"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" यह बात साफ करती है कि मनोदशा भी अच्छे या बुरे नतीजे तय करती है। क्योंकि मन का स्वभाव चंचल माना गया है। शास्त्रों में भी यह बताया गया है कि जहां मन की एक स्थिति मोह में बांध दुःख की वजह सकती है, तो वही यही मन सुख व मोक्ष की राह पर भी ले जाता है। यानी मन अगर साफ और स्थिर हो तो इंसान सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है, वहीं बुरे भाव से भरी, चंचल या अस्थिर मनोदशा व्यक्ति का पतन कर देती है।
व्यावहारिक जीवन में मन की अच्छी या बुरी स्थिति सुख-दु:ख का कारण बनती है। चूंकि हर इंसान सदा सुखी रहना चाहता है, किंतु भटकता मन इस कामना में बाधा बनता है। इसलिए सुख में बाधा बने मन को अगर चंचलता से बचाना है तो हिन्दू धर्मग्रंथ गीता में बताए सूत्र कारगर हो सकते है।
लिखा है कि -
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
सार है कि चंचल मन को रोकना कठिन है। किंतु अभ्यास और वैराग्य भाव से इस पर काबू पाया जा सकता है।
व्यावहारिक रूप से संकेत है कि अगर मन को स्थिर और शुद्ध बनाना है तो एक लक्ष्य साधें। अच्छे विचारों के साथ उस मकसद को पाने के लिए ध्यान लगाया जाए। इस दौरान विपरीत या नकारात्मक विचारों से मन कितना भी भटके सही सोच के साथ लक्ष्य पर ही ध्यान साधें रखें। बाकी सभी बुरी भावनाओं पर ध्यान ही न दिया जाए यानी वैराग्य भाव बना लें।
इस तरह एक स्थिति में मन की स्थिर हो जाएगा। मन को पवित्र बनाने के लिये बहुत जरूरी है कि लगातार अच्छे विचारों का मनन और चिंतन किया जाए। जिससे मन से बुरे विचार और भाव अपने आप ही निकल जाएंगे।
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