Friday, September 28, 2012
Tuesday, September 25, 2012
भादौ
मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी, जयझूलनी, वामन, डोल ग्यारस व
अन्य कई नामों से जाना जाता है। इस बार यह एकादशी 26 अगस्त, बुधवार को है।
परिवर्तिनी एकादशी के व्रत की विधि इस प्रकार है-
परिवर्तिनी एकादशी
व्रत का नियम पालन दशमी तिथि (25 सितंबर, मंगलवार) की रात्रि से ही शुरु
करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से
निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत
का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें
संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान वामन की
पूजा विधि-विधान से करें।(यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी
योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान वामन को पंचामृत से स्नान
कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और
परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके
बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित
करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात
को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन
वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो
मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं,
उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस
एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि (25 सितंबर, मंगलवार) की रात्रि से ही शुरु करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें।(यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
Sunday, September 23, 2012
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीराधाजन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसी दिन श्रीकृष्णप्रिया श्रीराधिकाजी का जन्म वृषभानुपुरी नामक नगर में हुआ था। धर्म शास्त्रों के अनुसार वृषभानुपुरी के राजा वृषभानु शास्त्रों के ज्ञाता तथा श्रीकृष्ण के आराधक थे। उनकी पत्नी श्रीकीर्तिदा के गर्भ से भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मध्याह्न काल में श्रीराधिकाजी का जन्म हुआ था। इस बार यह पर्व 23 सितंबर, रविवार को है।
व्रत विधान
श्रीराधाजन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर उनकी पूजा करें। श्रीराधाकृष्ण के मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, तोरण आदि अर्पित करें तथा श्रीराधाकृष्ण की प्रतिमा को सुगंधित पुष्प, धूप, गंध आदि से सुसज्जित करें। मंदिर के बीच में पांच रंगों से मंडप बनाकर उसके अंदर सोलह दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं। उस कमलयंत्र के बीच में श्रीराधाकृष्ण की युगल मूर्ति पश्चिम दिशा में मुख कर स्थापित करें तत्पश्चात अपनी शक्ति के अनुसार पूजा की सामग्री से उनकी पूजा अर्चना कर नैवेद्य चढ़ाएं। दिन में इस प्रकार पूजा करने के पश्चात रात में जागरण करें। जागरण के दौरान भक्तिपूर्वक श्रीकृष्ण व राधा के भजनों को सुनें।
शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य इस प्रकार श्रीराधाष्टमी का व्रत करता है उसके घर सदा लक्ष्मी निवास करती है। यह व्रत सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है। जो भक्त इस व्रत को करते हैं उसे विष्णुलोक में स्थान मिलता है।
भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कृष्ण प्रिया राधाजी का जन्म हुआ था,अत: यह दिन राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है।
बरसाना
मथुरा से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 कि.मी. दूर
उत्तर में स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा जी की जन्म स्थली
है। यह पर्वत के ढ़लाऊ हिस्से में बसा हुआ है। इस पर्वत को ब्रह्मा पर्वत
के नाम से जाना जाता है।
बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का सालों भर
तांता लगा रहता है। श्रद्धालु इस दिन बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर
वन की परिक्रमा करते हैं तथा लाडली जी राधारानी के मंदिर में दर्शन कर खुशी
मनाते हैं।
दिन के अलावा पूरी रात बरसाना में गहमागहमी रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं।
ब्रज भूमि पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपना यौवन बिताया।
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो ! मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!
तन्हाई की कब्रों में अब,दफ़्न हुए सारे अरमां !
दम निकले उसकी चरणों में,घर में जिसके राधा पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में ,पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!
पंकज पथिक प्रेम का मारा,अथाह नीर में कुम्हलाया !
नैवेद्य- पात्र में उसे सजा लो,जब भी कोई राधा पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!
अस्तित्व हीन पंकज पूजा बिन,पंकज बिन सूनी पूजा !
खो जाओ एक दूजे में तुम,जहाँ भी पावन राधा पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!
कीचड़ का मै रहने वाला,तूं है प्रमाणशासनेश्वरी !
एक राह के दोनों राही,तुम ही तो मेरी पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो !!
