Tuesday, March 19, 2013

अगर हम पशुओं के स्वाभाविक खान-पान, व्यवहार या दिनचर्या पर गौर करें तो उनमें बदलाव नजर नहीं आते। वहीं व्यावहारिक तौर पर अक्सर देखा जाता है बुद्धिमान होने के बावजूद भी इंसान पशु की तरह व्यवहार करते हैं। जाहिर है कि इंसान व पशु के तौर-तरीकों में इस फर्क की वजह बुद्धि ही होती है।
इस बात से यह भी साफ है कि बुद्धि के उपयोग से ही अच्छे या बुरे कर्म इंसान के सुख-दु:ख नियत करते है। बुद्धि ईश्वर की वह देन है, जो हर इंसान को प्राप्त होती है। किंतु धर्मशास्त्रों के मुताबिक ज्ञान के साथ अनुभव और व्यवहार के जरिए ही बुद्धि निखरती है। यानी विद्या, पुण्य कर्म और विचार बुद्धि को धार देते हैं। वहीं ज्ञान के अभाव, बुरे या पाप कर्मो से बुद्धि का नाश होता है।
हिन्दू धर्मशास्त्र महाभारत में सुखी जीवन के लिए ही बुद्धि के सही उपयोग से सुख की मंजिल तय करने के लिये ऐसा अंक गणित भी बताया गया है, जिसे सीखकर हर इंसान सांसारिक जीवन के संघर्ष में सफलता पा सकता है।


लिखा गया है कि -

एकया द्वे विनिनिश्चित्य त्रींश्चतुर्भिवशे कुरु।

पञ्च जित्वा विदित्वा षट् सप्त हित्वा सुखो भव।।

इस श्लोक में जीवन में कर्म, व्यवहार और नीति में बुद्धि के उपयोग द्वारा सुख बंटोरने के लिये 1 से लेकर 7 अलग-अलग सूत्रों को उजागर किया गया है। सरल शब्दों में जानिए यह अंक गणित -

1 यानी बुद्धि से 2 यानी कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय कर 4 यानी साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा 3 यानी दुश्मन, दोस्त और तटस्थ को काबू में करें। इनके साथ-साथ 5 यानी पांच इन्द्रियों के संयम द्वारा 6 यानी छ: गुण यानी

सन्धि- मेलजोल या मित्रता,

विग्रह - संधि विच्छेद या मित्रता के रिश्ते न रखना,

यान - सही मौके पर वार,

आसन - विपरीत हालात में शांत रहना,

द्वैधीभाव - ऊपर से मित्रता अंदर से शत्रुता का भाव और

समाश्रय - सक्षम व सबल की पनाह लेना, समझें और जानें। साथ ही 7 यानी स्त्री, जूआ, मृगया यानी शिकार, नशा, कटु वचन, कठोर दण्ड और गलत तरीके से धन कमाने के बुरे गुण और कर्म को छोडऩा, कठिन और विरोधी स्थितियों में किसी भी इंसान के लिये सुख का कारण बन जाते हैं।

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