कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे
दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर,
बुधवार को है। आईए जानते हैं गोवर्धन पूजा का माहात्म्य-
हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत
आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा
विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा
है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को
ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा
है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित
होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र
की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई
है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने
का उल्लेख मिलता है। उल्लेखनीय है कि ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के
लिए किया जाता है।
बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की
प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गौओं का कल्याण होता है,
पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता
है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी
फलप्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
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