प्रेम राग हर दिशि में गूंजे,हो जाये जग मतवाला !
“राह” की बस अर्ज़ यही है,घर-घर प्रेम की पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में राधा पूजा हो_______
Friday, September 21, 2012
"ये जीवन समर्पित,चरण में तुम्हारे"|
"हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में"
..
अपने चरणों की रज , सावरे दीजिये ,,,
जिंदगी ये हमारी ,सवर जायेगी ...
लाख अवगुण भरे है ,गिनाये तो क्या ..
शर्म खुद पर बहुत है , बताये तो क्या ...
माफ़ गर ना करोगे ,दयालु हमे ..
जिंदगी ये हमारी , बिखर जायेगी ..
अपने चरणों ....
आप दाता दयावान दानी बड़े ...
कितने पापी चरण राज को पाकर तरे ...
महिमा चरणों की , भगवन है मालुम हमें ..
राह सत्संग की , हमको भी मिल जायेगी ..
अपने चरणों ...
अब निभालो निभालो , कन्हैया हमे ...
अपने चरणों से ,अब तो लगालो हमे ...
'नन्दू' वादा करे सावरे हम खड़े ..
उम्र दर पे तुम्हारे गुजर जायेगी ...
अपने चरणों .
लाख अवगुण भरे है ,गिनाये तो क्या ..
शर्म खुद पर बहुत है , बताये तो क्या ...
माफ़ गर ना करोगे ,दयालु हमे ..
जिंदगी ये हमारी , बिखर जायेगी ..
अपने चरणों ....
आप दाता दयावान दानी बड़े ...
कितने पापी चरण राज को पाकर तरे ...
महिमा चरणों की , भगवन है मालुम हमें ..
राह सत्संग की , हमको भी मिल जायेगी ..
अपने चरणों ...
अब निभालो निभालो , कन्हैया हमे ...
अपने चरणों से ,अब तो लगालो हमे ...
'नन्दू' वादा करे सावरे हम खड़े ..
उम्र दर पे तुम्हारे गुजर जायेगी ...
अपने चरणों .
Saturday, September 15, 2012
शास्त्रों के अनुसार तुलसी का पौधा पवित्र और पूजनीय माना गया है। जिन लोगों के घर में तुलसी का पौधा होता है उन्हें कई प्रकार के चमत्कारी फायदें प्राप्त होते हैं।
तुलसी को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है। इसका उपयोग कई प्रकार की औषधियों में किया जाता है।
तुलसी के पत्ते भोजन को शुद्ध और पवित्र करते हैं। इसीलिए सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के समय भोजन में तुलसी के पत्ते डालें जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु के बाद शव के मुख में तुलसी के पत्ते डाले जाते हैं। इस संबंध में ऐसा माना जाता है कि इससे मृत व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
तुलसी घर-आंगन में होने से वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इस पौधे से कई प्रकार के वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं।
जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां सभी देवी-देवताओं की कृपा बरसती है। घर-परिवार के सदस्यों की नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है।
लसी के पौधे में प्रतिदिन पानी देने और उसकी कांट-छांट करने, उसका ध्यान रखने से त्वचा संबंधी कई बीमारियां में लाभ होता है।
तुलसी के पत्तों को दांतों से चबाकर नहीं खाना चाहिए, बल्कि उसे निगल लेना चाहिए। तुलसी के पत्तों में एक विशेष प्रकार का अम्ल होता है जो कि हमारे दांतों के लिए अच्छा नहीं होता।
पानी में तुलसी के पत्ते डालकर पीने से पानी एक टॉनिक का काम करता है। इससे कई प्रकार के रोगों में राहत मिलती है।
बिना उपयोग तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोडऩा चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति को दोष लगता है। अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोडऩा तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।
Friday, September 14, 2012
बंसी की धुन पे नाची रे राधा हो के दीवानी,
काहना के रंग रच गयी राधा रानी।
किसना के तन मन बस गयी रे राधा हो के दीवानी॥
मोहन के नैनो में भरी मधुशाला।
दो घुट आँखो से पी गयी रे, राधा हो के दीवानी॥
गिरधर मुरारी का चंदा सा मुखड़ा।
देखा तो सुध बुध खो गयी रे, राधा हो के दीवानी॥
मोर मुकुट धर सांवर सांवरिया।
