भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां हर दिन कोई न कोई
त्योहार, पर्व या व्रत होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि स्थान बदलने के
साथ-साथ परंपराओं में भी थोड़ा परिवर्तन आ जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
(इस बार 11 अप्रैल, गुरुवार) से हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ माना जाता है।
यह पर्व भी भारत के अनेक स्थानों में मनाया जाता है। व्रज में भी यह पर्व
पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। वृंदावन में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से
दशमी तक श्रीराम मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव होता है। इसमें प्रतिदिन
सुबह धूमधाम से सोने-चांदी के वाहनों पर विराजमान भगवान रंगमन्नार की सवारी
मंदिर से बगीचा जाती व आती है।
नवसंवत को (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) प्राय: सभी मंदिरों में पंचांग सुना जाता
है। प्रतिपदा से नवमी तक देवी मंदिरों में विशेष पूजन-हवन, यज्ञादि
धार्मिक कार्य किए जाते हैं। वृंदावन के कात्यायनीपीठ में बृहदोत्सव होत है
क्योंकि वृंदावन शक्तिपीठ और कात्यायनी व्रज गोपियों द्वारा पूजित हैं, जो
कृष्ण प्राप्ति में सहायिका हैं।
चैत्र कृष्ण नवमी को दक्षिणी शैली के विशाल सुसज्जित रथ में
श्रीरंगनाथ-गोदाम्बा की यात्रा निकाली जाती है। इसे रथ का मेला भी कहते
हैं। दशमी की रात को आतिशबाजी की जाती है। एकादशी को मंदिरों में गुलाबडोल
सजाए जाते हैं। गुलाब पुष्पों से निर्मित डोलों (झूलों) में राधा-कृष्ण रात
के समय झूला झूलते हैं।
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