विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय के किसी भी ग्रंथ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता। जयंती सिर्फ श्रीमद्भगवत गीता की मनाई जाती है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ है।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनि: सृता।।
गीता का जन्म कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ। मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात यह तिथि इस बार 23 दिसंबर को थी। गीता किसी देश, काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए न होकर संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है। जिस प्रकार गाय के दूध को बछड़े के बाद सभी धर्म, संप्रदाय के लोग पान करते हैं। इसे दुहने वाले गोपाल श्रीकृष्ण हैं, अर्जुन रूपी बछड़े के पीने से निकलने वाला महान् अमृतसदृश दूध ही गीतामृत है।
गीता वेदों और उपनिषदों का सार है। लोक-परलोक में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य को परम श्रेय के साधन का उपदेश देने वाला, ऊंचे ज्ञान, विमल भक्ति, उज्जवल कर्म, यम, नियम, त्रिविध तप, अहिंसा, सत्य और दया के उपदेश देने वाला ग्रंथ है। इसके छोटे-छोटे 18 अध्यायों में इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गंभीर सात्विक उपदेश हैं, जो व्यक्ति को नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान में बैठा देने की शक्ति रखते हैं। गीता का लक्ष्य मनुष्य को कर्तव्य का बोध कराना है।
दुनिया के किसी भी धर्म-दर्शन में पूर्वजन्म या पुनर्जन्म की स्पष्ट व्याख्या नहीं मिलती। सिर्फ हिंदू सनातन धर्म-दर्शन में ही पूर्व और पुनर्जन्म पर चर्चा की गई है। व्यावहारिक रूप में देखें तो सिर्फ हमारी व्यवस्था में ही हम एक ही जन्म में तीन जन्मों की चर्चा करते हैं। इसके पीछे हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित सत्कर्म की शिक्षा ही है। श्रीकृष्ण ने गीता में आत्मा के अजर-अमर होने और निष्काम फल की शिक्षा दी है।
फलित ज्योतिष में जातक की कुंडली के लग्न से वर्तमान जन्म, नवम् भाव से पिछले जन्म व पंचम् भाव से अगले जन्म का फलित जाना जाता है। कुंडली में ग्रहों की स्थितियां और दशाएं पिछले जन्म में संचित कर्मों के आधार पर प्रारब्ध के रूप में मिलती हैं। प्रारब्ध के आधार पर ही वर्तमान जन्म में उत्थान या पतन होता है। ईश्वर ने 84 लाख योनियों में सिर्फ मनुष्य को ही यह विशेषाधिकार दिया है कि वह वर्तमान जन्म में सत्कर्म कर प्रारब्ध में मिले दुष्कर्मों के प्रभाव को कम करे व आने वाले जन्म को व्यवस्थित करे।
श्रीकृष्ण-अर्जुन के संवाद के 18 अध्याय अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान-कर्म-संन्यास योग, कर्म-संन्यास योग, आत्म-संयम योग, ज्ञान-विज्ञान योग, अक्षर ब्रह्म योग, विद्याराजगुह्य योग, विभूति योग, विश्व रूप-दर्शन योग, भक्ति योग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, देवासुर संपद्विभाग योग, श्रद्धात्रय विभाग योग और मोक्ष संन्यास योग में बांटे गए हैं।
इन अध्यायों के पढऩे या सुनने से ही पूर्वजन्मों के पापों से मुक्ति पाने के प्रसंग पद्मपुराण में वर्णित हैं। अत: मनुष्य को अंतिम समय में गीता सुनाई जाती है।
गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। इस श्लोक से ही इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। 'सुख-दु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।' भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! जो भक्ति प्रेमपूर्वक, उत्साह सहित परम रहस्य युक्त गीता को निष्काम भाव से प्रेमपूर्वक मेरे भक्तों को पढ़ाएगा या इसका प्रचार करेगा, वह निश्चित ही मुझे ही प्राप्त करेगा। न तो उससे बढ़कर मेरा अतिशय प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई है और न उससे बढ़कर मेरा अत्यंत प्यारा पृथ्वी पर दूसरा कोई होगा। हे अर्जुन! जो पुरुष इस धर्ममय गीताशास्त्र को पढ़ेगा उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा।
हम बड़े भाग्यवान हैं कि इस संसार के घोर अंधकार से भरे घने मार्ग में गीता के रूप में प्रकाश दिखाने वाला यह धर्मदीप प्राप्त हुआ है। अत: हमारा भी यह धर्म-कर्तव्य है कि हम इसके लाभ को मनुष्य मात्र तक पहुंचाने का सतत् प्रयास करें।
इसी वजह से गीता जयंती का महापर्व मनाया जाता है। गीता जयंती पर जनता-जनार्दन में गीता प्रचार के साथ ही श्रीगीता के अध्ययन, गीता की शिक्षा को जीवन में उतारने की स्थाई योजना बनानी चाहिए।
इसके लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए-
1. श्रीमद्भगवत गीता का पूजन।
2. गीता वक्ता भगवान् श्रीकृष्ण, उसके श्रोता नरस्वरूप भक्त प्रवर अर्जुन तथा उसे महाभारत में ग्रंथित करने वाले भगवान् वेदव्यास का पूजन।
3. गीता का यथा साध्य व्यक्तिगत और सामूहिक परायण।
4. गीता तत्व को समझाने तथा उसके प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं, प्रवचन और गोष्ठियों का आयोजन।
5. विद्यालयों और महाविद्यालयों में गीता पाठ, उस पर व्याख्यान का आयोजन।
6. गीता ज्ञान संबंधी परीक्षा का आयोजन और उसमें उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को पुरस्कार वितरण।
7. मंदिर, देवस्थान आदि में श्रीमद्गीता कथा का आयोजन।
8. गीताजी की शोभायात्रा निकालना आदि।
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