बांकी सी चित हर गयी रे, राधा हो के दीवानी॥
माधव के माथे पे लत घुंघराली।
घुंघराली लत में सिमट गयी रे राधा हो गयी दीवानी
गिरधर मुरारी का चंदा सा मुखड़ा।
देखा तो सुध बुध खो गयी रे, राधा हो के दीवानी॥
मोर मुकुट धर सांवर सांवरिया।
बांकी सी चित हर गयी रे, राधा हो के दीवानी॥
माधव के माथे पे लत घुंघराली।
घुंघराली लत में सिमट गयी रे राधा हो गयी दीवानी
Wednesday, September 12, 2012
पुराने समय से ही हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। घर के आंगन में तुलसी का पौधा हो तो घर का कलह और अशांति दूर होती है। इसके साथ ही तुलसी का पौधा होने पर घर-परिवार में महालक्ष्मी की विशेष कृपा भी रहती है। शास्त्रों में भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह का वर्णन मिलता है। इस कारण तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है।'
तुलसी का पौधा पूज्य और पवित्र तो है साथ ही इसमें कई आयुर्वेदिक गुण भी हैं। तुलसी के औषधीय गुणों से कफ आदि रोगों में बचाव हो जाता है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए तुलसी के पत्तों का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। तुलसी के पत्तों का सेवन करने का भी एक खास तरीका है। इस तरीके से ही तुलसी का सेवन करना चाहिए अन्यथा इसके बुरे प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए तुलसी के पत्तों का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। तुलसी के पत्तों का सेवन करने का भी एक खास तरीका है। इस तरीके से ही तुलसी का सेवन करना चाहिए अन्यथा इसके बुरे प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।
तुलसी के पत्तों में पारा धातु भी विद्यमान होती है जो कि पत्तों को चबाने से दांतों पर लगती है। यह हमारे दांतों के लिए फायदेमंद नहीं है। इससे दांत और मुंह से संबंधित रोग का खतरा बना रहता है। अत: तुलसी के पत्तों को बिना चबाए निगलना चाहिए।
Tuesday, September 11, 2012
त्रेतायुग में मयार्दापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने बतौर राजा जिस तरह शासन व्यवस्था स्थापित की, वह आज भी रामराज्य नाम से भगवान राम की तरह ही आदर्श व लोकप्रिय है। यह शासन व्यवस्था खुशहाल जीवन का भी आदर्श बन गई। यही वजह है कि व्यावहारिक तौर पर परिवार, समाज या राज्य में सुख और सुविधाओं से भरी व्यवस्था के लिए आज भी इसी रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है।
अक्सर जिस रामराज्य को केवल सुख-सुविधाओं का पर्याय माना जाता है। असल में, वह केवल सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के साफ-सुथरे आचरण, व्यवहार, सोच और मर्यादाओं के पालन की वजह से भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था थी।
शास्त्रों के मुताबिक रामराज्य से जुड़ी कुछ खास बातें, जो धर्म के पैमाने पर आदर्श और हर काल में अपनाने के लिए बेहतर हैं, किंतु कलियुग में हावी अधर्म से या यूं कहें कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में धर्म से बनी दूरी से हैरान करने वाली भी लगती हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है - दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।। इस चौपाई के मुताबिक राम राज्य में शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों ही दु:ख नहीं थे।
