 अद्भुत तरीके -
श्रवण - राजा परीक्षित
कीर्तन - श्रीशुकदेवजी
स्मरण - भक्त प्रह्लाद
चरण सेवा - देवी लक्ष्मी
पूजन-अर्चन - राजा पृथु
वन्दना - अक्रूरजी
दास - श्रीहनुमान
सखा या मित्र भाव - अर्जुन
समर्पण - राजा बलि

Wednesday, December 19, 2012


विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती। हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है-

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।

श्रीगीताजी का जन्म धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी (इस बार 23 दिसंबर, रविवार) को हुआ था। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है।

इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश भरे हैं जो मनुष्यमात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।

 

Monday, December 17, 2012

http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=jzKaynWyTmo
"Aaj badhayi hai Vrindavan.....
Bankey bihari ji ne janam liyo hai
kunj bihari ji ne janam liyo hai"

Friday, December 14, 2012


इस बार खर (मल) मास का प्रारंभ 16 दिसंबर, रविवार से होगा जो 14 जनवरी 2013, सोमवार तक रहेगा। हिंदू धर्मशास्त्रों में खर मास को बहुत ही पूजनीय बताया गया है। मल मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। खर मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है इसके संबंध में हमारे शास्त्रों में एक कथा का वर्णन है जो इस प्रकार है-

प्राचीन काल में जब सर्वप्रथम खर मास की उत्पत्ति हुई तो वह स्वामीरहित मलमास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कार्यों के लिए वर्जित माना गया। इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी। निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा और अपनी पीड़ा बताई। तब भगवान विष्णु मल मास को लेकर गोलोक गए।

वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठे थे। भगवान विष्णु ने मल मास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा कि यह मल मास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा क्योंकि अब से मैं इसे अपना नाम देता हूं।

यह जगत में पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात होगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं। जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे। इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

Wednesday, December 12, 2012

भगवान सूर्य संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र के अधिपति हैं। सूर्य का मेष आदि 12 राशियों पर जब संक्रमण (संचार) होता है, तब संवत्सर बनता है जो एक वर्ष कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष में दो बार जब सूर्य, गुरु की राशि धनु व मीन में संक्रमण करता है उस समय को खर, मल व पुरुषोत्तम मास कहते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
इस बार खर मास का प्रारंभ 16 दिसंबर, 2012 रविवार से हो रहा है, जो 14 जनवरी, 2013 सोमवार को समाप्त होगा। इस मास की मलमास की दृष्टि से जितनी निंदा है, पुरुषोत्तम मास की दृष्टि से उससे कहीं श्रेष्ठ महिमा भी है।
भगवान पुरुषोत्तम ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूं और इसके नाम से सारा जगत पवित्र होगा तथा मेरी सादृश्यता को प्राप्त करके यह मास अन्य सब मासों का अधिपति होगा। यह जगतपूज्य और जगत का वंदनीय होगा और यह पूजा करने वाले सब लोगों के दारिद्रय का नाश करने वाला होगा।
अहमेवास्य संजात: स्वामी च मधुसूदन:। एतन्नान्मा जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति।।
मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोयं तु भविष्यति।।
पूजकानां सर्वेषां दु:खदारिद्रयखण्डन:।।

Tuesday, December 11, 2012

शास्त्रों के अनुसार कई ऐसी चीजें बताई गई हैं जिन्हें घर में रखना शुभ माना जाता है। इन चीजों में बांसुरी भी शामिल है। सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यंत प्रिय है।

घर में सुख-समृद्धि बनी रहे इसके लिए सभी कई प्रकार के उपाय करते हैं। कुछ उपाय धर्म से संबंधित होते हैं तो कुछ ज्योतिष के और कुछ वास्तु से संबंधित। इन सभी उपायों को अपनाने से संभवत: घर से नेगेटिव ऊर्जा दूर हो जाती है। यदि आपके घर में कुछ नेगेटिव हो रहा है तो यह परंपरागत उपाय अपनाने चाहिए।


