वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती का
पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने
नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस बार यह
पर्व कल यानी 23 मई, गुरुवार को है। इस दिन भगवान नृसिंह के निमित्त व्रत
रखा जाता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
नृसिंह जयंती के दिन सुबह जल्दी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर व्रत के
लिए संकल्प करें। इसके बाद दोपहर में नदी, तालाब या घर पर ही वैदिक
मंत्रों के साथ मिट्टी, गोबर, आंवले का फल और तिल लेकर उनसे सब पापों की
शांति के लिए विधिपूर्वक स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर संध्या
तर्पण करें। अब पूजा स्थल को गाय के गोबर से लीपकर उसमें अष्टदल कमल
बनाएं।
कमल के ऊपर पंचरत्न सहित तांबे का कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर
चावलों से भरा हुआ बर्तन रखें और बर्तन में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की
लक्ष्मीसहित भगवान नृसिंह की प्रतिमा रखें। इसके बाद दोनों मुर्तियों को
पंचामृत से स्नान करवाएं। योग्य विद्वान ब्राह्मण (आचार्य) को बुलाकर उनसे
भगवान की पूजा करवाएं। फिर उस ब्राह्मण के हाथों फूल व षोडशोपचार
सामग्रियों से विधिपूर्वक भगवान नृसिंह का पूजन करवाएं।
भगवान नृसिंह को चंदन, कपूर, रोली व तुलसीदल भेंट करें तथा धूप-दीप
दिखाएं। इसके बाद घंटी बजाकर आरती उतारें और नीचे लिखे मंत्र के साथ भोग
लगाएं-
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।
(पद्मपुराण, उत्तरखंड 170/62)
अब भगवान नृसिंह से सुख की कामना करें। रात में जागरण करें तथा भगवान नृसिंह की कथा सुनें।
दूसरे दिन यानी पूर्णिमा के दिन स्नान करने के बाद फिर से भगवान
नृसिंह की पूजा करें। ब्राह्मणों को दान दें उन्हें भोजन करवाएं व दक्षिणा
भी दें। इसके बाद पुन: भगवान नृसिंह से मोक्ष की प्रार्थना करें। अंत में
आचार्य (पूजन करने वाला ब्राह्मण) को दक्षिणा से संतुष्ट करके विदा करें
तत्पश्चात स्वयं भोजन करें।
धर्म ग्रंथों के अनुसार जो इस प्रकार नृसिंह चतुर्दशी के पर्व पर
भगवान नृसिंह की पूजा करता है उसके मन की हर कामना पूरी हो जाती है। उसे
मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
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