(1)मान्यता यह भी है कि पर्वतों ने अपनी सभी संपत्ति, मणि आदि और सागर ने रत्न, मोती रामराज्य के लिए दे दिए। इसलिए वहां के नागरिक शौक-मौज के जीवन की लालसा नहीं रखते थे बल्कि कर्तव्य परायण और संतोषी थे। (2)रामराज्य में कोई भी गरीब नहीं था। रामराज्य में कोई मुद्रा भी नहीं थी। माना जाता है कि सभी जरूरत की चीजों का बिना कीमत के लेन-देन होता था। अपनी जरूरत के मुताबिक कोई भी किसी भी वस्तु को ले सकता था। इसलिए बंटोरने की लालसा रामराज्य के लोगों में नहीं थी। (3) राम राज्य में रहने वाला हर नागरिक उत्तम चरित्र का था। (4)सभी नागरिक आत्म अनुशासित थे, वे शास्त्रो व वेदों के नियमों का पालन करते थे,जिससे वह सेहतमंद व निडर रहने के तनाव, शोक व हर परेशानियों से दूर रहते थे। (5)सभी नागरिक बुरी आदतों और विकारों से यानी वह काम, क्रोध व मद से दूर थे। (6) नागरिकों का एक-दूसरे के लिए ईर्ष्या या शत्रु भाव नहीं था। इसलिए सभी को एक-दूसरे से अपार प्रेम भी था। (7) सभी नागरिक विद्वान, शिक्षित, कार्य कुशल, गुणी और बुद्धिमान थे। (8)सभी धर्म और धार्मिक कर्मों में लीन और निस्वार्थ भाव से भरे थे। (9)रामराज्य में सभी नागरिकों के परोपकारी होने से सभी मन और आत्मा के स्तर पर शांत ही नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी शांति और सुकून से रहते थे।
अक्सर जिस रामराज्य को केवल सुख-सुविधाओं का पर्याय माना जाता है। असल में, वह केवल सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के साफ-सुथरे आचरण, व्यवहार, सोच और मर्यादाओं के पालन की वजह से भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था थी।
शास्त्रों के मुताबिक रामराज्य से जुड़ी कुछ खास बातें, जो धर्म के पैमाने पर आदर्श और हर काल में अपनाने के लिए बेहतर हैं, किंतु कलियुग में हावी अधर्म से या यूं कहें कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में धर्म से बनी दूरी से हैरान करने वाली भी लगती हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है - दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।। इस चौपाई के मुताबिक राम राज्य में शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों ही दु:ख नहीं थे।
(1)मान्यता यह भी है कि पर्वतों ने अपनी सभी संपत्ति, मणि आदि और सागर ने रत्न, मोती रामराज्य के लिए दे दिए। इसलिए वहां के नागरिक शौक-मौज के जीवन की लालसा नहीं रखते थे बल्कि कर्तव्य परायण और संतोषी थे। (2)रामराज्य में कोई भी गरीब नहीं था। रामराज्य में कोई मुद्रा भी नहीं थी। माना जाता है कि सभी जरूरत की चीजों का बिना कीमत के लेन-देन होता था। अपनी जरूरत के मुताबिक कोई भी किसी भी वस्तु को ले सकता था। इसलिए बंटोरने की लालसा रामराज्य के लोगों में नहीं थी। (3) राम राज्य में रहने वाला हर नागरिक उत्तम चरित्र का था। (4)सभी नागरिक आत्म अनुशासित थे, वे शास्त्रो व वेदों के नियमों का पालन करते थे,जिससे वह सेहतमंद व निडर रहने के तनाव, शोक व हर परेशानियों से दूर रहते थे। (5)सभी नागरिक बुरी आदतों और विकारों से यानी वह काम, क्रोध व मद से दूर थे। (6) नागरिकों का एक-दूसरे के लिए ईर्ष्या या शत्रु भाव नहीं था। इसलिए सभी को एक-दूसरे से अपार प्रेम भी था। (7) सभी नागरिक विद्वान, शिक्षित, कार्य कुशल, गुणी और बुद्धिमान थे। (8)सभी धर्म और धार्मिक कर्मों में लीन और निस्वार्थ भाव से भरे थे। (9)रामराज्य में सभी नागरिकों के परोपकारी होने से सभी मन और आत्मा के स्तर पर शांत ही नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी शांति और सुकून से रहते थे।
Sunday, September 9, 2012
जब-जब
धर्म की हानि होती है, भगवान अवतार लेकर अधर्म का अंत करते हैं। हिन्दू
धर्मग्रंथों में इस संदेश के साथ अलग-अलग युगों में जगत का दु:ख और भय दूर
करने वाले ईश्वर के अनेक अवतारों के पौराणिक प्रसंग हैं। दरअसल, इनमें
सच्चाई और अच्छे कामों को अपनाने के भी कई सबक हैं। साथ ही इनके जरिए युग
के बदलाव के साथ कर्म, विचार व व्यवहार में अधर्म और पाप के बढ़ने के भी
संकेत दिए गए हैं।
इसी कड़ी में सतयुग, त्रेता, द्वापर के बाद
कलियुग के लिए बताया गया है कि इसमें अधर्म का ज्यादा बोलबाला होगा, जिसके
नाश के लिए भगवान विष्णु का कल्कि रूप में दसवां अवतार होगा। रामचरितमानस
में भी कलियुग में फैलने वाले अधर्म का वर्णन मिलता है।
आज के दौर
