Thursday, February 28, 2013
Monday, February 25, 2013
कहते हैं जिसे आप ने नहीं देखा है, उसकी कल्पना करना सहज नहीं होता। है, यह हकीकत है। पर सच्चाई यह भी है कि जिसे आप तन मन और धन से ध्यान करते हैं वह एक दिन आपके समक्ष आ ही जाता है। वह चाहे ईश्वर हो या फिर जिसे आप सच्चे मन से चाहते हैं। शायद इसी को भक्ति या प्रेम कहते हैं। ईश्वर को किसी ने देखा नहीं। फिर भी हम कल्पना करते हैं कि वे हमारे साथ हैं और हर वक्त हमारी हर विपत्ति से निपटने के लिए हमारे समक्ष खड़े हैं। आइए एक ऐसी ही दास्तां से आपको वाकिफ करते हैं। जिन्होंने अपनी हठ से ठाकुरजी को भोजन करने पर मजबूर कर दिया।
राजस्थान के टोंक जिले में 15वीं शताब्दी धन्ना भगत का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक देव के जन्म से 53 वर्ष पूर्व इनका जन्म हुआ। ये जाट घराने से थे। किसान माता-पिता की संतान धन्ना भगत का बचपन काफी सघर्षपूर्ण और कष्टप्रद रहा। धन्ना प्रतिदिन पशु चराने के लिए अपने घर से निकलते तो थे लेकिन गांव के बाहर एक तालाब के किनारे जाकर घंटों बैठ जाते थे। यहां ठाकुरजी का मंदिर था।
धन्ना रोज आने-जाने वाले लोगों को पूजा करते देखते थे। लोगों को ऐसा करते देख धन्ना को काफी आश्चर्य होता था। धन्ना अपनी अल्पबुद्धि के कारण समझ नहीं पा रहे थे लोग इन्हें पूजा और भोग क्यूं लगा रहे हैं।
एक गांव में एक पंडित जी भागवत कथा सुनाने आए। पूरे सप्ताह कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोड़े पर बैठकर पंडितजी रवाना होने लगे। गांव के धन्ना जाट ने उनके पांव पकड़ लिए। वह बोला, पंडितजी महाराज! आपने कहा था कि जो ठाकुरजी की सेवा करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है। आप तो जा रहे हैं। मेरे पास न तो ठाकुरजी हैं, न ही मैं उनकी सेवापूजा की विधि जानता हूं। इसलिए आप मुझे ठाकुरजी देकर पधारें।
पंडित जी ने कहा, चौधरी, तुम्ही ले आना। धन्ना जाट ने कहा, मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे नहीं, लाऊंगा कैसे ? पंडित जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने पिंड छुड़ाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले, ये ठाकुरजी है। इनकी सेवापूजा करना। धन्ना जाट ने कहा, महाराज में सेवापूजा का तरीका भी नहीं जानता। आप ही बताएं। पंडित जी ने कहा, पहले खुद नहाना फिर ठाकुर जी को नहलाना। इन्हें भोग चढ़ाकर फिर खाना। इतना कहकर पंडित जी ने घोड़े के एड लगाई व चल दिए।
धन्ना सीधा एवं सरल आदमी था। पंडितजी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर ठाकुरजी अपने घर में स्थापित कर दिया। दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप ठाकुरजी को नहलाया। विधवा मां का बेटा था। खेती भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए भोग मैं अपने हिस्से का बाजरी का टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी रख दी। ठाकुरजी से धन्ना ने कहा, पहले आप भोग लगाओ फिर मैं खाऊंगा। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो बोला, पंडित जी तो धनवान थे। खीर-पूडी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं तो जाट का बेटा हूं, इसलिए मेरी रोटी चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर साफ-साफ सुन लो मेरे पास तो यही भोग है। खीर पूड़ी मेरे बस की नहीं है। ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना भी छह दिन भूखा रहा। इसी तरह वह रोज का एक बाजरे का ताजा टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी रख देता एवं भोग लगाने की अरजी करता।
ठाकुरजी तो पसीज ही नहीं रहे थे। छठे दिन बोला-ठाकुरजी, चटनी रोटी खाते क्यों शर्माते हो ? आप कहो तो मैं आंखें मूंद लू फिर खा लो। ठाकुरजी ने फिर भी भोग नहीं लगाया तो नहीं लगाया। धन्ना भी भूखा प्यासा था। सातवें दिन धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया। फूट-फूट कर रोने लगा एवं कहने लगा कि सुना था आप दीन-दयालु हो, पर आप भी गरीब की कहां सुनते हो, मेरा रखा यह टिक्कड़ एवं चटनी आकर नहीं खाते हो तो मत खाओ। अब मुझे भी नहीं जीना है, इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोडऩे को तैयार हुआ, अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड़ कहा, देख धन्ना मैं तेरा चटनी टिकड़ा खा रहा हूं। ठाकुरजी बाजरे का टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी मजे से खा रहे थे। जब आधा टिक्कड़ खा लिया तो धन्ना बोला, क्या ठाकुरजी मेरा पूरा टिक्कड़ खा जाओगे? मैं भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड़ तो मेरे लिए भी रखो। ठाकुरजी ने कहा, तुम्हारी चटनी रोटी बड़ी मीठी लग रही है तू दूसरी खा लेना। धन्ना ने कहा, प्रभु! मां मुझे एक ही रोटी देती है। यदि मैं दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी। प्रभु ने कहा, फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता। धन्ना ने कहा, खेत छोटा सा है और मैं अकेला। ठाकुरजी ने कहा, नौकर रख ले। धन्ना बोला-प्रभु, मेरे पास बैल थोड़े ही हैं मैं तो खुद जोतता हूं। ठाकुरजी ने कहा, और खेत जोत ले। धन्ना ने कहा-प्रभु, आप तो मेरी मजाक उड़ा रहे हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त रोटी ही न खा लें मां-बेटे। इस पर ठाकुरजी ने कहा, चिंता मत कर मैं तेरी मदद करूंगा। कहते हैं तबसे ठाकुरजी ने धन्ना का साथी बनकर उसकी मदद करनी शुरू की। धन्ना के साथ खेत में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं बैलों की जोड़ी दिलवा दी।
