Friday, January 25, 2013

स्वस्थ तन, साफ मन और मीठी बोली किसे सुख-सुकून नहीं देती? दरअसल, तीनों ही बातों में एक समानता है और वह है - पवित्रता। जी हां, किसी भी तरह से साफ-सफाई मन को ऊर्जा व ताजगी देती है। बस, यही ऊर्जा कई तरह की खूबियों व शक्तियों में तब्दील हो सुख-संपन्न बनाने में मदद करती है। इसे ही धार्मिक आस्था से देवी लक्ष्मी की कृपा भी कहा जाता है।

जाहिर है कि जहां तन, मन, विचार व वातावरण में पवित्रता हो वहां लक्ष्मी बसती है। सांसारिक जीवन में ऐसी ही पवित्रता का प्रतीक व लक्ष्मी का साक्षात् स्वरूप माना जाता है - तुलसी का पौधा।

शास्त्रों में तुलसी का पौधा घर में लगाने का शुभ फल लक्ष्मी की असीम कृपा देने वाला यानी सुख-समृद्ध करने वाला माना गया है।

पौराणिक मान्यताओं में इसे तुलसी व वृंदा के नाम से विष्णु प्रिया या लक्ष्मी का ही रूप बताया गया है। इसीलिए शालिग्राम-तुलसी विवाह की परंपरा व पूजा भी सुख-समृद्ध करने वाली मानी गई है। माना जाता है कि हरि व हर यानी शिव-विष्णु की कृपा से ही तुलसी को देववृक्ष का स्वरूप मिला। व्यावहारिक तौर से भी घर में तुलसी पूजा से मन में शुद्ध भाव पैदा होते हैं तो खाने से तन भी निरोगी रहता है।
अगर आप भी आर्थिक परेशानियों से दूर खुशहाल जीवन चाहते हैं तो शास्त्रों में बताए कुछ विशेष मंत्रों घर में तुलसी का पौधा लगाकर देवी लक्ष्मी को बुलावा दें और स्थायी वास की कामना करें।
जानिए ये मंत्र और तुलसी पौधा लगाने का सरल तरीका -
- तुलसी पौधा लगाने के लिए वैसे तो शास्त्रों में आषाढ़ व ज्येष्ठ माह का महत्व बताया गया है। किंतु अन्य दिनों में किसी भी पवित्र तिथि पर, खासतौर पर एकादशी तिथि या पूर्णिमा तिथि को स्नान के बाद किसी भी देव मंदिर या जिस घर मे नित्य तुलसी पूजा होती हो, से तुलसी का छोटा-सा पौधा लेकर आएं।
- घर के आंगन या किसी पवित्र जगह को गंगाजल से पवित्र कर तीर्थ की पवित्र मिट्टी से भरे गमले में उस पौधे को रोपें।


तुलसी के पौधे को जल, गंध, इत्र, फूल, दूर्वा, फल अर्पित करते हुए पीली मौली या वस्त्र अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं।
- बाद किसी सुहागिन स्त्री से ही तुलसी के चारों ओर दूध व जल की धारा अर्पित करवाकर नीचे लिखे मंत्रों का ध्यान करें -
विष्णु का ध्यान कर तुलसी मंत्र बोलें -
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नम: सम्पत्प्रदायिके।।
लक्ष्मी का ध्यान कर यह मंत्र बोलें -
श्रीश्चते लक्ष्मीश्चपत्न्यावहोरात्रे पारश्वे नक्षत्राणिरूप मश्विनौव्यात्तम्।
इष्णनिषाणामुम्म इषाण सर्वलोकम्म इषाण।
- मंत्र स्मरण के बाद तुलसी की धूप, दीप व कर्पूर आरती करें व प्रसाद ग्रहण करें।

Tuesday, January 22, 2013

जहां जगतपालक भगवान विष्णु का सत्व गुणी यानी सत्य, धर्म, शांति, सुख और पावनता के भावों से सराबोर चरित्र जीने की प्रेरणा व जज्बा देता है तो वहीं उनका विराट स्वरूप कर्म व धर्म की राह बताने वाला है। इसी तरह उनके सारे चमत्कारी अवतार नैतिक मूल्यों और सही आचरण का सबक देकर ज़िंदगी को सही तरीके से जीना सिखाते हैं।

खासतौर पर ज़िंदगी में दायित्वों को निभाते वक्त भी जगतपालक की तरह शांति और संयम की बड़ी अहमियत है ताकि बेहतर आजीविका के साथ बिन बाधा सफलता और तरक्की पाकर खुशहाल जीवन गुजार सकें।

शास्त्रों के मुताबिक एकादशी तिथि भगवान विष्णु की उपासना शुभ तिथि है। इस दिन भगवान विष्णु मंत्रों के ध्यान से लक्ष्मी की प्रसन्नता भी मिलती है, जो दौलत, यश, प्रतिष्ठा , तरक्की की ऐसी ही कामना जल्द पूरी करती है।