पुराने समय से ही घर में सुख-समृद्धि और धन की पूर्ति बनाए रखने के लिए कई परंपरागत उपाय अपनाए जाते हैं। ऐसी ही एक उपाय है घर में बांसूरी रखना। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर प्रेम बना रहता है साथ ही श्रीकृष्ण की कृपा से सभी दुख और पैसों की तंगी भी दूर हो जाती है।


घर में बांसुरी ऐसे स्थान पर रखनी चाहिए जहां से वह आसानी से नजर आती रहे। किसी दीवार पर भी सुंदर सी बांसुरी लगाई जा सकती है। इससे घर की सुंदरता भी आकर्षक हो जाएगी। बाजार में कई तरह की सुंदर और मनमोहक बांसुरी उपलब्ध हैं जिनका उपयोग घर की सजावट में भी किया जाता है।


शास्त्रों के अनुसार बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। वे सदा ही इसे अपने साथ रखते हैं। इसी वजह से इसे बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब भी बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां प्रेम वश प्रभु के समक्ष जा पहुंचती थीं।


बांसुरी से निकलने वाले स्वर प्रेम बरसाने वाला ही है। इसी वजह से जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां प्रेम और धन की कोई कमी नहीं रहती है।


सामान्यत: घर में बांस की बनी हुई बांसुरी ही रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार इस बांसूरी से घर के वातावरण में मौजूद समस्त नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। परिवार के सदस्यों के विचार सकारात्मक होते हैं जिससे उन्हें सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

हिन्दू धर्म पंचांग की चतुर्दशी तिथि या चौदहवां दिन भगवान विष्णु व महादेव की भक्ति की शुभ घड़ी मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं में इस तिथि की रात भगवान शिव का दिव्य ज्योर्तिलिंग प्रकट हुआ तो वहीं भगवान विष्णु भी इस शुभ तिथि पर नृसिंह रूप में अवतरित हुए।
यही वजह है कि चतुर्दशी तिथि (12 दिसंबर) पर भगवान नृसिंह की उपासना भक्त प्रहलाद की तरह ही सारे संकटों, मुश्किलों, दु:खों और मुसीबतों से बचाकर मनचाहे सुखों को देने वाली मानी गई है। चूंकि शास्त्रों में भगवान शिव व विष्णु भक्ति में भेद करना पाप तक माना गया है।
शिव व विष्णु अवतार से जुडे पौराणिक प्रसंग साफ भी करते हैं कि धर्म रक्षा और धर्म आचरण की सीख देने के लिए लिए युग और काल के मुताबिक दोनों ही देवता अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट हुए।
अगर आप भी परेशानी या संकट में घिरे हों या सामना कर रहे हैं, तो संकटमोचन के लिए इस नृसिंह मंत्र का स्मरण भगवान विष्णु या नृसिंह प्रतिमा की पूजा कर जरूर करें।

 भगवान नृसिंह सुबह व शाम के  बीच की घड़ी में प्रकट हुए। इसलिए प्रदोष काल यानी सुबह-शाम के मिलन के क्षणों में ही गंध, चंदन, फूल व नैवेद्य चढ़ाकर नीचे लिखा नृसिंह मंत्र मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना के साथ बोलें व धूप, दीप से आरती कर प्रसाद ग्रहण करें - ध्यायेन्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।