कुछ अर्से बाद घर में भैंस भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया। सवारी के लिए घोड़ा आ गया। धन्ना एक अच्छा खासा जमींदार बन गया। कई साल बाद पंडितजी पुन: धन्ना के गांव भागवत कथा करने आए। धन्ना भी उनके दर्शन को गया। प्रणाम कर बोला, पंडितजी, आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा। सातवें दिन उन्होंने भूख के मारे परेशान होकर मुझ गरीब की रोटी खा ही ली। उनकी इतनी कृपा है कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में मदद करते है। अब तो घर में भैंस भी है। आप सात दिन का घी-दूध का 'सीधा यानी बंदी का घी-दूध मैं ही भेजूंगा। पंडितजी ने सोचा मूर्ख आदमी है। मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था। गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है। धन्ना अब वह गरीब नहीं रहा। जमींदार बन गया है। दूसरे दिन पंडितजी ने कहा, कल कथा में तेरे खेत में काम वाले साथी को साथ लाना। घर आकर प्रभु से निवेदन किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा, मैं नहीं चलता तुम जाओ। धन्ना बोला, तब क्या उन पंडितजी को आपसे मिलाने घर ले आऊं। प्रभु ने कहा, हर्गिज नहीं। मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता। जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।
Thursday, February 21, 2013
शास्त्रों की सीख है कि अच्छे काम और सोच जीवन के रहते सुख-सुकून व मृत्यु के बाद दुर्गति से बचने के लिए बहुत जरूरी हैं। व्यावहारिक रूप से भी किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए सही विचार होने और उसके मुताबिक काम को अंजाम देने पर ही मनचाहे नतीजे संभव है। अन्यथा सोच और चेष्टा में तालमेल का अभाव या दोष बुरे नतीजों के रूप में सामने आते हैं।
मृत्यु के संदर्भ में यही बात सामने रख शास्त्रों की बात पर गौर करें तो बताया गया है कि कर्म ही नहीं विचारों में गुण-दोष के मुताबिक भी मृत्यु के बाद आत्मा अलग-अलग योनि प्राप्त करती है। जिनमें भूत-प्रेत योनि भी एक है। हालांकि विज्ञान भूत-प्रेत से जुड़े विषयों को वहम या अंधविश्वास मानता है। लेकिन यहां बताई जा रही मृत्य के बाद भूत-प्रेत बनने से जुड़ी बातें मनोविज्ञान व व्यावहारिक पैमाने पर प्रामाणिक होने के साथ ही सुखी व शांति से भरे जीवन के एक अहम सूत्र भी उजागर करती हैं। जानिए, किस कारण मृत्यु के बाद मिलती है भूत-प्रेत योनि और क्या है इनमें छिपा जीवन सूत्र?
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता में लिखी ये बातें मृत्यु के बाद भूत-प्रेत बनने का कारण उजागर करती है -
भूतानि यान्ति भूतेज्या:
यानी भूत-प्रेतो की पूजा करने वाले भूत-प्रेत योनि को ही प्राप्त करते हैं। इस बात को एक और श्लोक अधिक स्पष्ट करता है-
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:।।
यानी मृत्यु के वक्त प्राणी मन में जिस भाव, विचार या विषय का स्मरण करता हुआ शरीर छोड़ता है, वही उसी भाव या विषय के अनुसार योनि को प्राप्त हो जाता है।
भूत-प्रेत होने के अंधविश्वासों से परे इन बातों में छिपे संदेश पर गौर करें तो संकेत यही है कि अगर व्यक्ति ताउम्र बुरे काम व उसका चिंतन करता रहे, तो वह बुराई के रूप में मन में स्थान बना लेते हैं और अन्तकाल में भी वही बातें मन-मस्तिष्क में घूमती हैं। ऐसे बुरे भावों के मुताबिक वह व्यक्ति भूत-प्रेत की नीच योनि को ही प्राप्त हो जाता है।
दरअसल, भूत-प्रेत भी मलीनता या बुराई के प्रतीक भी हैं। इसलिए यहां भूत-प्रेत उपासना का मतलब बुराई का संग भी है। इसलिए सीख यही है कि जीवन में बुरे कर्मों से दूरी बनाए रखे, ताकि जीवन रहते भी व जीवन के अंतिम समय में मन के अच्छे भावों के कारण मृत्यु के बाद भी दुर्गति से बचें।
Wednesday, February 20, 2013
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। धर्म शास्त्रों में इसे अजा व भीष्म एकादशी भी कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत किया जाता है। इस बार यह एकादशी 21 फरवरी, गुरुवार को है।
जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से निवेदन कर जया एकादशी का महात्म्य, कथा तथा व्रत विधि के बारे में पूछा था। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से तथा ब्राह्मण को भोजन कराने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।
जया एकादशी की व्रत विधि इस प्रकार है-
जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो।
एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से उनकी पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ व सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।
jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवद्गीता में ईश्वर के विर...
jai shree bankey bihari ji: हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवद्गीता में ईश्वर के विर...: हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवद्गीता में ईश्वर के विराट स्वरूप का वर्णन है। द्वापर युग में महाप्रतापी अर्जुन को इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर...
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