इस दिन सुबह व शाम के वक्त भगवान विष्णु को केसरिया चंदन मिले जल से स्नान कराएं। स्नान के बाद चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल चढ़ाकर व मिठाइयों का भोग लगाकर चंदन धूप व गोघृत दीप जलाएं।

पद्मनाभोरविन्दाक्ष: पद्मगर्भ: शरीरभूत्।
महद्र्धिर्ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वज:।।
अतुल: शरभो भीम: समयज्ञो हविर्हरि:।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जय:।।

Monday, January 14, 2013

मैं साहिल पे लिखी हुई इबादत नहीं
जो लहरों से मिट जाती है
मैं बारिश कि बरसती बूंद नहीं
जो बरस कर थम जाती है
मैं ख्वाब नहीं,
जिसे देखा और भुला दिया
मैं चांद भी नहीं,
जो रात के बाद ढल गया
मैं हवा का वो झोंका भी नहीं,
के आया और गुजर गया
मैं तो वो अहसास हूं ,
जो तुझमे लहू बनकर गरदिश करे
मैं वो रंग हू
जो तेरे दिल पर चढे
ओर कभी ना उतरे
मे वो गीत हूं ,
जो तेरे लबो से जुदा ना हो
ख्वाब, इबादत, हवा कि तरह ...
चांद, बुंद, शमा कि तरह
मेरे मिटने का सवाल नहीं..
क्यूंकि
मैं तो मोहब्बत हूँ .....
!!जय श्रीराधे...जय श्रीराधे...जय श्रीराधे...!!
!!जय श्रीराधे...जय श्रीराधे...जय श्रीराधे.!!

मधुवन की लताओं में घनश्याम तुम्हें देखूं !

घनघोर घटाओं में घनश्याम तुम्हें देखूं !!

यमुना का किनारा हो , निर्मल जल धरा हो !

वहां झुला झुलाते हुए घनश्याम तुम्हें देखूं !!

जागृत की अवस्था में, तुम सामने हो मेरे !

सो जाऊ तो सपनों में घनश्याम तुम्हें देखूं !!

वृन्दावनकी गल्लियाँ हो, संग चंचल सखियाँ हो!

वहां रास रचाते हुए घनश्याम तुम्हें देखूं !!

टेढे हो खड़े मोहन, टेढा है मुकुट तेरा !

अधरों पे धरे मुर

ली घनश्याम तुम्हें देखूं !!

मधुवन की लताओं में घनश्याम तुम्हें देखूं !

घनघोर घटाओं में घनश्याम तुम्हें देखूं !!

तू सामने रहे मेरे, मै तेरा दीदार करू
सब कुछ भुला के,सिर्फ तुझे ही प्यार करू
तेरी जुल्फों के साये मे जिन्दगी मिली
तेरी आँखों मे डूब के,ख़ुशी मिली
तुझ से भी बढ़ कर तुझ पे ऐतबार करू
तुम न थे दिल मे,कोई अरमान न था
इस नाकाम जिन्दगी मे,कही मुकाम न था
सफ़र के हर मोड़ पे,तेरा इन्तेजार करू
वादा करो मुझ से,कभी दूर न जाओगे
मेरे दिल को ख़ुशी देकर फिर न रुलाओगे
मेरे सब कुछ तुम हो कान्हा,तुझ पे जान निसार करू

कोई श्याम सुन्दर से कहदो यह जाके,

भुला क्यों दिया हमें, अपना बना के |

अभी मैंने तुमको निहारा नहीं है,

तुम्हारे सिवा कोई हमारा नहीं है |

चले क्यों गए श्याम दीवाना बना के,

भुला क्यों दिया हमें, अपना बना के


Wednesday, January 9, 2013

हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवद्गीता में ईश्वर के विराट स्वरूप का वर्णन है। द्वापर युग में महाप्रतापी अर्जुन को इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कराकर कर्मयोगी भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग के महामंत्र द्वारा अर्जुन के साथ संसार के लिए भी सफल जीवन का रहस्य उजागर किया।

भगवान का विराट स्वरूप ज्ञान शक्ति और ईश्वर की प्रकृति के कण-कण में बसे ईश्वर की महिमा ही बताता है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन, नर-नारायण के अवतार थे और महायोगी, साधक या भक्त ही इस दिव्य स्वरूप के दर्शन पा सकता है। किंतु गीता में लिखी एक बात यह भी संकेत करती है सांसारिक जीवन में साधारण इंसान के लिए ऐसा तप करना कठिन हो तो उसे हर रोज पवित्र गीता से जुड़ा क्या उपाय करना चाहिए, जिसका शुभ प्रभाव ज़िंदगी के लिए फायदेमंद हो। दूसरे शब्दों में गीता में ही लिखी एक विशेष बात कलियुग में भगवान जगदीश की विराटता देखने का तरीका भी उजागर करती है।