Sunday, December 9, 2012

हिन्दू धर्म के मुताबिक भगवान विष्णु जगत के पालन करने वाले देवता है। शास्त्रों में उनका स्वरूप सौम्य बताया गया है। यानी भगवान विष्णु सात्विक शक्तियों के स्वामी भी हैं।
यही वजह है कि सांसारिक नजरिए से भगवान विष्णु की उपासना सुख, आनंद, प्रेम, शांति के साथ बल देने वाली मानी जाती है। धार्मिक परंपराओं में विष्णु पूजा की तरह-तरह से विधि-विधान और पूजा सामग्रियों द्वारा बताई गई है। किंतु यहां बताई जा रही भगवान विष्णु की एक ऐसी पूजा जिसमें न किसी पूजा सामग्री की जरूरत होती है, न ही किसी प्रतिमा की।
विष्णु की यह पूजा मन के भावों से की जाती है, जिसे मानस पूजा भी कहते हैं। खासतौर पर एकादशी तिथि पर मानस पूजा का फल पूजा सामग्रियों से की गई पूजा से भी शुभ और अधिक माना गया है। इस पूजा में कोई भी व्यक्ति मन के भावों से जितनी चाहे उतनी मात्रा और बेहतर पूजा सामग्रियां भगवान विष्णु को अर्पित कर सकता है। बस भाव ही अहम होते हैं।

 सुबह स्नान कर घर के देवालय में भगवान विष्णु इस मंत्र से ध्यान करें -
संशखचक्र सकिरीट कुण्डल सपीत वस्त्र सरसी रुहेश्र्णम।
सहार वक्षस्थल कौस्तुभस्त्रियं नमामि विष्णु शिरसा चतुर्भुजम।।
- इसके बाद मन ही मन इन 16 पूजा मंत्रों से विष्णु की मानस पूजा करें -
ऊँ पादयो: पाद्यं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ हस्तयो: अर्घ्य समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ गन्धं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ पुष्पं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ पुष्पमाला समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ धूप समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ दीपं दर्शयामि नारायणाय नम:।
ऊँ नैवेद्यं निवेदयामि नारायणाय नम:।
ऊँ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ ऋतुफलम् समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ पुनराचमनीय समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ पूगीफलं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ आरार्तिक्यं समर्पयामि नारायणाय नम:।
ऊँ पुष्पाञ्जलि समर्पयामि नारायणाय नम:।
अंत में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जप करें।

Saturday, December 8, 2012

सधी जीवनशैली और सही सोच किसी भी बुरे वक्त, अशांति या कलह में मन को गलत दिशा में भटकाने से बचाती है। मायूसी और नाकामी से दूर इंसान खुद के साथ दूसरों के लिए भी सुख व सफलता की राह पर चलना आसान बना देता  है।

हिन्दू धर्म परंपराओं में एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु व उनके अवतारों का स्मरण सारे कलह और संताप को दूर करने वाला माना गया है। इसी कड़ी में भगवान कृष्ण की भक्ति आनंद, सुख और सौभाग्य लाने वाली मानी गई है।

श्रीकृष्ण लीला भी हर इंसान को अपनी गुण और शक्तियों को पहचान उनसे सौभाग्य व सफलता पाने का संदेश देती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया कर्मयोग भी कलह और दु:खों से मुक्त रहने का सबसे श्रेष्ठ और बेजोड़ सूत्र है। 

श्रीकृष्ण भक्ति से ही सहज और सफल जीवन के लिए एकादशी पर विशेष कृष्ण मंत्र को सुबह पूजा उपाय के साथ बोलना सुख-संपत्ति, ऐश्वर्य और वैभव देने वाला माना गया है।

- सवेरे स्नान कर भगवान श्रीकृष्ण प्रतिमा यथासंभव बालकृष्ण की प्रतिमा को गंगाजल और पंचामृत स्नान कराएं।

- स्नान के बाद गंध, सुगंधित फूल, अक्षत, पीले वस्त्र अर्पित करें।

- श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

- सुगंधित धूप और दीप प्रज्जवलित कर नीचे लिखे कृष्ण मंत्र का आस्था से स्मरण करें -

ऊँ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।

- मंत्र ध्यान के बाद भगवान कृष्ण या विष्णु की आरती करें। प्रसाद बांटे और ग्रहण करें। पूजा, आरती में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करें।


Friday, December 7, 2012

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इस बार 9 दिसंबर, रविवार को यह व्रत है। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है-
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि (8 दिसंबर, शनिवार) को शाम का भोजन करने के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात के समय भोजन न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन सुबह 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें।
इसके पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात में सोए नहीं। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। सुबह पुन: भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें व योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा संभव दान देने के पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए।
धर्म शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।

Thursday, November 29, 2012

तेरी याद के जुगनू
आये........काँटों से भी खुशबु आये.......

