
दीपावली
के एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से
मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 12 नवंबर,
सोमवार को है। नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं
प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है जो इस प्रकार है-
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से
इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को
भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। उसने संतों आदि की 16
हजार स्त्रियों को भी बंदी बना लिया। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो
देवताओं व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए।
भगवान श्रीकृष्ण ने
उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया लेकिन नरकासुर को स्त्री
के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा
को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार
श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर
देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।
उसी की खुशी में दूसरे
दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए।
तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते
हैं। इस बार यह पर्व 12 नवंबर, सोमवार को है। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा
की जाती है। इसकी कथा इस प्रकार है-
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर
तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं
आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर
मुझे कृतार्थ कीजिए।
तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि
बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में
मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी
के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो
व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न
छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो
चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग
कभी भी नरक में न रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव
मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।
भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के
व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।