में भी व्यावहारिक जीवन में आचरण, विचार और वचनों में दिखाई दे रहे सत्य,
संवेदना, दया या परोपकार जैसे भावों के अभाव से आहत मन अनेक अवसरों पर
कलियुग के अंत और कल्कि अवतार से जुड़
ी जिज्ञासा को और बढ़ाता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण में अलग-अलग युगों की गणना व अवधि बताई गई है।
भविष्य पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी
दिन-रात के बराबर है। इसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है।
दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास
कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक
अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक
दिव्य वर्ष कहलाता है
सतयुग- 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000
(सौर वर्ष)। त्रेतायुग- 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)।
द्वापरयुग- 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)। कलियुग- 1200 (दिव्य
वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)। इस तरह सभी दिव्य वर्ष मिलाकर 12000 दिव्य वर्ष
देवताओं का एक युग या महायुग कहलाता है, जो चार युगों के सौर वर्षों के
योग 43,200,000 वर्षों के बराबर होता है। खासतौर पर, कलियुग की बात करें तो
पौराणिक व ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करने पर पता चलता है कि 4,32,000 साल
लंबे कलियुग को शुरू हुए तकरीबन 6000 वर्ष ही गुजरे हैं। इससे अनुमान लगाया
जा सकता है कि अभी कलियुग और कितना बाकी है व कलियुग में बढ़े पापों का
संहार करने भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होने में कितना वक्त लगेगा। इनके
अलावा निकट भविष्य में प्रलय होने की बातों के दावे भी इस गणना से परखें जा
सकते हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण में अलग-अलग युगों की गणना व अवधि बताई गई है।
भविष्य पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी दिन-रात के बराबर है। इसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है। दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक दिव्य वर्ष कहलाता है
सतयुग- 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)। त्रेतायुग- 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)। द्वापरयुग- 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)। कलियुग- 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)। इस तरह सभी दिव्य वर्ष मिलाकर 12000 दिव्य वर्ष देवताओं का एक युग या महायुग कहलाता है, जो चार युगों के सौर वर्षों के योग 43,200,000 वर्षों के बराबर होता है। खासतौर पर, कलियुग की बात करें तो पौराणिक व ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करने पर पता चलता है कि 4,32,000 साल लंबे कलियुग को शुरू हुए तकरीबन 6000 वर्ष ही गुजरे हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी कलियुग और कितना बाकी है व कलियुग में बढ़े पापों का संहार करने भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होने में कितना वक्त लगेगा। इनके अलावा निकट भविष्य में प्रलय होने की बातों के दावे भी इस गणना से परखें जा सकते हैं।
Wednesday, September 5, 2012
आज
की व्यस्त जिंदगी में इंसान के पास काम, जिम्मेदारियों और जरूरतों को पूरा
करने की उलझन में ईश्वर स्मरण के लिए वक्त निकालना मुश्किल है। हालांकि
धर्मग्रंथों में लिखी बातें कर्म को पूजा का दर्जा देती हैं। किंतु कर्म के
साथ-साथ ईश्वर भक्ति और कृपा को भी सफल जीवन का सूत्र भी माना गया है।
यही
कारण है कि हम यहां बता रहे हैं धर्मग्रंथों का एक ऐसा सरल और असरदार
मंत्र जो देव पूजा के अलावा कार्य और जिम्मेदारियों के दौरान किसी भी वक्त
मन ही मन स्मरण करने पर सारे काम बिना बाधा और परेशानी के पूरे करने वाला
माना गया है।