दिल पे कैसे काबू
पाएं..........शायद उनको जादू आये.........

चन्द्रमुखी चंचल
चितचोर का मेरादिल दीवाना ......
 
जित देखूँ उत श्याम
ही दीखे
, राधे श्याम ही दीखे...
देख छवि बलिहारी मैं जाऊं......♥♥
जय जय श्री राधा

वीरान थी यह
ज़िन्दगी तेरे आने से पहले.......!!

खुशियों के सपने
मुझे दिखाने लगा है तू ......!!!

हर पल मुझे होता है
बस तेरा ही एहसास.......!!

इस क़दर मेरी साँसों
में समाने लगा है तू.....!!

ॐ श्री राधे कृष्ण .राधे
कृष्ण श्री राधे कृष्ण !!

Kuan hai jo sapnon mein atha
hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

Kuan hai jo raaton ko jagatha hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

Kuan hai jo neenden uda ratha hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

Kaun hai jo roh mein dhaltha hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

Kaun hai jo sanson mein machaltha hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

Kaun hai jo mera DIL meri jaan hai,

KOI AUR NAHI SIRF TUM HO...

~jai shri krishna ~

ओ मेरे साँवरिया तेरी प्यारी प्यारी
सूरत मोहनी मूरत को क्या काहू
लुट गए हम तेरी अदाओं पे
हुए दीवाने तेरे श्याम
तेरे बिन अब भाए न मोहे कोई बात

मोहे तो करनी तो संग यारी
मोहे तो संग ही हैं प्रीत निभानी
प्रीत की रीत सिखा जा रे
मोहे प्रेमी जोगन बना जा रे
लुट गए हम तेरी अदाओं पे
हुए दीवाने तेरे श्याम आपकी कृष्णाकर्षीणी गौरी

Wednesday, November 14, 2012

हिन्दू धर्म में गाय की पूजा भी पुण्य और सुख-समृद्धि के साथ लक्ष्मी कृपा पाने का श्रेष्ठ और आसान धार्मिक कर्म माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक भी गाय देव प्राणी है। गाय की देह के हर हिस्से में अनेक देवी-देवता जैसे विष्णु, लक्ष्मी का भी वास माना गया है।
इस वजह से भी धर्म-कर्म में गोमय यानी गोबर या गो मूत्र का उपयोग किया जाता है, जो असल में पवित्रता के जरिए लक्ष्मी कृपा व मां लक्ष्मी को बुलावा है। इसी कड़ी में दीपोत्सव के चौथे दिन यानी गोवर्धन पूजा की शुभ घड़ी में मात्र गाय की परिक्रमा विशेष मंत्र बोलकर कर लेना भी धन कामना को पूरी करने वाला माना गया है। जानिए हैं यह विशेष मंत्र और सरल विधि
-
- सुबह स्नान और भोजन तैयार होने पर गाय और बछड़े की गंध, अक्षत, लाल फूलों के साथ पूजा लक्ष्मी स्वरूप का ध्यान कर करें। भोजन का ग्रास खिलाएं और धूप, दीप पूजा कर नीचे लिखे मंत्र के साथ गाय की परिक्रमा करें- 

गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य कुर्याच्चैव प्रदक्षिणम्। 

प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा।।

मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्वसुखप्रदा:।

वृद्धिमाकाङ्क्षता पुंसा नित्यं कार्या प्रदक्षिणा।। 

यह उपाय दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के दिन करना भी शुभ व मंगलकार होता है।

