भगवान श्रीकृष्ण ‘लीलाधर’ पुकारे जाते हैं। श्रीकृष्ण ने हर लीला के जरिए अधर्म को सहन करने की आदत से सभी के दबे व सोए आत्मविश्वास और पराक्रम को जगाया। भगवान होकर भी श्रीकृष्ण का सांसारिक जीव के रूप में लीलाएं करने के पीछे मकसद उन आदर्शों को स्थापित करना ही था, जिनको साधारण इंसान देख, समझ व अपनाकर खुद की शक्तियों को पहचाने और ज़िंदगी को सही दिशा व सोच के साथ सफल बनाए।
इसी कड़ी में श्रीकृष्ण का सांसारिक धर्म का पालन कर, गुरुकुल जाना, वहां अद्भुत 64 कलाओं व विद्याओं को सीखने के पीछे भी असल में, गुरुसेवा व ज्ञान की अहमियत दुनिया के सामने उजागर करने की ही एक लीला थी। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि साक्षात जगतपालक के अवतार होने से श्रीकृष्ण स्वयं ही सारे गुण, ज्ञान व शक्तियों के स्त्रोत थे। इस बात को भागवतपुराण में कुछ इस तरह उजागर भी किया गया है –
यानी श्रीकृष्ण और बलराम ही जगत के स्वामी हैं। सारी विद्याएं व ज्ञान उनसे ही निकला है और स्वयंसिद्ध है। फिर भी उन दोनों ने मनुष्य की तरह बने रहकर उन्हें छुपाए रखा।
दरअसल, किताबी ज्ञान से कोई भी व्यक्ति भरपूर पैसा और मान-सम्मान तो बटोर सकता है, किंतु मन की शांति भी मिल जाए, यह जरूरी नहीं। शांति के लिए अहम है – सेवा। क्योंकि खुद की कोशिशों से बटोरा ज्ञान अहंकार पैदा कर सकता है व अधूरापन भी। किंतु सेवा से, वह भी गुरु सेवा से पाया ज्ञान इन दोषों से बचाने के साथ संपूर्ण, विनम्र व यशस्वी बना देता है।
श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अंवतीपुर (आज के दौर का उज्जैन) नगरी में गुरु सांदीपनी से केवल 64 दिनों में ही गुरु सेवा व कृपा से ऐसी 64 कलाओं में दक्षता हासिल की, जो न केवल कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में बड़े-बड़े सूरमाओं को पस्त करने का जरिया बनी, बल्कि गुरु से मिले इन कलाओं और ज्ञान के अक्षय व नवीन रहने का आशार्वाद श्रीमद्भगवद्गगीता के रूप में आज भी जगतगुरु श्रीकृष्ण के साक्षात ज्ञानस्वरूप के दर्शन कराता है और हर युग में जीने की कला भी उजागर करने वाला विलक्षण धर्मग्रंथ है।
गुरु सांदीपनि ने श्रीकृष्ण व बलराम को सारे वेद, उनका गूढ़ रहस्य बताने वाले शास्त्र, उपनिषद, मंत्र व देवाताओं से जुड़ा ज्ञान, धनुर्वेद, मनुस्मृति सहित सारे धर्मशास्त्रों, तर्क विद्या या न्यायशास्त्र का ज्ञान दिया। संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध व आश्रय जैसे 6 रहस्यों वाली राजनीति भी सिखाई। यही नहीं, दोनों भाइयों ने केवल गुरु के 1 बार बोलनेभर से ही 64 दिन-रात में 64 अद्भुत कलाओं को भी सीख लिया।
1- नृत्य – नाचना 2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना 3- गानविद्या – गायकी। 4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय 5- इंद्रजाल-जादूगरी 6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 7- सुगंधित चीजें- इत्र, तैल आदि बनाना 8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या 10- बच्चों के खेल 11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 12- मन्त्रविद्या 13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 14- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 15- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 16- सांकेतिक भाषा बनाना 17- जल को बांध देना। 18- बेल-बूटे बनाना 19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। ( देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना ) 20- फूलों की सेज बनाना 21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना – इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते हैं। 22- वृक्षों की चिकित्सा 23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 24- उच्चाटन की विधि 25- घर आदि बनाने की कारीगरी 26- गलीचे, दरी आदि बनाना 27- बढ़ई की कारीगरी 28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना। 29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला। 30- हाथ की फुर्ती कें काम 31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 33- द्यू्त क्रीड़ा 34- समस्त छन्दों का ज्ञान 35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 37- कपड़े और गहने बनाना 38- हार-माला आदि बनाना 39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग या फिर जड़ी-बुटियों को मिलाकर ऐसी चीजें या औषधि बनाना जिससे शत्रु कमजोर हो या नुकसान उठाए। 40-कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना – स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना। 41- कठपुतली बनाना, नाचना 42- प्रतिमा आदि बनाना 43- पहली 44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, रफू, कसीदाकारी व मोजे, बनियान या कच्छे बुनना। 45 - बालों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- कई देशों की भाषा का ज्ञान 48 - म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना – ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जाननेवाला ही समझ सके। 49 - सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 50 - सोना-चांदी आदि बना लेना 51 - मणियों के रंग को पहचानना 52- खानों की पहचान 53- चित्रकारी 54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 55- शय्या-रचना 56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जड़ना। 57- कूटनीति 58- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 59- नयी-नयी बातें निकालना 60- समस्यापूर्ति करना 61- समस्त कोशों का ज्ञान 62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना। 63-छल से काम निकालना 64- कानों के पत्तों की रचना करना यानी शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना।