ज़िंदगी में कई मौकों पर शरीर, बुद्धि, ज्ञान रूपी ताकत के गलत उपयोग के पीछे मन, बोल और व्यवहार में आया कोई न कोई दोष होता है। इससे थोड़े वक्त के लिए स्वार्थ सिद्ध या फायदा तो होता है, पर यही दोष आखिरकार बड़े कलह, अशांति, दु:ख, हानि और बुरे नतीजों की वजह भी बनता है। इससे तमाम सुख-सुविधाओं के बीच भी मन अशांत और अस्थिर रहता है।
धर्मशास्त्रों में मन और घर में प्रेम और शांति बनाए रखने के लिये ही जगतपालक भगवान विष्णु की भक्ति, सेवा और उपासना का महत्व बताया गया है। विष्णु पूजा मनचाहे सुख व संपन्नता भी देने वाली होती है। खासतौर पर इसके लिये अधिकमास (18 अगस्त से) में विष्णु भक्ति में कुछ मर्यादाओं और नियम-संयम का पालन भी जरूरी बताया गया है। इनसे अनजाने होने वाले धर्म व देव दोष से बचा जा सकता है।सबसे पहले विष्णु पूजा में तन की पवित्रता और स्वच्छता को अपनाएं। शौच के बाद बिना नहाए विष्णु आराधना न करें। बिना दांतों की सफाई किए बिना पूजा-उपासना न करें। गंदे और मैले वस्त्र पहनकर विष्णु पूजा न करें। काले या लाल वस्त्र पहनने के स्थान पर पीले वस्त्र पहन पूजा करें। पूजा के समय उदर या पेट की वायु न छोडें। मासिक धर्म से गुजर रही स्त्री के स्पर्श हो जाने पर स्नान करने के बाद ही विष्णु पूजा करें। शवयात्रा में शामिल होने या शव को छूने के बाद बिना स्नान कर ही विष्णु दर्शन या पूजा न करें।
Friday, August 17, 2012
JAI SHREE KRISHNA
हिन्दू
धर्म में अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास पवित्र व पुण्यदायी माना जाता है।
इसमें भगवान विष्णु व उनके ही पुरुषोत्तम रूप की भक्ति का महत्व है।
शास्त्रों में उजागर किया गया है कि पुरुषोत्तम मास में व्रत-नियम के लिए
कैसा रहन-सहन, खान-पान व बोलचाल होना चाहिए। इनका पालन करने से संकल्प
शक्ति मजबूत होती है। इससे बुद्धि, विचार, चेतना, ज्ञान और एकाग्रता बढ़ती
है। ऐसा माना जाता है कि इस मास में विधिपूर्वक उपासना से भगवान
पुरुषोत्तम, जगत पालक श्रीविष्णु और श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। साथ
ही विष्णु पत्नी महालक्ष्मी की कृपा से भी सौभाग्य व संतान सहित हर सुख
मिलते हैं।
अगर आप भी यशस्वी, सफल, धनवान व खुशकिस्मत बनने की
कामना रखते हैं तो भावना व आस्था से इस माह में जगतपालक श्री विष्णु और
श्रीकृष्ण की पूजा के शास्त्रों में बताए कुछ आसान व असरदार उपाय स्वयं
करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं।ऊँ न
मो
भगवते वासुदेवाय इस बारह अक्षरों वाले महामंत्र का हर रोज जप करें। कलश
स्थापना कर अखण्ड दीप पूरे अधिकमास में जलाएं।तुलसी के पत्तों पर ऊँ या
श्रीकृष्ण चन्दन से लिखकर भगवान शालिग्राम शिला पर अर्पित करना चाहिए।
श्रीकृष्ण, श्रीशालग्राम शिला की हर रोज पंचामृत(दूध, दही, शहद, शक्कर व
घी)से पूजा करें।
श्रीमद्भागवतपुराण, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना या सुनना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म, दातुन व स्नान कर भगवान विष्णु की
षोडशोपचार पूचा यानी सोलह पूजा उपायों व सामगियों से भगवान की पूजा करनी
चाहिएइस मास में घर, मंदिर, तीर्थ और पवित्र देवस्थानों में भगवान विष्णु
की पूजा के साथ ही व्रत-उपवास, दान, पुण्य, पूजा, कथा कीर्तन और जागरण करना
चाहिए। इस तरह पूरे पुरुषोत्तम मास में संभव हो तो हर रोज धार्मिक आचरण
करने से जीवन तनावों से दूर होता है, मन, शांत और चित्त की चंचलता नहीं
रहती। इससे जीवन को नए तरीके और सोच से जीने की राह दिखाई देती है। इसलिए
जीवन को पतन से बचाने और आत्म अनुशासन पाने के लिए धर्म का मार्ग सबसे सरल
है।
श्रीमद्भागवतपुराण, श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना या सुनना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म, दातुन व स्नान कर भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूचा यानी सोलह पूजा उपायों व सामगियों से भगवान की पूजा करनी चाहिएइस मास में घर, मंदिर, तीर्थ और पवित्र देवस्थानों में भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत-उपवास, दान, पुण्य, पूजा, कथा कीर्तन और जागरण करना चाहिए। इस तरह पूरे पुरुषोत्तम मास में संभव हो तो हर रोज धार्मिक आचरण करने से जीवन तनावों से दूर होता है, मन, शांत और चित्त की चंचलता नहीं रहती। इससे जीवन को नए तरीके और सोच से जीने की राह दिखाई देती है। इसलिए जीवन को पतन से बचाने और आत्म अनुशासन पाने के लिए धर्म का मार्ग सबसे सरल है।