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 14 नवंबर, बुधवार) के दिन पर्वतराज गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसकी कथा इस प्रकार है-
एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मना रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा कि आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है।
हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए। तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न कर दें। मेघ ब्रज-भूमि पर जाकर मूसलधार बरसने लगे। इससे भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो।
वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठिïका अंगुली पर उठाकर छाते सा तान दिया। गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टिï से बच गए। सुदर्शन-चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ीा। यह चमत्कार देखकर ब्रह्मïाजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा-याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन-पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।
 

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर, बुधवार को है। आईए जानते हैं गोवर्धन पूजा का माहात्म्य-

हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के  दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के  बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। उल्लेखनीय है कि ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है।

बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गौओं का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फलप्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।

Sunday, November 11, 2012

दीपावली के एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 12 नवंबर, सोमवार को है। नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है जो इस प्रकार है-
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। उसने संतों आदि की 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना लिया। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवताओं व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए।
भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।
उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस बार यह पर्व 12 नवंबर, सोमवार को है। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है।  इसकी कथा इस प्रकार है-

जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए।

तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।

राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में न रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।

भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।

 

Sunday, November 4, 2012


श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी का उतना ही महत्व है जितना हमारे शरीर में आत्मा का। श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी दसवें स्कंध में 29 से 33 अध्याय में है। भाईश्री ने रास लीला के अर्थ को इस लेख में समझाया है।
एक गोपी जो भगवान कृष्ण के प्रति कोई इच्छा नहीं रखती। वह सिर्फ कृष्ण को ही चाहती है। उनके साथ रास खेलना चाहती है। उसकी खुशी सिर्फ भगवान कृष्ण को खुश देखने में है।
भागवत में श्री शुकदेवजी कहते हैं श्रीकृष्ण वृंदावन के जंगलों में रास लीला करना चाहते थे। वास्तव में भगवान कुछ नहीं चाहता, वह तो स्वयं ही साध्य भी है, साधन भी।
वास्तव में रास क्या है? रास भगवान कृष्ण और कामदेव के बीच का युद्ध एक है। कामदेव ने जब भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया तो उसे खुद पर बहुत गर्व होने लगा। वो भगवान कृष्ण के पास जाकर बोला कि मैं आपसे भी मुकाबला करना चाहता हूं। भगवान ने उसे स्वीकृति दे दी। लेकिन कामदेव ने इस मुकाबले के लिए भगवान के सामने एक शर्त भी रख दी। कामदेव ने कहा कि इसके लिए आपको अश्विन मास की पूर्णिमा को वृंदावन के रमणीय जंगलों में स्वर्ग की अप्सराओं सी सुंदर गोपियों के साथ आना होगा। कृष्ण ने यह भी मान लिया। कामदेव ने कहा कि उसे अपने अनुकूल वातावरण भी चाहिए और उसके पिता मन भी वहां ना हों।
फिर जब तय शरद पूर्णिमा की रात आई। भगवान कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई। बांसुरी की सुरीली तान सुनकर गोपियां अपनी सुध खो बैठीं। कृष्ण ने उनके मन मोह लिए। उनके मन में काम का भाव जागा, लेकिन ये काम कोई वासना नहीं थी, ये तो गोपियों के मन में भगवान को पाने की इच्छा थी।
आमतौर पर काम, क्रोध, मद, मोह और भय अच्छे भाव नहीं माने जाते हैं लेकिन जिसका मन भगवान ने चुरा लिया हो तो ये भाव उसके लिए कल्याणकारी हो जाते है। उदाहरण के लिए जैसे जिसके भी मन में भगवान कृष्ण थे, उसने क्रोध करके भगवान से युद्ध किया तो उसे मुक्ति ही मिली, जैसे कंस और शिशुपाल।
ऐसे ही गोपियों में जब कृष्ण के प्रति काम का संचार हुआ, वे उत्साहित हुईं और गहरी नींद से जाग गईं।
भगवान ने बांसुरी की तान पर हर एक गोपी को उसके नाम से पुकारा। हर गोपी ने ये सोचा कि उसने कृष्ण को मोहित किया है और वे बिना किसी को कहे, घर से जंगल के लिए निकल पड़ीं। जबकि रात में कोई गोपी अकेली जंगल में नहीं जा सकती थी।
एक स्त्री कई मर्यादाओं में बंधी होती है। लेकिन गोपियों के मन में जो प्रेम था उसने उन्हें डर के बावजूद हिम्मत दी। जहां डर और स्वार्थ हो, वहां ऐसे भाव को वासना कहा जाता है। रावण बहुत शक्तिशाली था लेकिन वासना के कारण, जब वो सीता का साधु के रुप में अपहरण करने गया तो पेड़ की सामान्य पत्तियों से भी डर रहा था। कागभुशुंडी गरुड़ से कहते हैं कि हे गरुड़, मनुष्य गलत रास्तों पर अपनी विवेक और ताकत खो देता है, उसके पास सिर्फ डर ही रह जाता है।
यहां गोपियों के मन में कोई भय नहीं था। क्यों? क्योंकि वे जानती थीं कि वे कोई गलत काम नहीं कर रही हैं। वे वो लक्ष्य प्राप्त करने जा रही है जिसके लिए जीव को जन्म मिलता है। श्रीकृष्ण के साथ रास खेलना यानी परमात्मा को प्राप्त करना है।
सभी गोपियों ने महसूस किया कि भगवान सिर्फ उन्हें ही पुकार रहे हैं। लेकिन वो एक नहीं थी, कई थीं। मतलब भगवान को पाने के रास्ते पर कई लोग चल रहे हैं और सभी यही सोचते हैं कि वे अपने दम पर चल रहे हैं। भगवान से हमारे रिश्ते में कोई गोपनीयता नहीं होती है लेकिन निजता जरूर होती है।
इसलिए, गोपियां डरी नहीं। उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ दिया। घर, परिवार, रिश्ते-नाते, जमीन-जायदाद, सुख-शांति और वृंदावन के उस जंगल में पहुंच गईं, जहां कृष्ण थे। श्रीकृष्ण ने सभी गोपियों का स्वागत किया।
भगवान ने एक बातचीत के जरिए सबके मनोभावों को परखा। उनके निष्काम भावों से भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने गोपियों से कहा “आओ रास खेलें।”