श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय में ही देवी लक्ष्मी द्वारा भगवान विष्णु के सामने यह संदेह किया जाता है कि आपका स्वरूप मन-वाणी की पहुंच से दूर है तो गीता कैसे आपके दर्शन कराती है? तब जगत पालक श्री हरि विष्णु गीता में अपने स्वरूप को उजागर करते हैं, जिसके मुताबिक -

पहले पांच अध्याय मेरे पांच मुख, उसके बाद दस अध्याय दस भुजाएं, अगला एक अध्याय पेट और अंतिम दो अध्याय श्रीहरि के चरणकमल हैं।

इस तरह गीता के अट्ठारह अध्याय भगवान की ही ज्ञानस्वरूप मूर्ति है, जो पढ़, समझ और अपनाने से पापों का नाश कर देती है। इस संबंध में लिखा भी गया है कि कोई इंसान अगर हर रोज गीता के अध्याय या श्लोक  के एक, आधे या चौथे हिस्से का भी पाठ करता है, तो उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।


Tuesday, January 8, 2013

हिन्दू धर्म पंचांग की एकादशी तिथि से जुड़ी भगवान विष्णु उपासना की धर्म परंपराओं के पीछे मूल भावना, सोच और आचरण की पवित्रता को अपनाने की है ताकि इंसान मन और विचार से मजबूत और एकाग्र रहकर हर मुश्किलों से पार पा सके।

इसी सिलसिले में संयम और शांति पाने का बेहतर उपाय संतुलित आहार से भी जुड़ा है। खासतौर पर व्रत-उपवास या इनके बिना भी खास चीजों को खाना जहां शरीर को सेहतमंद बनाने वाला बताया गया है, वहीं दूसरी ओर कुछ खास चीजों को खाना सेहत के लिए परेशानी की वजह बनने वाला भी माना गया है।


 शहद, चावल का माँड, उड़द, राई, मसूर-दाल, बकरी, भैंस और भेड़ का दूध, मांस, मादक पदार्थ और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

- इसी तरह मूली, प्याज, कुम्हड़ा, लहसुन, गाजर, बैंगन भोजन में नहीं लेना चाहिए। तिल का तेल, बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

- ताँबे के बर्तन में दूध रखना, चमड़े के बर्तन में पानी और खुद के लिए बनाया भोजन अशुद्ध माना जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।

Monday, January 7, 2013

पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 8 जनवरी, मंगलवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
सफला एकादशी (8 जनवरी, मंगलवार) के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहन कर माथे पर चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें। भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। शाम को दीप दान के बाद फलाहार कर सकते हैं।
सफला एकादशी के दिन दीप-दान करने की परंपरा भी है। इस रात्रि को वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागते हैं। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है। द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।
इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Tuesday, January 1, 2013







धर्मग्रंथ कर्म को पूजा का दर्जा देते हैं। किंतु कर्म के साथ-साथ ईश्वर भक्ति और कृपा को भी सफल जीवन का सूत्र भी माना गया है। आज की व्यस्त जिंदगी में इंसान के पास काम व दायित्वों को पूरा करने की उलझन में ईश्वर स्मरण के लिए वक्त निकालना मुश्किल है।
यही वजह है कि साल 2013 के पहले दिन यहां बता रहे हैं धर्मग्रंथों का एक ऐसा सरल और असरदार मंत्र, जिसके लिए आस्था है कि देव पूजा के अलावा कार्य और जिम्मेदारियों के दौरान किसी भी वक्त मन ही मन स्मरण करें, तो सारे काम बिना बाधा और परेशानी के पूरे ही नहीं होंगे, बल्कि नाम व पैसा देने वाले भी साबित होंगे।
यह मंत्र भगवान विष्णु के साथ उनके अवतार श्रीकृष्ण का स्मरण है।  इसलिए इस मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ फल देने वाला होगा।

सुबह स्नान के बाद यथासंभव पीले वस्त्र पहनकर देवालय में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा गंध, अक्षत, पीले फूल व धूप, दीप से करें।
- पूजा के बाद इस मंत्र का यथाशक्ति जप करें। यही मंत्र दिन में किसी भी वक्त काम के दौरान ध्यान भी कर सकते हैं -
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
कर्म की अहमियत बताने वाले भगवान श्रीकृष्ण और शांतिस्वरूप भगवान विष्णु के ध्यान से आपका हर काम न केवल निर्विघ्र संपन्न होगा, बल्कि शांति और सुकून भी लाएगा।