यह मंत्र भगवान विष्णु के साथ उनके अवतार श्रीकृष्ण
का स्मरण है। वर्तमान में चल रहा अधिकमास भी इन दोनों देवताओं की उपासना का
विशेष काल है। इसलिए इस मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ फल देने वाला होगा।
जानिए हैं यह मंत्र -
- सुबह स्नान के बाद यथासंभव पीले वस्त्र
पहनकर देवालय में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा गंध, अक्षत, पीले फूल व
धूप, दीप से करें।
- पूजा के बाद इस मंत्र का यथाशक्ति जप करें। यही मंत्र दिन में किसी भी वक्त काम के दौरान ध्यान भी कर सकते हैं -
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
कर्म
की अहमियत बताने वाले भगवान श्रीकृष्ण और शांतिस्वरूप भगवान विष्णु के
ध्यान से आपका हर काम न केवल बिना रुकावट के पूरा होगा, बल्कि शांति और
सुकून भी लाएगा।
Tuesday, September 4, 2012
hare krishna hare ram
भगवान राम और श्याम यानी श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ऐसे अवतार हैं, जिनका जीवन चरित्र पावनता, प्रेम, स्नेह, कर्म, मर्यादा, शक्ति, बुद्धि, ज्ञान, विवेक, समर्पण, त्याग जैसे अनगिनत खूबियों व शक्तियों से भरा है। ये इंसानी जीवन को सुख, शांति व सफल जीवन की राह बताते हैं। इसलिए भगवान राम और कृष्ण का नाम स्मरण ही विचार व व्यवहार में पावनता लाकर गुण, शक्ति व धन संपन्न बनाने वाला माना गया है।
हर इंसान धन के साथ मन की शांति भी चाहता है। सुख-सुकून पाने के लिए ही खासतौर पर भगवान श्रीराम और कृष्ण का सामूहिक स्मरण करने के लिए धर्म परंपराओं में एक बेहद आसान मंत्र प्रभावी माना गया है। इसे 16 नाम मंत्र या राम नाम या कृष्ण नाम महामंत्र के नाम से भी जाना जाता है।
धार्मिक महत्व के नजरिए से राम-कृष्ण के ये 16 नाम कलियुग में पापनाशक है। इस महामंत्र को बोलने से बेहतर उपाय वेदों में भी नहीं मिलता। इसक स्मरण की कोई विधि नहीं है। बस, बोलने मात्र से सारे दोषों से छुटकारा मिलता है। व्यक्ति पितृ, देव, मनुष्य दोष या हर पाप का अंत होकर सुखी-संपन्न बनता है।
यही वजह है कि अधिकमास के बाकी दिनों में यह राम नाम मंत्र दिन हो या रात कभी भी बोल हर इंसान सुखी और धनी बनने की हर कामना पूरी कर सकता है।
इस मंत्र स्मरण के पहले भगवान विष्णु, श्रीराम व श्रीकृष्ण की सफेद चंदन, सुगंधित फूल व माला चढ़ाकर मिठाई का भोग लगाएं व धूप व दीप जलाकर सुख की कामना से अगली तस्वीरे का साथ लिखे मंत्र का स्मरण भक्ति भाव में डूबकर करें। मंत्र स्मरण के बाद राम-कृष्ण या विष्णु की आरती करें और क्षमाप्रार्थना करें।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
Monday, September 3, 2012
gau mata ki jai ho
शास्त्रों में गाय को माता कहा गया है। गाय एक बहुपयोगी पशु है जो कि हमारे लिए कई प्रकार से फायदेमंद भी है। पुराने समय में सभी के घरों में गाय अनिवार्य रूप से रहती थी। आज भी गांव में रहने वाले या ग्रामीण परिवेश से संबंधित लोगों के यहां गाय रहती है।
गाय बहुत ही पवित्र और पूजनीय मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि गाय की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। इसी वजह से आज भी गाय को पूजा जाता है
गाय जहां रहती है वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय नहीं हो पाती और वातावरण सकारात्मक बना रहता है।
गाय से निकलने वाली गंध से वातावरण में मौजूद कई हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। - गाय का दूध भी कई बीमारियों में औषधि का ही काम करता है।
- गौमूत्र से कैंसर का इलाज हो जाता है। गाय के प्रभाव में रहने वाले व्यक्ति को कभी ऐसी कोई भी बीमारी नहीं होती।
गाय का गोबर भी कई कामों में उपयोग किया जाता है। इनके अतिरिक्त कई फायदे हैं गाय को घर पर रखने के। इन्हीं सब की वजह से गाय को अपने घरों पर रखा जाता था।
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