Thursday, November 1, 2012

♥ जय श्री कृष्णा ♥

मेरा दिल तो देवाना है, मेरे राधा रमण का।
क्या रूप सुहाना है, मेरे राधा रमण का॥
संसार देवाना है, राधा रमण का॥

राधे राधे, राधे राधे, राधे राधे बोलो।
कृष्णा कृष्णा, कृष्णा कृष्णा, कृष्णा कृष्णा बोलो॥

मेरी रमण बिहारी की हर बात निराली है,
हर बोल तराना है, राधा रमण का॥

मदमस्त भरे नयना, अमृत जो बरसे,
ऐसा मुस्काना है, राधा रमण का॥

रिश्ता नहीं दो दिन का मेरा तो इन संग,
सदीओं से याराना है, मेरे राधा रमण का॥

यही आस बसूं ब्रिज में गुरुदेव कृपा से,
निसदिन गुण गाना है, मेरे राधा रमण का॥

!!! कृष्णं वन्दे जगत गुरुं !!!

सुनो श्यामसुन्दर बिनती हमारी ।
दरसन को आया दरस भिखारी ॥
तेज भँवर में फँस गयी नैया, तू ही बता अब कौन खिवैया ।
कृष्ण कन्हैया गिरवर धारी, हे नटनागर कुँजबिहारी ॥
हे नाथ आकर अब तो सँभालो, डूबती नैया मोरी पार लगालो ।
तेरी शरण में मैं आया नटवर, तुझे लाज रखनी होगी हमारी ॥
तुझ बिना कोई न मेरा जहाँ में, जाऊँ कहाँ अब तू ही बता दे ।
मेरी लाज जावे तो जावे भले ही, मगर नाथ होगी हाँसी तुम्हारी ॥