Sunday, March 3, 2013


अक्सर यह देखा जाता है कि इंसान जब दु:खी हो तो उसके बोल, स्वभाव, व्यवहार में कोमलता आ जाती है। किंतु दु:ख से बाहर निकलने या फिर सुखों को पाते ही किसी न किसी रूप में अहं मन-मस्तिष्क पर हावी होने लगता है। इसके चलते बोल व बर्ताव में पैदा दोष के कारण दूसरों की उपेक्षा व अपमान भी उसे तब तक गलत नहीं लगता, जब तक कि बुरे नतीजे भुगतना न पड़े।
हिन्दू शास्त्रों में आया एक प्रसंग जीवन में ऐसे ही दु:खों से बचने के लिए खासतौर पर तीन चरित्रों का हमेशा सम्मान करने की सीख देता है। जानिए, उस प्रसंग के साथ वे तीन चरित्र, जिनका धार्मिक ही नहीं व्यावहारिक नजरिए से भी उपेक्षा जीवन के लिये घातक हो सकती है -
पौराणिक प्रसंग है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारकापुरी में आए रुद्र अवतार दुर्वासा मुनि के रूप व दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगा। अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को ऐसे कृत्य के लिए कुष्ठ रोगी होने का शाप दिया। फिर भी साम्ब नहीं माना और वही कृत्य दोहराया। तब दुर्वास मुनि के एक ओर शाप से साम्ब से लोहे का एक मूसल पैदा हुआ, जो आखिरकार यदुवंश की बर्बादी की वजह बना। दरअसल, इस प्रसंग में व्यावहारिक तौर पर नीचे बताए तीन चरित्रों के सामने अहं से बचने व उनके लिए सम्मान, निष्ठा, श्रद्धा व समर्पण रखने के साथ वाणी में भी विनम्रता व मिठास को अपनाने का सबक है। साम्ब द्वारा अहंकार व दुर्भाव के वशीभूत होने से ही एक साथ 3 गलतियां करना यदुवंश को ले डूबीं। जानिए शांत व सफल जीवन के लिए किन 3 चरित्रों के साथ गलत भावनाओं को मन में स्थान न दें -
गुरु - गुरु को भगवान का ही साक्षात् रूप माना गया है। क्योंकि वह ईश्वर के समान ही ज्ञान के जरिए चरित्र को बेहतर बनाकर इंसान को नया जन्म देता है। व्यावहारिक नजरिए से भी जिस इंसान से शिक्षा, गुण, कला, कौशल प्राप्त हो,  वह गुरु पद का भागी है। धर्म और व्यवहारिक दृष्टि से ऐसे गुरु का अपमान चरित्र और व्यक्तित्व में दोष पैदा कर जीवन में तमाम सुखों से वंचित कर देता है। देवता - शास्त्रों के नजरिए से ईश्वर का स्मरण व विश्वास जीवन में संकल्प और कर्म शक्ति को हर स्थिति में मजबूत बनाए रखता है। किंतु ईश या धर्म निंदा पाप का भागी ही नहीं बनाती, बल्कि धर्म आस्था व श्रद्धा को चोट पहुंचाने से अपयश,  कलह लाकर जीवन को भी खतरे में डाल सकती है।
ब्राह्मण - ब्राह्मण को ब्रह्म का अंश माना गया है। धार्मिक परंपराओं में ब्राह्मणों से भगवान की पूजा-अर्चना, ब्राह्मण-पूजा व ब्रह्मदान जीवन में आ रहे सारे कष्ट, बाधाओं से मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय माना गया है। व्यावहारिक तौर पर ब्रह्मपूजा या दान के मूल में पावनता और परोपकार के भावों से जुडऩा है। इससे दूरी पाप कर्म से जोड़ती है। इसलिए ब्राह्मण का अपमान धर्म और ईश्वर के प्रति दोष से जीवन के लिये घातक भी माना गया है। वहीं इस बात से जुड़ा एक दर्शन यह भी है कि सृजन करने की क्षमता रखने से हर प्राणी भी ब्रह्म या ईश्वर का ही अंश या रूप है। इसलिए बोल, सोच व व्यवहार में मानवीय भावनाओं को सबसे ऊपर रख जीवन जीना ही शांति और सफलता पाने का सबसे बेहतर तरीका है।

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